Pradosh Vrat January 2025 Date: प्रत्येक महीने में 2 बार प्रदोष व्रत आता है. इस व्रत को भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना में समर्पित माना जाता है. कहते हैं कि इस व्रत को सच्चे मन से करने पर मनुष्य की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.
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Pradosh Vrat Parvati Chalisa in Hindi: सनातन धर्म में प्रत्येक महीने कई व्रत और उत्सव आते रहते हैं. ऐसे व्रत जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने के साथ ही आगे बढ़ने की हिम्मत भी दे जाते हैं. ऐसा ही एक दिवस है, प्रदोष व्रत. इस व्रत में भगवान शिव और मां पार्वती की विधि विधान से आराधना की जाती है. यह व्रत महीने में 2 बार आता है. पहली बार महीने के शुक्ल पक्ष में और दूसरा कृष्ण पक्ष में.
जनवरी 2025 का पहला प्रदोष व्रत कब?
हिंदू पंचांग के मुताबिक, नए साल यानी जनवरी 2025 का पहला प्रदोष व्रत इस बार 11 जनवरी 2025 को किया जाएगा. चूंकि उस दिन शनिवार है, इसलिए उसे शनि प्रदोष व्रत भी कहा जाएगा. मान्यता है कि इस दिन जो जातक सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि के बाद भोलेनाथ और मां पार्वती की आराधना करते हैं, उन्हें मनचाहा फल हासिल होता है. ज्योतिषविदों के अनुसार, प्रदोष व्रत पर पूजा के पश्चात पार्वती चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए. ऐसा करने से भगवान शिव और मां पार्वती दोनों की कृपा मिलती है. जिससे समाज में मान-सम्मान और आर्थिक लाभ बढ़ता है. आइए जानते हैं कि पार्वती चालीसा कैसे पढ़ें:-
दोहा
जय गिरी तनये दक्षजे शम्भू प्रिये गुणखानि, गणपति जननी पार्वती, अम्बे, शक्ति, भवानी .
चौपाई
ब्रह्मा भेद न तुम्हरे पावे, पंच बदन नित तुमको ध्यावे
षड्मुख कहि न सकत यश तेरो, सहसबदन श्रम करत घनेरो
तेरो पार न पावत माता, स्थित रक्षा लय हित सजाता
अधर प्रवाल सदृश अरुणारे, अति कमनीय नयन कजरारे
ललित लालट विलेपित केशर, कुंकुंम अक्षत शोभा मनोहर
कनक बसन कञ्चुकि सजाये, कटी मेखला दिव्य लहराए
कंठ मदार हार की शोभा, जाहि देखि सहजहि मन लोभ
बालारुण अनंत छवि धारी, आभूषण की शोभा प्यारी
नाना रत्न जड़ित सिंहासन, तापर राजित हरी चतुरानन
इन्द्रादिक परिवार पूजित, जग मृग नाग यक्ष रव कूजित
गिर कैलाश निवासिनी जय जय, कोटिकप्रभा विकासिनी जय जय
त्रिभुवन सकल, कुटुंब तिहारी, अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी
हैं महेश प्राणेश, तुम्हारे, त्रिभुवन के जो नित रखवारे
उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब, सुकृत पुरातन उदित भए तब
बुढा बैल सवारी जिनकी, महिमा का गावे कोउ तिनकी
सदा श्मशान विहरी शंकर, आभूषण हैं भुजंग भयंकर
कंठ हलाहल को छवि छायी, नीलकंठ की पदवी पायी
देव मगन के हित अस किन्हों, विष लै आपु तिनहि अमि दिन्हो
ताकी, तुम पत्नी छवि धारिणी, दुरित विदारिणी मंगल कारिणी
देखि परम सौंदर्य तिहारो, त्रिभुवन चकित बनावन हारो
भय भीता सो माता गंगा, लज्जा मय है सलिल तरंगा
सौत सामान शम्भू पहआयी, विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी
तेहि कों कमल बदन मुर्झायो, लखी सत्वर शिव शीश चढायो
नित्यानंद करी वरदायिनी, अभय भक्त कर नित अनपायिनी
अखिल पाप त्रय्ताप निकन्दनी , माहेश्वरी ,हिमालय नन्दिनी
काशी पूरी सदा मन भायी, सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायीं
भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री, कृपा प्रमोद सनेह विधात्री
रिपुक्षय कारिणी जय जय अम्बे, वाचा सिद्ध करी अवलम्बे
गौरी उमा शंकरी काली, अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली
सब जन की ईश्वरी भगवती, पतप्राणा परमेश्वरी सती
तुमने कठिन तपस्या किणी, नारद सो जब शिक्षा लीनी
अन्न न नीर न वायु अहारा, अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा
पत्र घास को खाद्या न भायउ, उमा नाम तब तुमने पायउ
तप बिलोकी ऋषि सात पधारे, लगे डिगावन डिगी न हारे
तव तव जय जय जयउच्चारेउ, सप्तऋषि, निज गेह सिद्धारेउ
सुर विधि विष्णु पास तब आए, वर देने के वचन सुनाए
मांगे उमा वर पति तुम तिनसो, चाहत जग त्रिभुवन निधि, जिनसों
एवमस्तु कही ते दोऊ गए, सुफल मनोरथ तुमने लए
करि विवाह शिव सों हे भामा, पुनः कहाई हर की बामा
जो पढ़िहै जन यह चालीसा, धन जनसुख देइहै तेहि ईसा
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)