नई दिल्‍ली: आज का हमारा DNA उन शहीद जवानों को समर्पित है, जिन्होंने छत्तीसगढ़ के बीजापुर में सर्वोच्च बलिदान दिया, लेकिन आज हम आपसे कुछ और कहना चाहते हैं और वो ये कि ये जवान किसी आतंकवादी हमले में शहीद नहीं हुए, ये हमला हाफिज सईद ने नहीं करवाया था और न ही हमारे जवानों ने सरहद पर दुश्मन से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी.


आतंकी हाफिज सईद से भी ज्‍यादा खतरनाक देश में छिपे दुश्‍मन


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ये जवान उन नक्सलियों के हमले में शहीद हुए, जो इसी देश में छिप कर रहते हैं, जो इसी देश का खाते हैं और जो आतंकवादी हाफिज सईद की तरह ही खतरनाक हैं. इसलिए आज हम कहना चाहते हैं कि हाफिज सईद से पहले माडवी हिडमा को पकड़ा जाना चाहिए, जो इस नक्सली हमले का मास्टरमाइंड है. हम अक्सर कहते हैं कि हाफिज सईद को पकड़ा जाना चाहिए, भारत इसके लिए संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद का भी रुख करता है और भारत, अमेरिका और दूसरे बड़े देशों से भी इस पर चिंता जताता है, लेकिन हमारा मानना है कि हाफिज सईद से पहले माडवी हिडमा जैसे नक्सलियों को पकड़ा जाना चाहिए.


छत्तीसगढ़ हमले का मास्‍टरमाइंड


माडवी हिडमा की उम्र 40 साल है और वो पिछले लगभग 25 वर्षों से छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में सक्रिय है. वो सीपीआई माओवादी की 21 सदस्यीय सेंट्रल कमेटी भी हिस्सा है. हिडमा को बड़े और खतरनाक हमलों के लिए जाना जाता है और ये नक्सली जिस पीपुल्‍स लिबरेशन गुरिल्‍ला आर्मी की बटालियन वन का प्रमुख है, वो इस साल PLGA वर्ष मना रही है. जिसका मतलब है कि ये बटालियन इस वर्ष सुरक्षा बल पर बड़े हमलों को अंजाम देगी. यानी नक्सली माडवी हिडमा, हाफिज सईद की तरह ही भारत के लिए काफी खतरनाक है और हम आज ये कहना चाहते हैं कि हाफिज सईद से पहले हिडमा के खिलाफ एक बड़े ऑपरेशन की जरूरत इस समय देश को है और आज के DNA में हम इसी का विश्लेषण करेंगे.


साथ ही आज हम एक और जरूरी सवाल उठाएंगे और वो ये कि जब कोई देश आतंकवाद का मुकाबला करता है या किसी दुश्मन देश के खिलाफ मैदान में होता है तो वो लड़ाई इतनी मुश्किल नहीं होती, लेकिन जब यही लड़ाई अपनों के खिलाफ होती है तो फिर कई चुनौतियां सामने होती हैं और इस नक्सली हमले के दौरान भी ऐसा ही हुआ. हमारे जवान जिस नक्सली माडवी हिडमा को पकड़ने गए थे, वो पाकिस्तान या किसी और देश का रहने वाला नहीं है. 


मानवाधिकारों की बात


हिडमा का जन्म छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में ही हुआ है. यानी वो इसी देश का नागरिक है, लेकिन इस संघर्ष में हमारे हाथ बंधे होते हैं और बेड़ियां होती हैं मानवाधिकारों की. जब सुरक्षा बल नक्सलियों के खिलाफ किसी बड़े ऑपरेशन को लॉन्च करते हैं तो मानवाधिकारों का पालन किया जाता है. कई संस्थाएं इस पर नोटिस जारी करती हैं, लेकिन जब नक्सली कोई हमला करते हैं तो उनके हाथ बंधे नहीं होते. वो खुलेआम खून बहाते हैं और छत्तीसगढ़ के बीजापुर में ऐसा ही हुआ.


नक्सलियों के हमले में शहीद हुए 22 जवानों की कहानी 


छत्तीसगढ़ के बीजापुर में तीन अप्रैल की सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक नक्सलियों और सुरक्षा बल के बीच मुठभेड़ हुई और इस मुठभेड़ में हमारे 22 जवान शहीद हो गए. इनमें कांकेर के शहीद जवान रमेश जुर्री भी हैं. उनकी चार साल पहले ही शादी हुई थी और उनकी तीन साल की एक बेटी है, जिसने आज उन्हें श्रद्धांजलि अपर्ति की. परिवार के लोग जब उसे शहीद पिता के पार्थिव शरीर के पास लेकर गए तो इस बच्ची को शायद पता भी नहीं था कि वो अपने पिता को आखिरी बार देख रही है. सोचिए एक जवान अपने देश की रक्षा के लिए अपने पीछे अपने परिवार को किस तरह अकेला छोड़ कर चला जाता है.


परिवार की हिम्मत और उम्मीदें टूट गईं


इस दर्द को आप अयोध्या से आई तस्वीरों से भी समझ सकते हैं, जहां शहीद राज कुमार यादव के परिवार को जब उनकी शहादत की खबर मिली तो पूरे परिवार की हिम्मत और उम्मीदें टूट गईं. गांव में शोक की लहर दौड़ गई और हर किसी की आंखें नम दिखीं. शहीद राज कुमार यादव कोबरा बटालियन के कमांडो थे और तीन भाईयों में सबसे बड़े थे. दो महीने पहले 10 जनवरी को ही उन्होंने अपनी मां का कैंसर का ऑपरेशन कराया था और इसके बाद वो ड्यूटी पर छत्तीसगढ़ आ गए थे. उन्होंने अपनी मां से वादा किया था कि वो जल्द ही घर आकर उनसे मिलेंगे, लेकिन एक वादा उन्होंने भारत मां से भी किया था और उसे निभाने के लिए उन्होंने सर्वोच्च बलिदान दे दिया. 


छत्तीसगढ़ के गरियाबन्द में जब शहीद सुख सिंह की पत्नी को उनकी शहादत की खबर मिली तो उन्हें बड़ा धक्का लगा. शहीद सुख सिंह ने अपनी पत्नी को वादा किया था कि वो 3 अप्रैल को घर जरूर लौटेंगे,  लेकिन वो अपना ये वादा पूरा नहीं कर पाए और इससे इनकी पत्नी को गहरा सदमा लगा है.आज हम उन्हें भी सलाम करते हैं. सोचिए शहीद जवानों का भी तो परिवार होता है, उनके भी बच्चे होते हैं, माता पिता होते हैं, जीवनसाथी होता है, लेकिन वो ये सब भूल कर देश की रक्षा के लिए अपनी शहादत दे देते हैं और इसलिए आज हम उन्हें नमन करना चाहते हैं.


शहीद सुख सिंह की तरह और भी जवान हैं, जिनके घरों में आज मातम पसरा हुआ है क्योंकि, ये शहीद देश की रक्षा के लिए अपने पीछे एक हंसता खेलता परिवार छोड़ गए हैं. आज हमने शहीदों के गांवों और उनके घरों से एक ग्राउंड रिपोर्ट आपके लिए तैयार की है, जो हम उन्हें समर्पित करते हैं.


छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सली हमले में 22 जवान शहीद हो गए. पूरा देश और इनके परिवार गौरवान्वित है, लेकिन इनकी कमी आंसुओं के साथ बह रही है.


बीजापुर में सैनिक सम्मान के साथ इन जवानों को श्रद्धांजलि दी गई. जब शहीदों के परिवारों को दर्शन की मोहलत मिली तो उनकी चीखें गूंज रही थीं. देश के अलग-अलग हिस्सों से जवानों के पार्थिव जब उनके घर भेजे गए, तो परिवार ही नहीं. पूरा गांव रो पड़ा. छत्तीसगढ़ के ही गरियाबांद में शहीद सुख सिंह फरस का पार्थिव शरीर जब पहुंचा तो परिवार खबर से सदमे में था. शव देखकर वो टूट गया.


कांकेर के रमेश जुर्री भी बीजापुर में अपने शहीद साथियों के साथ चले गए. उनका बेजान शरीर उनके गांव गांव पहुंचा तो परिवार अपने पैरों पर ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था. उनकी पत्नी का रो रोकर बुरा हाल था. 


शहीद रमेश की 3 साल की बेटी है. उसकी उम्र नहीं ये समझने की कि उसके पिता के साथ क्या हुआ है, लेकिन मां को रोता देख मन उदास है. सैनिक सम्मान के साथ श्रद्धांजलि सभा में रमेश की बेटी ने भी उनके चरण स्पर्श किए.


छत्तीसगढ़ के ही अंबिकापुर के अमदला गांव में भी मातम है. यहां के जवान रामाशंकर सिंह ने देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी. परिवार जब भी शहीद रामाशंकर का वो वादा याद करती है तो रो पड़ता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अबकी बार लौटकर आउंगा तो घर बनावाउंगा. एक महीने पहले ही रामाशंकर घर आए थे और पत्नी को भरोसा दिलाकर फर्ज निभाने चले गए थे. ऐसा नहीं है कि परिवार ने किसी अपने को खोया तो टूट गया. शहीद रामाशंकर के भाई इस बात पर गर्व महसूस कर रहे हैं कि उनका भाई देश के काम आया.


किसी ने अपना भाई खो दिया, ताे किसी ने बेटा   


उत्तर प्रदेश के चंदौली से ही एक जवान धर्मदेव कुमार ने बीजापुर में अपनी शहादत दी. शहीद धर्मदेव की खबर सुनकर पूरा इलाके जैसे परिवार को सांत्वना देने पहुंच गया. सभी को गर्व था, उनके गांव का एक लाल, देश सेवा में लगा था. प्रशासन के अधिकारी शहीद धर्मदेव के भाई आनंद को सांत्वना देते नजर आए. सीएम योगी ने शहीद के परिवारों को 50 लाख की आर्थिक मदद देने का ऐलान किया है, लेकिन जब किसे ने अपना भाई खो दिया तो सब बेमानी हो जाता है.



शहीद धर्मदेव की पत्नी गर्भवती हैं, घर में बूढ़े मां-बाप भी हैं, लेकिन स्थिति को देखकर उन्हें इस सदमे की खबर से दूर रखा गया है. दो बेटियों के सिर से बाप का साया उठ गया है. परिवार दुख में है, वो बदला चाहता है, वो चाहता है कि नक्सलियों को किसी हाल में नहीं बख्शना चाहिए.


छत्तीसगढ़ के कोंडगांव में शहीद रामदास का पार्थिव शरीर जब तक गांव नहीं पहुंचा था, तब तक उनका परिवार उनकी फोटो दिया जलाकर इनका इंतजार कर रहा था. शहीद रामदास की शहादत पर परिवार दुखी है, लेकिन वो नक्सलियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई चाहता है.


नक्सली हमले में जम्मू के जवान राकेश्वर सिंह मन्हास लापता हैं. फिलहाल उनकी तलाश की जा रही है. राकेश्वर सिंह का परिवार सरकार से अपील कर रहा है कि उन्हें कुछ भी करके सुरक्षित घर वापस लाया जाए.  बीजापुर में हमले के बाद नक्सलियों ने जवान राकेश्वर सिंह को अगवा कर लिया था, जिसके बाद उनकी कोई खबर नहीं है. जवान राकेश्वर की मासूम बेटी भी पापा को जल्दी घर वापस लाने की अपील कर रही है. 


गृह मंत्री अमित शाह पहुंचे जगदलपुर


छत्तीसगढ़ में 22 जवानों की शहादत ने देश को फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हमें खतरा किससे है. दुश्मन देशों से या अपने घर में छिपे दुश्मन से. कल 5 अप्रैल को देश के गृह मंत्री अमित शाह भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश लेकर छत्तीसगढ़ के जगदलपुर पहुंचे, जहां उन्होंने शहीदों को श्रद्धांजलि दी. इसके बाद उन्होंने एक हाई लेवल मीटिंग की, जिसमें छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी शामिल हुए. खबरें है कि इस मीटिंग में नक्सलियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर ऑपरेशन को लेकर योजना पर चर्चा हुई. इसके बाद अमित शाह ने रायपुर के अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती घायल जवानों से भी मुलाकात की. इसके बाद वो बासागुड़ा के सीआरपीएफ कैम्प भी पहुंचे, जहां उन्होंने जवानों का हौसला बढ़ाया.


ऐसी जगह जहां मुख्‍यमंत्री भी नहीं जाते 


बासागुड़ा असल में एक ऐसी जगह है, जहां छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री या मंत्री भी नहीं जाते. यहां नदी पर एक पुल है और पुल के इस पार सुरक्षा बल के जवान तैनात हैं जबकि उस पार नक्सल प्रभावित इलाका है. ऐसे में अमित शाह का इस बेस कैम्प पर पहुंचना काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जिसका जिक्र उन्होंने अपने बयान में भी किया. उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि बीजापुर में शहीद हुए जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा.


समझिए कहां और कैसे हुआ ये हमला


-25 मार्च को केंद्रीय सुरक्षा बलों को तर्रेम और सिलगर बेस कैम्‍पों के पास 60 से 70 नक्सलियों के छिपे होने की सूचना मिली थी और ड्रोन से ली गई तस्वीरों में इसकी पुष्टि भी हुई थी. जवानों के लिए सबसे बड़ी खबर ये थी कि इन इलाकों में माडवी हिडमा भी छिपा था, जो पीपुल्‍स लिबरेशन गुरिल्‍ला आर्मी की बटालियन वन का प्रमुख है और उसे घातक और खतरनाक हमलों के लिए जाना जाता है.


-हिडमा 180 से 250 माओवादियों के दस्ते का नेतृत्व करता है और सीपीआई माओवादी की 21 सदस्यीय सेंट्रल कमेटी का भी सदस्य है. उसकी उम्र 40 साल है और उसे संतोश, इंदमुल और पोडियाम भीमा के नाम से भी जाना जाता है. उस पर 25 लाख का इनाम भी है. बड़ी बात ये है कि उसे ही इस नक्सली हमले का मास्टरमाइंड माना जा रहा है. यानी यही असली खलनायक है.


-माडवी हिडमा 1990 के दशक में नक्सली बना था और वो काफी समय से सुरक्षा बलों के रडार पर था. ऐसे में बीजापुर के पहाड़ी और घने जंगलों में जब उसके छिपे होने की सूचना मिली तो 2 अप्रैल को एक ऑपरेशन लॉन्च किया गया और कुल 10 टीमें इस ऑपरेशन का हिस्सा थीं, जिनमें केंद्रीय अर्धसैनिक बल सीआरपीएफ, छत्तीसगढ़ पुलिस की डिस्ट्रिक्‍ट रिजर्व गार्ड, स्‍पेशल टास्‍क फोर्स और कोबरा बटालियन की टुकड़ियां इसमें शामिल थीं.


-इनमें से दो टीमें सुकमा जिले से बीजापुर के टेकलगुड़ा इलाके के लिए रवाना हुईं, जबकि 8 टीमें बीजीपुर के अलग अलग बैस कैम्प से दक्षिण की तरफ टेकलगुड़ा पहुंची.  इनमें से 6 टीमें बीजापुर के तर्रेम कैम्प और एक एक टीम उसूर और पामेड कैम्प से ऑपरेशन के लिए घने जंगलों की तरफ बढ़ी.


-इन सभी टीमों को 3 अप्रैल की सुबह वापस अपने अपने बैस कैम्प पहुंचना था, लेकिन जब इनमें से 3 टीमें टेकलगुड़ा पहुंची तो यहां नक्सलियों ने उन्हें तीन तरफ से घेर लिया. यहां एक महत्वपूर्ण जानकारी ये सामने आ रही है कि इस इलाके में 15 से 20 घरों वाले छोटे छोटे चार गांव हैं, जिनमें एक गांव उस समय पूरी तरह खाली था और यहीं पर लगभग 400 नक्सली U के आकार में पहले से छिपे हुए थे.



-पहाड़ी इलाका होने की वजह से सुरक्षा बलों के जवानों को इसकी भनक नहीं लगी और जब ये सभी जवान नक्सलियों का आसान टार्गेट बन गए तो उन्होंने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. ये मुठभेड़ सुबह 11 बजे शुरू हुई और शाम 4 बजे तक चली. नक्सली ऊंची चट्टानों के पीछे छिपे हुए थे, जिसके लिए अंग्रेजी का एक शब्द Sitting Ducks का भी इस्तेमाल किया जा रहा है.


-इसका अर्थ होता है, जब कोई व्यक्ति उस स्थिति में फंस जाए, जहां दुश्मन के लिए वो आसान टार्गेट होता है और यही वजह है कि जब नक्सलियों ने गोलीबारी शुरू की तो जवानों के लिए वहां से निकलना मुश्किल हो गया.


-लगभग 700 जवान इस U आकार के षड्यंत्र में फंस गए और नक्सलियों ने हमले के लिए AK-47 राइफल, X-95 राइफल, अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्‍चर और इंसास राइफल का इस्तेमाल किया. नक्सलियों ने रॉकेट लॉन्चर बनाने के लिए मोटर साइकल के साइलेंसर का भी इस्तेमाल किया. सोचिए, हमारे देश के जवानों के खिलाफ नक्सलियों ने कितनी खतरनाक तैयारी की थी. 


कई जवान लापता 


इस मुठभेड़ के दौरान हमारे 22 जवान शहीद हो गए, जबकि 31 जवान घायल हुए हैं और एक जवान अब भी लापता है, जो सीआरपीएफ  की कोबरा 210 बटालियन का हिस्सा है और इस जवान का नाम राकेश्वर सिंह मन्हास है क्योंकि, हमले के दौरान ज्‍यादातर जवान किसी तरह पास के सिलगर बैस कैम्प पहुंच गए थे, इसलिए काफी देर तक शहीदों के पार्थिव शरीर वहां से लाए नहीं जा सके. इससे नक्सलियों को काफी समय मिला और वो शहीदों के हथियार, उनके कपड़े और जूते तक उतार कर ले गए. हालांकि Zee Media के Zee Madhya Pradesh Chattisgarh चैनल के रिपोर्टर बप्पी राय और राजेश दुर्गम सबसे पहले ग्राउंड जीरो पर पहुंचे और हमने वहां जो मंजर देखा वो काफी डराने वाला था.


जब हमारी टीम वहां पहुंची तो वहां से कुछ दूर नक्सलियों के मौजूद होने की खबर थी. नक्सलियों के अलग-अलग गुट लगातार उस जगह पर नजर रख रहे थे, लेकिन तमाम खतरों के बावजूद हम टेकलगुड़ा नाम की इस जगह पर पहुंचे, जो घने जंगलों के बीच है. हमारे लिए यहां रिपोर्टिंग करना बिल्कुल भी आसान नहीं था, लेकिन हमारे रिपोर्टर बप्पी राय और राजेश दुर्गम किसी तरह हिम्मत करके मुठभेड़ वाली जगह पर पहुंच गए. 


हमारी टीम ने वहां मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों के शव पड़े देखे. इसके अलावा हमारे जवानों के पार्थिव शरीर भी वहां थे.  टेकलगुड़ा से, हमारे लिए रिपोर्टिंग करना बिल्कुल भी आसान नहीं था, लेकिन हमने निडर होकर ग्राउंड जीरो से कई महत्वपूर्ण जानकारियां इकट्ठा कीं. 


आज जब एयर कंडीशंड स्‍टूडियोज से प्रसारित होने वाली खबरों का जमाना है, तब हमारी टीम कैसे अपनी जान पर खेल कर बीजापुर के नक्सल प्रभावित टेकलगुड़ा में पहुंची. मुठभेड़ के कुछ देर बाद ही हमने वहां से एक ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की. 


बस्‍तर का आधे से ज्‍यादा हिस्‍सा नक्‍सल प्रभावित


ये नक्सली हमला छत्तीसगढ़ के बस्तर डिविजन में हुआ है, जिसमें बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा और कांकेर जिले आते हैं. ये डिविजन क्षेत्रफेल के मामले में केरल जैसे राज्य से भी काफी बड़ा है, लेकिन इसका आधे से ज्‍यादा हिस्सा नक्सल प्रभावित है. इसे आप ऐसे समझिए कि जैसे आधे केरल पर नक्सलियों का प्रभाव हो. इस प्रभाव को कम करने के लिए ही पिछले काफी समय से सुरक्षा बल के जवान इन इलाकों में नए नए कैम्‍प बना रहे हैं और सिर्फ पिछले एक वर्ष में ही 16 ऐसे कैम्प बनाए जा चुके हैं. नक्सली इससे काफी बौखलाए हुए हैं और माडवी हिडमा परेशान है.


सिलगर बेस कैम्‍प ने बढ़ाई नक्‍सलियों की परेशानी


इन 16 कैम्‍पों में सिलगर बेस कैम्‍प सबसे महत्वपूर्ण है, जिसे इस हमले की वजह भी माना जा रहा है क्योंकि, ये कैम्प हमले की जगह से 6 किलोमीटर दूर पर ही है. यानी सुरक्षा बल नक्सलियों के जितने नजदीक पहुंच रहे हैं, उतना ही वो परेशान हो रहे हैं. 


यहां समझने वाली बात ये है कि जहां आंध्र  प्रदेश और बिहार जैसे राज्य माओवादियों का गढ़ थे, वहीं वर्ष 2000 के बाद से छत्तीसगढ़ का बस्तर डिविजन ही इनका नया एपिसेंटर बन गया. इसे आप  इस आप इन आंकड़ों से समझिए-


-इस समय पूरे देश में जितने भी नक्सली हमले होते हैं, उनमें 50 प्रतिशत से ज़्यादा सिर्फ Bastar Division में ही होते हैं.


-बड़ी बात ये है कि हमारे देश में आतंकवादी हमलों के दौरान एक दिन में कभी इतने जवान शहीद नहीं हुए, जितने नक्सली हमलों के दौरान होते हैं. आपको याद होगा कि 14 फरवरी 2019 को जम्मू कश्मीर के पुलवामा में CRPF जवानों के काफ़िले पर बड़ा आतंकवादी हमला हुआ था. तब उस हमले में 40 जवान शहीद हुए थे और इस हमले का बदला लेने के लिए भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के बालाकोट पर एयर स्ट्राइक कर दी थी, लेकिन क्या आपको याद है कि 6 अप्रैल 2010 को जब Bastar Division के दंतेवाड़ा में नक्सली हमला हुआ था तो इसमें CRPF के 76 जवान शहीद हो गए थे. ये हमारे देश में आज़ादी के बाद से अब तक सबसे बड़ा आंतरिक हमला था, लेकिन सोचिए क्या हमने तब एयर स्ट्राइक की? हमने ऐसा कुछ नहीं किया.


-2010 में जब ये हमला हुआ था, उसके बाद ये खबर चर्चा में थी कि नक्सलियों पर जवाबी हमले के लिए भारतीय वायु सेना की मदद ली जा सकती है, लेकिन काफी बहस के बावजूद ऐसा नहीं किया गया. यहां ध्यान देने वाली बात ये भी है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ भारत की सेना पहले मोर्चे पर तैनात रहती है, लेकिन नक्सल प्रभावित राज्यों में ये काम केन्द्रीय अर्धसैनिक बलों के पास रहता है.


आज हमें ये भी सोचना चाहिए कि जब नक्सली आधुनिक हथियारों के साथ घात लगा कर हमारे जवानों पर हमला करते हैं तो हम फिर इन नक्सलियों से उसी तरह से क्यों न निपटें, जिस तरह से हम आतंकवादियों से निपटते हैं? हकीकत तो ये है कि इस सवाल को हम हमेशा से टालते आए हैं, लेकिन एक सच ये भी है कि इसे हमेशा के लिए नहीं टाला जा सकता.


नक्सली हमले में 22 जवानों की शहादत पर हमें मशहूर लेखक और पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी की कविता याद आती है और वो ये कि


चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊं,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊं,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊं,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूं भाग्य पर इठलाऊं,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!