नई दिल्ली: भारत के लिए मंगलवार का दिन बहुत निराशा का रहा. ओलपिक्स (Tokyo Olympics 2021) के सेमीफाइनल में पुरुष हॉकी टीम के पहुंचने से देश की उम्मीदें काफ़ी बढ़ गई थीं. हालांकि भारतीय टीम इस मुक़ाबले में Belgium की टीम से 5-2 से हार गई. ये हार एक सपने के टूटने जैसी थी.


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सबसे बड़ा सवाल ये है कि भारतीय हॉकी (Hockey) टीम की इस हार पर हम अपने खिलाड़ियों को कोसेंगे या उन्हें शाबाशी देकर आगे के खेलों के लिए प्रोत्साहित करेंगे? 135 करोड़ के एक ऐसे देश को, जो 40 वर्षों से Hockey में गोल्ड मेडल का इन्तज़ार कर रहा हैं, उसे क्या करना चाहिए? अब भारतीय टीम ब्रॉन्ज मेडल के लिए 5 अगस्त को अगला मैच खेलेगी.


सिल्वर से ज्यादा ब्रांज मेडल में खुशी


हालांकि कई लोगों ने ये भी कहा कि जो ख़ुशी गोल्ड या फिर सिल्वर मेडल में है,वो Bronze Medal में नहीं है. वहीं एक नई Study कहती है कि खेलों में Bronze मेडल जीतने वाली टीम या खिलाड़ी को सिल्वर मेडल जीतने वाली टीम या खिलाड़ी से ज़्यादा ख़ुशी होती है. अगर ये ओलम्पिक खेलों में हो तो ख़ुशी और भी बढ़ जाती है. यानी Medals और ख़ुशी के स्थान में भी बड़ा अन्तर होता है.


इंसान का जो दिमाग़ है वो या तो उम्मीदों की उड़ान भरता है या फिर ज़मीनी हकीकत से चिपक कर. इन दोनों के बीच खुशी कहीं गुम हो जाती है. अगर खुशी के तराजू में हकीकत और उम्मीदें एक दूसरे के साथ संतुलन बैठा लें तो खुशी का पलड़ा भारी हो जाता है. इस Study से यही बात साबित होती है.


अमेरिकन यूनिवर्सिटी ने की स्टडी


ये Study अमेरिका की Lowa University ने की है. इसमें पिछले ओलम्पिक खेलों (Tokyo Olympics 2021) की तस्वीरों से मदद ली गई है. इसमें ये देखा गया कि जब पोडियम पर खिलाड़ी अपना मेडल लेने के लिए जाते हैं तो उनकी प्रतिक्रिया कैसी होती हैं और उनके चेहरे के हाव-भाव कैसे होते हैं. कुल पांच ओलम्पिक खेलों की Medal Ceremony का अध्ययन करने के बाद इस University ने पाया कि Silver Medal जीतने वाले खिलाड़ियों से ज़्यादा, Bronze Medal जीतने वाले खिलाड़ी ख़ुश होते हैं.


सिल्वर मेडल उस खिलाड़ी को मिलता है जो फाइनल में हार जाता है. यानी पोडियम पर मेडल लेते समय कहीं ना कहीं उस खिलाड़ी के मन में ये अफसोस रहता है कि अगर उसने और ज़्यादा कोशिश की होती तो ये सिल्वर मेडल.. गोल्ड मेडल भी हो सकता था. यानी फाइनल में हार का अफसोस सिल्वर मेडल की ख़ुशी को कम कर देता है और ज़्यादातर खिलाड़ी इस दौरान तनाव में भी होते हैं.


जबकि Bronze Medal जीतने वाली टीम या खिलाड़ी, अपना मैच जीत कर पोडियम तक पहुंचते है. ऐसी स्थिति में खिलाड़ी यही सोचते हैं कि कुछ ना होने से अच्छा है कि उन्होंने अपने देश के लिए एक मेडल तो जीता. अंग्रेजी में इसी भावना को Something Is better Than Nothing कहते हैं. यानी यहां मेडल का रंग खुशी के रंग में खलल नहीं डाल पाता. Bronze Medal जीतने वाले खिलाड़ी खुद को ज्यादा भाग्यशाली महसूस करते हैं.


पी.वी. सिंधु ने भी जीता ब्रांज मेडल


रविवार को जब Badminton खिलाड़ी पी.वी. सिंधु ने अपना Bronze Medal जीता तो उनके चेहरे पर ताइवान की खिलाड़ी से ज़्यादा ख़ुशी थी, जो फाइनल में हार गई थी. ताइवान की Badminton खिलाड़ी ने ही Semifinal में पी.वी. सिंधु को हराया था, लेकिन फाइनल में वो चीन की खिलाड़ी से हार गईं. इस हार के अफसोस ने उनकी खुशी को कम कर दिया. जबकि उन्हीं से हारने वाली पी.वी. सिंधु उनसे ज्यादा ख़ुश दिख रही थीं.


इसी तरह की तस्वीरें 2014 के Winter Olympics में दिखी थीं. उस समय Figure Skating में दक्षिण कोरिया की खिलाड़ी फाइनल में हार गई थीं और उन्हें सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा था. जबकि Bronze Medal जीतने वाली इटली की खिलाड़ी के चेहरे पर खुशी थी.


1992 के Barcelona Olympics पर की गई एक Study में भी ये पता चला कि भले ही मेडल वाली सूची में सिल्वर का स्थान दूसरे नम्बर पर हो. लेकिन ख़ुशी के मामले में नम्बर दो पर Bronze Medal ही है.


कांसे की खोज से आधुनिक सभ्यताओं का विकास


वैसे Bronze के बारे में एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि Bronze की खोज के बाद ही दुनिया में कई आधुनिक सभ्यताओं का विकास हुआ. इससे पहले के युग को पाषाण युग यानी Stone Age कहते थे. भारत की प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता भी Bronze Age की सभ्यता थी. खेलों की शुरुआत भी Bronze Age से ही मानी जाती है. 


इंसानों ने सोने की खोज और इसका इस्तेमाल तो बहुत बाद में शुरू किया. इसलिए अपनी खुशी को कम मत होने दीजिए. अगर पुरुष हॉकी टीम ने अपना Bronze Medal मैच जीत लिया तो ये टीम सिल्वर मेडल जीतने वाली टीम से ज़्यादा ख़ुश होगी. सबसे बड़ी बात ये है कि ख़ुशी से बड़ा कोई मेडल नहीं होता. 


मेडल से बड़ा खिलाड़ियों का चरित्र


Medal का रंग कोई भी हो लेकिन हर मेडल से बड़ा खिलाड़ी का चरित्र ही होता है. कई बार चरित्र की चमक हर मेडल के आगे फीकी पड़ जाती है. Tokyo ओलम्पिक खेलों में पुरुष हाई जम्प के फाइनल में इटली और कतर के खिलाड़ी के बीच मुक़ाबला था. दोनों ही खिलाड़ियों ने गोल्ड मेडल के लिए 2.37 मीटर की छलांग लगाई और बराबरी पर रहे. यानी मैच टाई हो गया.


इसके बाद दोनों खिलाड़ियों को तीन-तीन मौक़े और दिए गए. नियमों के मुताबिक जो खिलाड़ी 2.37 मीटर से ऊंची छलांग लगाता, गोल्ड मेडल उसे मिलता. लेकिन अपने तीनों प्रयासों में ये दोनों खिलाड़ी ऐसा करने में नाकाम रहे और फाइनल किसी नतीजे तक नहीं पहुंचा.


हालांकि किसी भी बड़ी चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल किसी एक ही खिलाड़ी को ही दिया जा सकता है. इसलिए दोनों खिलाड़ियों को फिर से एक एक और मौक़ा दिया गया. इस दौरान इटली के High Jumper पैर में चोट की वजह से इसमें हिस्सा नहीं ले पाए. ये वो क्षण था, जब कतर के खिलाड़ी के सामने कोई दूसरा विरोधी खिलाड़ी नहीं था, उस पल वो आसानी से गोल्ड मेडल जीत सकते थे. लेकिन किसी फिल्म की तरह इस फाइनल मुक़ाबले में भी अभी एक Twist आना बाकी था.


कतर के खिलाड़ी ने विरोधी से शेयर किया अपना गोल्ड


कतर के खिलाड़ी ने वहां मौजूद एक अधिकारी से पूछा कि अगर वो भी अपने अंतिम प्रयास से पीछे हट जाएं तो क्या ऐसी स्थिति में गोल्ड मेडल दोनों खिलाड़ियों के साथ शेयर किया जा सकता है? उनके इस सवाल ने ओलम्पिक कमिटी (Tokyo Olympics 2021) के लोगों के साथ वहां मौजूद लोगों को भी हैरान कर दिया.


काफ़ी विचार विमर्श के बाद एक अधिकारी ने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो इस प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल दोनों खिलाड़ियों को ही दिया जाएगा. ये बात जब इटली के खिलाड़ी ने सुनी तो वो इस पर यकीन नहीं कर पाए. उन्होंने कतर के खिलाड़ी को गले लगा लिया और दोनों खिलाड़ी भावुक नज़र आए.


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आज के युग में जब लोग अपनी एक छोटी सी चीज़ भी किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहते. तब इस खिलाड़ी ने मेडल से ऊपर अपने चरित्र को रखते हुए गोल्ड मेडल को शेयर करने का फ़ैसला किया. Medal Ceremony में दोनों खिलाड़ियों ने एक दूसरे को गोल्ड मेडल पहनाया. इस मुक़ाबले में जीत खेल भावना की हुई है, जिसे धर्म, जाति, देश और उनकी सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता.


सबसे अहम बात इस ख़बर से आपको ये सीखनी चाहिए कि मेडल चैम्पियन से बनते हैं. चैम्पियन मेडल से नहीं बनते.  
खेल भावना किसी भी खिलाड़ी के लिए उसका सबसे पहला मेडल होती है.


स्पेन की क्रॉस कंट्री चैंपियनशिप में भी दिखी थी खेल भावना


उदाहरण के लिए दिसम्बर 2012 में Spain में Cross-Country Race चल रही थी. इस रेस में केन्या के धावक और Olympic Medalist Abel Mutai (अबेल मुताई) सबसे आगे चल रहे थे और उनके पीछे Spain के Athlete Ivan Fernandez (इवान फर्रानडिज़) थे. इसी दौरान Abel Mutai Finishing Line से भटक गए. Spain के Runner चाहते तो वो इसका फायदा उठा कर इस रेस को जीत सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. उन्होंने केन्या के धावक को सही रास्ता बताया और रेस के दौरान उनसे कुछ दूरी पर पीछे ही रहे. इस रेस ने तब दुनिया को Honesty Is The Best Policy का सिद्धांत याद कराया और खेल भावना का भी उदाहरण पेश किया .


मैच के बाद स्पेन के खिलाड़ी ने कहा था कि असली विजेता तो केन्या के खिलाड़ी ही थे. वो लगातार उनसे आगे चल रहे थे. बस वो रास्ता भटक गए थे. वो इसका फायदा उठाते तो जीतकर भी हार जाते. कहानी का सबक ये है कि जीवन की रेस में भी आगे निकलने के लिए दूसरों के भटकने का इंतजार मत कीजिए बल्कि भटके हुओं को रास्तों पर लाइये. उन्हें बराबरी का मौका दीजिए.


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