DNA ANALYSIS: WHO ने चीन के `गुनाहों` पर डाला पर्दा, क्या इन 5 सवालों के जवाब देगा?
WHO पर ये आरोप लग रहे हैं कि उसने चीन के इशारे पर कोरोना वायरस के खतरे को नज़र अंदाज़ किया और आज ये महामारी पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ा संकट बन गई है. इस बात पर अमेरिका तो WHO से इतना नाराज़ है कि उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन को दी जाने वाली आर्थिक मदद भी रोक दी है.
भारत में कुछ लोग कोरोना वायरस के खिलाफ इस लड़ाई को कमजोर कर रहे हैं और दुनिया मे भी ऐसा ही हो रहा है. भारत में एक मशहूर कहावत है कि नीम हकीम खतरा ए जान. यानी अगर आप किसी बीमारी का इलाज कराने किसी ऐसे नीम हकीम के पास पहुंच जाएंगे जिसे बीमारी के बारे में पता ही नहीं है तो वो आपकी जान के लिए खतरा बन जाएगा.
दुनिया नीम-हकीमों के दौर से बहुत आगे निकल आई है, और दुनिया के लोगों का जीवन बचाने के लिए बड़े-बड़े संगठनों की स्थापना भी कई गई है. ऐसी ही एक संस्था है विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO. WHO का काम पूरी दुनिया के स्वास्थ्य की रक्षा करना और इसके लिए नीतियां तैयार करना है लेकिन अब इस संस्था पर ये आरोप लग रहे हैं कि WHO ने चीन के इशारे पर कोरोना वायरस के खतरे को नज़र अंदाज़ किया और आज ये महामारी पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ा संकट बन गई है. इस बात पर अमेरिका तो WHO से इतना नाराज़ है कि उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन को दी जाने वाली आर्थिक मदद भी रोक दी है.
अमेरिका WHO को सबसे ज्यादा आर्थिक मदद देने वाला देश है. पिछले वर्ष WHO का बजट 45 हज़ार करोड़ रुपये था और इसमें अमेरिका ने 4 हज़ार 150 करोड़ रुपये का योगदान दिया था. ये WHO को मिली कुल मदद का 15 प्रतिशत था. WHO को मदद रोकने की घोषणा करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि WHO की लापरवाही की वजह से ही पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के मामले 20 गुना बढ़ गए हैं ।
इसलिए आगे बढ़ने से पहले आप ये सुनिए कि राष्ट्रपति ट्रंप ने कैसे WHO के प्रति अपने गुस्से का इजहार किया.
ट्रंप ने अपने इस बयान के दौरान कहा कि सब जानते है- वहां क्या चल रहा है ? जाहिर है उनका इशारा चीन और WHO की तरफ था. विश्व स्वास्थ्य संगठन काफी हद पर अमेरिका से मिलने वाली मदद पर निर्भर है। WHO को सबसे ज़्यादा आर्थिक मदद अमेरिका से ही मिलती है. WHO को मदद देने के मामले में चीन दूसरे नंबर पर है जिसने पिछले साल WHO को करीब 650 करोड़ रुपये दिए थे. ये बात ठीक है कि अमेरिका का प्रशासन भी, इस महामारी को रोकने में असफल रहा है लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि WHO को सभी आरोपों से बरी कर दिया जाए.
उदाहरण के लिए इसी साल 14 जनवरी को WHO ने दावा किया कि कोरोना वायरस इंसानों से इंसानों में नहीं फैल रहा है. हैरानी की बात ये है कि इसी दिन वुहान के स्वास्थ्य आयोग ने साफ किया था कि इंसानों से इंसानों में संक्रमण की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. इस समय WHO के डायरेक्टर जनरल - टेड्रोस एधानॉम घेबरेयसिस हैं. इन्हीं डॉक्टर टेड्रोस पर WHO से जुड़े बड़े फैसले लेने की जिम्मेदारी है लेकिन अब उनकी नेतृत्व क्षमता और उनकी नीयत दोनों पर सवाल उठ रहे हैं.
ऐसा इसलिए है क्योंकि महामारी के खतरे के बावजूद डॉ. टेड्रोस चीन की तारीफ करते रहे. जनवरी में ही टेड्रोस ने चीन की यात्रा की, राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की और संक्रमण रोकने के मामले में चीन के मानकों की तारीफ की लेकिन अब 45 दिनों के बाद चीन के वही मानक पूरी दुनिया में करीब सवा लाख से ज्यादा लोगों की मौत की वजह बन चुके हैं.
जुलाई 2017 में WHO के महानिदेशक का पद संभालने वाले डॉक्टर टेड्रोस इथियोपिया के नागरिक हैं. टेड्रोस को WHO का चीफ बनाने में चीन ने ही मदद की थी. वो चीन ही था जिसने टेड्रोस के कैंपेन को सपोर्ट किया था. चीन ने उनके पक्ष में ना सिर्फ अपना महत्वपूर्ण वोट दिया..बल्कि दूसरे देशों के वोट हासिल करने में भी उनकी मदद की थी.
आरोप लगाने वाले कह रहे हैं कि चीन के गुनाहों पर पर्दा डालकर अब टेड्रोस अपना कर्ज़ चुका रहे हैं. सिर्फ अमेरिका ही नहीं कोरोना वायरस पर तेज़ी से काबू पाने वाला देश ताइवान भी WHO की निंदा कर चुका है. चीन के दबाव की वजह से ही ताइवान अभी तक WHO का सदस्य नहीं बन सका है क्योंकि चीन ताइवान को एक स्वतंत्र देश नहीं बल्कि अपना हिस्सा मानता है. हैरानी की बात ये है कि WHO की मदद के बिना ही ताइवान ने कोरोना वायरस पर काबू पा लिया है और वहां पिछले एक महीने में संक्रमण का एक भी नया मामला सामने नहीं आया है. अब गलतियों के बावजूद WHO चाहता है कि दुनिया के देश उसे 7 हज़ार 500 करोड़ रुपये की अतिरिक्त मदद दे.
सिर्फ अमेरिका के राष्ट्रपति ही नहीं बल्कि अमेरिका के कई सांसद भी अब WHO की आलोचना कर रहे हैं. अमेरिका के कुछ सासंदों ने भी WHO के चीफ डॉक्टर टेड्रोस को एक चिट्ठी लिखी है और उनसे कुछ सवालों के जवाब मांगे हैं. ये चिट्ठी WHO के खिलाफ जांच का आधार भी बन सकती है. इस चिट्ठी में लिखा है कि इस मामले पर अमेरिका की कांग्रेस में सुनवाई हो सकती है, क्योंकि WHO को अमेरिका जो आर्थिक मदद देता है वो पैसा अमेरिका के टैक्स पेयर्स की जेब से ही जाता है.
अमेरिका के ये सासंद इस महामारी को लेकर WHO की जवाबदेही तय करना चाहते हैं. इस चिट्ठी का संदेश ये है कि जब WHO दुनिया के अलग अलग देशों की जनता के पैसे से चलता है तो WHO को इस पैसे का पूरा हिसाब भी देना होगा. अमेरिकी सासंदों द्वारा लिखी गई ये चिट्ठी इस समय मेरे हाथ में हैं. इस चिट्ठी की एक कॉपी संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को भी भेजी गई है.
इस चिट्ठी में 6 सवाल पूछे गए हैं । पहला सवाल ये कि WHO ने इस महामारी को लेकर अभी तक क्या किया है ?
दूसरा सवाल ये है कि WHO के मानक आखिर क्या है और संक्रमण रोकने के लिए WHO द्वारा क्या कदम उठाए गए ?
तीसरा सवाल ये है कि WHO को चीन में संक्रमण की पहली जानकारी कब मिली थी ?
चौथा सवाल ये है कि WHO की टीम ने इसकी जांच करने के लिए चीन का दौरा कब किया ?
पांचवां सवाल ये है कि WHO में कोरोना वायरस के संक्रमण पर नज़र कौन रख रहा था और कौन चीन की सरकार के साथ इस पर बात कर रहा था? और आखिरी सवाल ये है कि क्या WHO के किसी भी सदस्य को उनकी तनख्वाहों के अलावा बाहर से कोई आर्थिक मदद भी मिली थी ?
DNA वीडियो:
WHO से पांच सवाल:
WHO को अभी इन सवालों के जवाब देने हैं लेकिन WHO का ट्रैक रिकॉर्ड देखकर नहीं लगता कि वो इस मामले पर जल्दी अपना पक्ष रखेगा क्योंकि इस संस्था को दुनिया को इंतज़ार कराने की आदत है. WHO की उपस्थिति 147 देशों में है. इसकी स्थापना सात दशक पहले हुई थी और इसका मकसद दुनिया से महामारियों को हमेशा के लिए खत्म करना था. WHO को इस उद्देश्य में एक हद तक कामयाबी भी मिली है लेकिन कोरोना वायरस को लेकर बरती गई लापरवाही अब उसकी सबसे बड़ी असफलता बन गई है. इसलिए आज हम पांच सवालों के जरिए WHO की इस असफलता को समझने की कोशिश करेंगे.
पहला सवाल ये है कि ये प्रमाण मिलने के बाद भी कि ये वायरस इंसानों से इंसानों में फैल रहा है, WHO ने इसे गंभीरता से क्यों नहीं लिया? चीन में संक्रमण की शुरुआत में ही एक प्रतिष्ठित मेडिकल जनरल में ये दावा किया गया था कि ये संक्रमण इंसानों से इंसानों में फैल रहा है. स्टडी में पाया गया था कि वुहान में संक्रमण का शिकार हुए शुरुआती 44 लोगों में से 14 कभी वुहान सी फूड मार्केट गए ही नहीं थे. यानी 32 प्रतिशत लोगों को ये संक्रमण किसी दूसरे इंसान से हुआ था.
दूसरा सवाल ये है कि WHO ने लंबे समय तक इसे महामारी घोषित क्यों नहीं किया ? फरवरी के अंत तक लगभग हर महाद्वीप में संक्रमण के मामले सामने आ चुके थे लेकिन WHO ने संक्रमण की शुरुआत के 57 दिनों के बाद यानी 11 मार्च को महामारी घोषित किया. इन 57 दिनों में पूरी दुनिया में 4 हज़ार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी थी और एक लाख 18 हज़ार लोग इससे संक्रमित हो चुके थे. WHO भी मानता है कि जब कोई बीमारी दुनिया के कई देशों में फैल जाती है तो वो महामारी बन जाती है लेकिन इस बार WHO ने अपने ही मानकों और सिद्धांतों को नहीं माना.
तीसरा सवाल ये है कि इस साल जनवरी में डॉक्टर टेड्रोस के नेतृत्व में चीन गई WHO की टीम को वहां से क्या हासिल हुआ ? जब ये दौरा हुआ तब तक 131 लोगों की मौत हो चुकी थी और साढ़े चार हज़ार से ज्यादा लोग संक्रमण का शिकार हो चुके थे लेकिन इस दौरान हासिल की गई जानकारियां अमेरिका समेत किसी देश के साथ नहीं बांटी गई.
चौथा सवाल ये है कि WHO ने WUHAN VIRUS का नाम क्यों बदला? 11 फरवरी तक ये Virus दुनिया के कई देशों में फैल चुका था लेकिन इस दौरान WHO इसके नामकरण में व्यस्त था. WHO सारी कोशिश ये थी कि इसका नाम किसी भी तरह से चीन से ना जुड़े और इसी सोची समझी नीति के तहत इस बीमारी का नाम Wuhan Virus की जगह Covid-19 रख दिया गया जबकि इससे पहले WHO खुद कई देशों और क्षेत्रों के नाम पर अलग अलग वायरस के नाम रख चुका है.
पांचवा सवाल ये है कि क्या WHO कभी इस महामारी से निपटने के मामले में ताइवान की तारीफ करेगा. ताइवान ने इस दौरान क्या उपलब्धि हासिल की है ये हम आपको बता चुके हैं लेकिन WHO ने अभी तक इसे तारीफ का एक शब्द तक नहीं कहा है.
ताइवान ने ही सबसे पहले दुनिया को इस वायरस के प्रति आगाह किया था. ताइवान ने दिसंबर 2019 में WHO को वुहान में संक्रमण के सात मामलों की जानकारी दी थी लेकिन WHO ने इस पर ध्यान नहीं दिया और वो अब भी चीन के दबाव में ताइवान के साथ भेदभाव कर रहा है. कुल मिलाकर आप कह सकते हैं कि शायद WHO को चीन से आगे कुछ दिखाई नहीं देता और WHO की यही जिद अब पूरी दुनिया पर भारी पड़ रही है.