नई दिल्ली: लोकतंत्र सबको अपनी बात कहने की आजादी देता है. लेकिन ये आजादी जब परेशानी की वजह बन जाती है तो इस पर सवाल उठना स्वाभाविक है. इन्हीं सवालों के केंद्र में है, देश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल AIIMS से आई कुछ तस्वीरें.


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जिस समय पूरा देश कोरोना वायरस से संघर्ष कर रहा है, उस वक्त अपनी मांगों को लेकर AIIMS के Nursing Staff के हड़ताल पर जाने की बात कई सवाल खड़े करती है. हालांकि हाई कोर्ट के आदेश के बाद ये हड़ताल वापस ले ली गई है. लेकिन शताब्दी के सबसे बड़े स्वास्थ्य संकट के बीच स्वास्थ्य कर्मचारियों का हड़ताल पर जाने की बात कहना कितना सही है, आज हम यही सवाल देश के सामने रखेंगे.


नर्स यूनियन की 23 मांगें
AIIMS की नर्स यूनियन की कुल 23 मांगें थीं. लेकिन इसमें सबसे अहम है, छठे वेतन आयोग को लागू करने की मांग. इसके अलावा कर्मचारी स्वास्थ्य योजना में सुधार, नर्सों को सरकारी आवास की सुविधा और देश भर के अन्य AIIMS के बीच नर्सों के ट्रांसफर की मांग को भी इसमें शामिल किया गया. इन्ही मांगों को लेकर 15 दिसंबर दोपहर से AIIMS के 5 हजार पुरुष और महिला Nursing Staff अनिश्चित काल के लिए हड़ताल पर जाने की घोषणा कर चुके थे.


हालांकि दिल्ली हाई कोर्ट ने इस हड़ताल पर रोक भी लगा दी. AIIMS प्रशासन की तरफ से हाई कोर्ट में कहा गया कि महामारी के समय में Nursing Staff हड़ताल पर नहीं जा सकता. लेकिन इन सबके बावजूद 15 दिसंबर AIIMS में Nursing staff हड़ताल पर रहा.


लोकतंत्र में दी गई आजादी पर सवाल
हम ये बिल्कुल नहीं कह रहे कि नर्सों की मांग नहीं सुनी जानी चाहिए. ये वो लोग हैं जो कई महीनों से देश के लोगों और कोरोना वायरस महामारी के बीच दीवार बनकर खड़े हैं. इसलिए पूरा देश इनका सम्मान करता है. लेकिन अचानक इस तरह से अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर जाने की बात कहना इस मुश्किल घड़ी में हज़ारों लोगों की जान को संकट में डालने जैसा है.


संकट के इस समय में अगर वो लोग हड़ताल पर चले जाएं जिनके कंधे पर इस महामारी से निपटने की जिम्मेदारी है तो ज़ाहिर तौर पर लोकतंत्र में दी गई आजादी पर सवाल उठेंगे.


आपमें से शायद ज्यादातर लोगों को ये पता नहीं होगा कि डॉक्टरों की तरह नर्सों को भी मरीज़ों का हमेशा ख्याल रखने और अपनी जिम्मेदारी पूरी निष्ठा से निभाने की शपथ दिलाई जाती है. लेकिन व्यक्तिगत स्वार्थ कई बार शपथ लेने वालों को अपने पथ से भटका देता है.



इसी तरह सांसद या विधायक भी संविधान की शपथ लेते हैं और निष्ठा के साथ देश के लोगों के प्रति अपना कर्तव्य निभाने का वादा करते हैं. लेकिन हमारे देश में न तो संविधान की शपथ का कोई मूल्य रह गया है और न ही स्वास्थ्य कर्मचारियों की शपथ का कोई मूल्य बाकी है.


आजादी का दुरूपयोग
कोरोना वायरस इस साल का नहीं, बल्कि इस शताब्दी का सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट है और विपदा के ऐसे मौके पर अपने स्वार्थ को ऊपर रखना, कहीं से भी नैतिक नहीं है. लेकिन बावजूद इसके कल 15 दिसंबर को AIIMS पहुंचे सैकड़ों मरीज़ लगातार परेशान होते रहे. इस हड़ताल ने मरीज़ों और उनके परिवारों को कैसे मुश्किल में डाल दिया. इस पर हमारी टीम ने AIIMS जाकर एक Ground Report तैयार की. ये Report देखकर आपको समझ आ जाएगा कि हम इसे आजादी का दुरूपयोग क्यों कह रहे हैं.


दिल्ली के एम्स में वर्षों से लेकर कई महीनों के लंबे इंतज़ार के बाद ऑपरेशन की तारीख मिलती है. लंबी कतारों से जूझकर टेस्ट की तारीख मिलती है. लेकिन महीनों बाद मिली तारीख मिनटों में बेकार हो गई.


60 वर्ष के मदनलाल अपने पोते को दर्द में देखकर भी ये कुछ नहीं कर पा रहे थे. मदनलाल का पोता एम्स की एमरजेंसी में भर्ती है. 15 दिसंबर को उसकी सर्जरी होनी थी लेकिन नर्स ही नहीं है तो सर्जरी कैसे होगी. डॉक्टर्स भी फैसला नहीं ले पा रहे हैं कि आखिर मरीज को सर्जरी की अगली तारीख क्या दी जाए.


ऐसी ही एक महिला हैं आरती तिवारी. आरती की डिलीवरी होने वाली थी. इन्हें 15 दिसंबर की तारीख दी गई थी. लेकिन इस हालत में इनको एम्स से सफदरजंग के बीच दौड़भाग करनी पड़ी. कहा गया है कि सफदरजंग अस्पताल जाकर दिखा लें.


एम्स के हालात की ये तस्वीरें आपको पूरी कहानी बता देंगी. नर्सिंग स्टाफ अस्पताल के बाहर हड़ताल पर बैठा था. इस वजह से अस्पताल नर्सिंग स्टाफ न होने की वजह से खाली रहा और उसके बाहर मरीज इलाज के लिए परेशान हैं.


मरीजों की परेशानी देखकर पहली नजर में यही लगता है कि नर्सिंग स्टाफ मनमानी कर रहा है. लेकिन ये उनकी भी कुछ अपनी मजबूरियां हैं.


हालांकि नर्सों का कहना है कि हड़ताल अचानक नहीं बुलाई गई है. उनकी मांगों पर बातचीत पिछले एक वर्ष से चल रही है. लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकल सका है. अब दिल्ली हाई कोर्ट ने कह दिया है कि कोरोना के वक्त में नर्सिंग स्टाफ हड़ताल नहीं कर सकता.


एम्स प्रशासन की कोशिश यही थी कि नर्सिंग स्टाफ की हड़ताल के बावजूद हालात सामान्य रहें लेकिन जब ज़ी न्यूज़ का कैमरा एम्स के अंदर पहुंचा तो वहां के हालात कुछ अलग थे.


मरीजों की देखरेख के लिए वहां कोई मौजूद नहीं था. कुछ मरीजों के परिजन इनके असपास थे. लेकिन वो भी बेबस थे. जिन वॉर्ड में नर्सिंग स्टाफ की भीड़ दिखती थी, वहां पर केवल मरीज थे या कुर्सी पर बैठे उनके परिजन. मरीजों को देखरेख के लिए वहां डॉक्टर्स की टीम जरूर मौजूद थी.लेकिन वो नाकाफी थी.


नर्सिंग स्टाफ के न होने की वजह से लोगों को हुई परेशानी
कल नर्सिंग स्टाफ के हड़ताल पर चले जाने की वजह से इलाज में बेहद परेशानी हुई. नर्सिंग स्टाफ न होने की वजह से मरीज ही खुद आपस में एक दूसरे का ध्यान रख रहे थे, एक दूसरे को दवाई खिला रहे थे. हालांकि डॉक्टर अपने काम में कोई कोताही नहीं कर रहे लेकिन नर्सिंग स्टाफ के न होने की वजह से लोगों को बेहद परेशानी हुई.


यहां मौजूद शिव सिंह अस्पताल के अंदर का हाल बता रहे हैं. इनकी 8 साल पोती की हालत बहुत खराब है, वह एम्स में पिछले 3 महीने से भर्ती है.


आप कह सकते हैं कि हर प्रोफेशन की ही तरह डॉक्टर और नर्स भी एक प्रोफेशन यानी पेशा है और हर कोई बेहतर पैसा और सुविधाएं चाहता है. लेकिन मेडिकल प्रोफेशन पर ये बात इसलिए फिट नहीं बैठती क्योंकि, अकेला यही एक पेशा है जिसमें काम करने वालों को भगवान का दर्जा दिया जाता है. मरीज की देखभाल में लगा नर्सिंग स्टाफ मरीजों की सबसे बड़ी उम्मीद होता है. लेकिन अधिकारों की जंग महामारी के खिलाफ लड़ाई को कमज़ोर कर रही है.


ये तस्वीरें देश को बार बार न देखनी पड़ें इसलिए हम कह रहे हैं कि अपनी बात रखने और आंदोलन करने का तरीका माननीय होना चाहिए, सब कुछ रोककर बदलाव नहीं लाए जा सकते. इसलिए अब देश के लोगों को आंदोलन के ज्यादा सकारात्मक तरीके विकसित करने होंगे ताकि बार बार सबकुछ बंद करने की बजाय हर बार कुछ नया शुरू किया जा सके.