नई दिल्ली: CBSE ने ये बता दिया है कि 12वीं कक्षा के छात्रों का रिजल्ट किस आधार पर तैयार किया जाएगा. इसलिए आज हम इसी खबर का विश्लेषण करेंगे और आपको बताएंगे कि ये रिजल्ट कैसे लाखों छात्रों की जिंदगी बदलने वाला है. इस बार ये रिजल्ट अपने साथ कई सारे बदलाव लाएगा और ये पहले जैसे नतीजों की तरह नहीं होगा.


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सबसे पहले आपको CBSE के फॉर्मूले के बारे में बताते हैं.


रिजल्ट को तीन श्रेणियों में बांटा गया 


इस नए फॉर्मूले के तहत ये तय किया गया है कि 12वीं कक्षा के नतीजों के लिए 10वीं, 11वीं और 12वीं तीनों क्लास में छात्रों द्वारा किए गए प्रदर्शन को रिजल्ट का आधार बनाया जाएगा. इसके लिए 100 प्रतिशत रिजल्ट को तीन श्रेणियों में बांटा गया है.


100 प्रतिशत में 40 प्रतिशत वेटेज के लिए 12वीं कक्षा में हुए यूनिट टेस्ट, मिड टर्म एग्जाम्स और प्री बोर्ड एग्जाम्स के नतीजों को महत्व दिया जाएगा.


30 प्रतिशत वेटेज के लिए 11वीं कक्षा के नतीजों को आधार माना जाएगा, लेकिन इनमें केवल थ्योरी वाले एग्जाम्स के अंकों का मूल्यांकन होगा. सरल शब्दों में कहें तो प्रैक्टिकल को छोड़ कर बाकी विषयों में थ्योरी में कितने नंबर आए थे, इसको 12वीं के नतीजों में 30 प्रतिशत अंकों के लिए आधार माना जाएगा.


जबकि बाकी 30 प्रतिशत वेटेज के लिए 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा के नतीजों को आधार माना जाएगा. हालांकि इसमें सिर्फ उन्हीं 3 विषयों के रिजल्ट्स को महत्व दिया जाएगा, जिनमें आपके सबसे ज्यादा नम्बर आए थे और इसमें भी प्रैक्टिकल के नम्बर्स को नहीं जोड़ा जाएगा और इस तरह से ये 100 प्रतिशत का ब्रेक अप बनेगा.


अंतिम रिजल्ट क्या होगा?


हालांकि आपको ये बहुत जटिल लग रहा होगा और बहुत से छात्र अब भी कंफ्यूज हैं कि आखिर उनका अंतिम रिजल्ट क्या होगा. तो CBSE ने इसे भी स्पष्ट करने की कोशिश की है. जिसे हम आपको बहुत सरल भाषा में समझाते हैं.


असल में अभी स्कूलों में हर विषय में थ्योरी और प्रैक्टिकल के मार्क्स अलग-अलग होते हैं.


जैसे किसी विषय में 80 मार्क्स का थ्योरी एग्जाम होता है और प्रैक्टिकल 20 नम्बर का होता है. ये भी होता है कि किसी विषय में प्रैक्टिकल के नम्बर्स ज्यादा होते हैं और थ्योरी के कम. ये क्रम हर विषय में अलग अलग हो सकता है.


अब प्रैक्टिकल के नम्बर्स तो स्कूल पहले ही छात्रों को दे देते हैं, जो बाद में अंतिम रिजल्ट में जोड़े जाते हैं यानी मोटे तौर पर बोर्ड को ये तय करना था कि छात्रों को थ्योरी में कैसे नम्बर दिए जाएं और इसी के लिए ये ब्रेक अप बनाया गया है.


हालांकि यहां आपके मन में कई सवाल भी होंगे. पहला सवाल तो यही होगा कि अगर आपके प्री बोर्ड एग्जाम्स में या​ मिड टर्म परीक्षा या यूनिट टेस्ट में कम नम्बर आए थे, तो फिर क्या आपका रिजल्ट खराब आने वाला है? ये आपके मन में सवाल होगा.



ये फैसला स्कूलों पर छोड़ा गया


CBSE ने अपने फॉर्मूले में इसका जवाब देने की भी कोशिश की है. इसके तहत ये फैसला स्कूलों पर छोड़ा गया है कि वो 12वीं कक्षा में यूनिट टेस्ट, मिड टर्म एग्जाम्स और प्री बोर्ड एग्जाम्स के सभी नतीजों को आधार बनाते हैं या फिर किसी एक एग्जाम के आधार पर ये तय करते हैं कि वो आपको कितने नम्बर देंगे क्योंकि, इनका महत्व आपके रिजल्ट में 40 प्रतिशत का होगा. जैसे कोई स्कूल ये तय कर सकता है कि वो सिर्फ प्री बोर्ड एग्जाम्स के आधार पर छात्रों का मूल्यांकन करेगा.


करियर का रनवे 


12वीं कक्षा के नतीजों को करियर का रनवे कहा जाता है क्योंकि, इसी रनवे से बच्चों का करियर एक विमान की तरह उड़ान भरने के लिए तैयार होता है. परीक्षा में अच्छे अंक आते हैं हों तो इसका मतलब होता है कि बच्चों के पास एक अच्छा आधुनिक विमान है, जो इसके बाद के सफर में उन्हें सबसे आगे रखेगा और कम अंकों का मतलब ये माना जाता है कि विमान ज्यादा आधुनिक नहीं हैं, इसलिए बच्चों को ज्यादा मेहनत करनी होगी. जैसा कि एक फाइटर पायलट करता है.  एक फाइटर पायलट औसत विमान से भी बड़े हमलों को अंजाम देने में माहिर होता है.


जिंदगी में कई बड़े मौकों पर मूल्यांकन का आधार 


यहां एक बात ये भी है कि 12वीं कक्षा के परिणाम जिंदगी में कई बड़े मौकों पर हमारे मूल्यांकन का आधार बनते हैं.


जैसे कॉलेज में दाखिले लेने के लिए, विदेश में जाकर पढ़ाई करने के लिए, स्कॉलरशिप्स के लिए, सरकारी नौकरी के लिए और यहां तक कि प्राइवेट नौकरियों में भी 12वीं कक्षा के परिणामों को देखा जाता है.


CBSE का फॉर्मूला बहुत महत्वपूर्ण 


कहने का मतलब ये है कि 12वीं कक्षा के नतीजे करियर की नींव बनते हैं और इन्हीं से छात्रों का भविष्य तय होता है. इसलिए CBSE का ये फॉर्मूला बहुत महत्वपूर्ण है. हालांकि आज कई बच्चों को ये फॉर्मूला पसंद नहीं आया है क्योंकि, इन बच्चों को कहना है कि 10वीं और 11वीं कक्षा में उनका रिजल्ट अच्छा नहीं आया था और इसकी वजह से अब वो 12वीं कक्षा के नतीजों में पीछे रह जाएंगे.


असहमति भी जता सकते हैं...


लेकिन हम ऐसे छात्रों और उनके माता-पिता को ये बताना चाहते हैं कि CBSE ने तय किया है कि अगर कोई छात्र अपने रिजल्ट से खुश नहीं होता है तो वो असहमति जता सकता है और इसके लिए अपने स्कूल के प्रिंसिंपल को एक चिट्ठी लिख कर परीक्षा देने के लिए कह सकता है. यानी आप चाहें तो रिजल्ट आने के बाद भी परीक्षा दे सकते हैं.


CBSE की शुरुआत


CBSE भारत का केन्द्रीय शिक्षा बोर्ड है और इसकी शुरुआत वर्ष 1929 से मानी जाती है, जब देश में अंग्रेजी सरकार का शासन था. उस समय Board of High School and Intermediate Education Rajputana का गठन किया गया था. इस बोर्ड के दायरे में अजमेर, मेवाड़, मध्य भारत और ग्वालियर प्रांतों के काफी स्कूल आते थे. हालांकि बाद में धीरे-धीरे अलग-अलग प्रांतों ने राज्य बोर्ड का गठन कर लिया.


लेकिन आजादी के बाद वर्ष 1952 में Board of High School and Intermediate Education Rajputana का नाम बदल कर Central Board of Secondary Education कर दिया गया और तब इसके दायरे में देश के अधिकतर राज्य आए. वर्ष 1962 में इस बोर्ड का फिर से पुनर्गठन हुआ ताकि ये बदलते भारत की बदलती शिक्षा को नई दिशा दे सके.


इसी के बाद देश में बोर्ड की परीक्षा की परम्परा शुरू हुई और इसका मकसद था देश में मार्किंग सिस्टम के लिए यूनिफॉर्म स्टैंडर्ड को स्थापित किया जा सके. यानी 10वीं की परीक्षा जितनी तमिलनाडु में कठिन है, उतनी ही दिल्ली में भी हो और दूसरे राज्यों में भी एक जैसा सिस्टम हो.


पिछले तीन साल के रिकॉर्ड भी प्रक्रिया का अहम हिस्सा 


और आज CBSE द्वारा पेश किए गए फॉर्मूले में भी इस बात को ध्यान में रखा गया है. जब CBSE इस फॉर्मूले को तैयार कर रहा था, तब उसके सामने ये प्रश्न भी था कि वो सभी स्कूलों का इसमें एक समान कैसे ध्यान रखा जाए, तो इसके लिए ये किया गया कि अब छात्रों के नतीजे तैयार करते समय स्कूलों के पिछले तीन साल के रिकॉर्ड को भी इस प्रक्रिया का अहम हिस्सा माना जाएगा.


इस फॉर्मूले के तहत स्कूलों का बेस्ट रिजल्ट निकाला जाएगा और ये सुनिश्चित किया जाएगा कि इस बार का रिजल्ट उस रिजल्ट से प्लस माइनस 2 नम्बर में हो. जैसे किसी स्कूल की 12वीं कक्षा में 97 प्रतिशत रिजल्ट सफल रहा था, तो अभी का रिजल्ट कम से कम 95 और अधिकतम 99 हो सकता है.


इस समय देश में 24 हजार से ज्यादा स्कूल CBSE द्वारा मान्यता प्राप्त हैं, जिन पर ये सभी फैसले लागू होंगे और अलग-अलग राज्यों के शिक्षा बोर्ड पर ये प्रक्रिया लागू नहीं होगी, लेकिन ऐसी संभावना है कि कुछ राज्य बोर्ड भी इस फॉर्मूले पर अमल कर सकते हैं.