नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के हाथरस में जिस लड़की की मौत दो दिन पहले हुई, जो अन्याय हुआ उससे जुड़ी हर खबर हम आप तक पहुंचा रहे हैं. इस घटना में कुछ लोग पीड़ित परिवार का जाति धर्म खोजने में जुटे थे. इनमें सबसे आगे थी कांग्रेस पार्टी और उसके बड़े नेता.


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राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा पीड़ित परिवार से मिलने के लिए दिल्ली से निकले हाथरस जा रहे उनके काफिले को जब यमुना एक्सप्रेस वे पर रोका गया तो वो गाड़ी से उतरकर पैदल चल पड़े. इस दौरान उनकी पुलिस के साथ धक्का मुक्की हुई और एक बार तो राहुल गांधी सड़क पर गिर पड़े.


यूपी पुलिस ने राहुल गांधी को बताया कि हाथरस में धारा 144 लगी हुई है और वो वहां नहीं जा सकते. राहुल गांधी 4 बार के सांसद हैं और उन्हें कानून व्यवस्था की अच्छी समझ है लेकिन राहुल गांधी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे.


यूपी पुलिस राहुल गांधी से प्लीज, प्लीज कर रिक्वेस्ट करती रही लेकिन राहुल गांधी हाथरस जाने की जिद पर अड़े रहे.


हाथरस जाने से ज्यादा दिलचस्पी मीडिया के कैमरों पर
राहुल गांधी लगातार मीडिया कैमरों की ओर इशारा कर रहे थे कि आप भी साथ बढ़िए. शायद उनकी दिलचस्पी हाथरस जाने से ज्यादा मीडिया के कैमरों पर थी.


इसके बाद पुलिस ने कुछ समय के लिए राहुल गांधी को हिरासत में भी लिया. सड़क पर चल रहे ड्रामे का टीवी पर प्रसारण हुआ और जब राहुल और प्रियंका को लगा कि उन्हें मीडिया में काफी फुटेज मिल चुका है तब वो दिल्ली वापस लौट आए.


इस बीच हाथरस घटना की फॉरेंसिक रिपोर्ट आ गई है जिसमें रेप की पुष्टि नहीं हुई है, लड़की की जीभ काटे जाने की पुष्टि भी नहीं हुई है, रीढ़ की हड्डी और गर्दन में चोट पाई गई है.


राहुल और प्रियंका के पॉलिटिकल पर्यटन का पैटर्न
राहुल और प्रियंका पहले भी ऐसे पॉलिटिकल पर्यटन करते रहे हैं. चाहे वर्ष 2011 का भट्टा परसौल हो या जून 2018 में मंदसौर किसान आंदोलन. दिसंबर 2019 में सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान प्रियंका गांधी वाड्रा लखनऊ की सड़कों पर कुछ इसी अंदाज में नजर आई थीं. राहुल और प्रियंका के पॉलिटिकल पर्यटन का एक पैटर्न है. इस पैटर्न को समझना जरूरी है. विरोध दर्ज कराने का ये तरीका सिर्फ उन राज्यों तक ही सीमित रहता है जहां बीजेपी या किसी अन्य दल की सरकार होती है. यदि घटना कांग्रेस शासित राज्य की है तो वहां खामोश रहना ही बेहतर समझा जाता है. बीते दो दिनों में राजस्थान के बारां जिले से गैंगरेप की खबरे आईं लेकिन राहुल गांधी या प्रियंका गांधी वाड्रा का कोई ट्वीट तक नहीं आया.


देश में इस समय कांग्रेस पार्टी की चार राज्यों में सरकार है और गांधी परिवार के ऊपर पार्टी को रिवाइव करने का बहुत दबाव है, एक समय कांग्रेस ही ज्यादातर राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टी होती थी और केंद्र में भी उनकी सरकार थी लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में 44 सीट और 2019 के आम चुनाव में 52 सीट पर सिमटने के बाद अब पार्टी की हालत ऐसी हो गई कि कोई भी कांग्रेस को मुख्य विपक्षी दल मानने को तैयार नहीं है.


पार्टी पर गांधी परिवार की पकड़ पहले जैसी नहीं
कांग्रेस पार्टी कमजोर हो चुकी है पार्टी पर गांधी परिवार की पकड़ भी पहले जैसी नहीं है. हाल ही में कांग्रेस पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं ने आलाकमान को जो चिट्ठी लिखी थी, उससे गांधी परिवार के नेतृत्व को सीधी चुनौती मिलती है. फिलहाल वो विवाद तो थमा है लेकिन गांधी परिवार को पता है कि ये अंदरूनी तूफान दोबारा कभी भी बाहर आ सकता है. राहुल गांधी को दोबारा पार्टी का अध्यक्ष बनाना गांधी परिवार की प्राथमिकता है. इसलिए राहुल और प्रियंका दोनों बड़े मौके की तलाश में हैं जिससे उनका राजनीतिक कद ऐसा हो जाए कि पार्टी में किसी तरह का कोई असंतोष उनके खिलाफ न हो.