नई दिल्ली: कोरोना वायरस से संघर्ष करते हुए लगभग डेढ़ वर्ष पूरे हो चुके हैं. इस दौरान हमने उन लोगों की बात की, जो इस महामारी से प्रभावित हुए. ऐसे लोगों की भी बात की, जो बेरोजगार हो गए. ऐसे लोगों के बारे में भी आपको बताया, जो घर में रहने की वजह से डिप्रेशन और एंजाइटी (Anxiety) का शिकार हुए. मजदूरों की भी बात इन डेढ़ वर्षों में हुई. किसानों की भी बात हुई. कारोबारियों की भी बात हुई और यहां तक कि अर्थव्यवस्था में गिरावट पर भी खूब चर्चा हुई. लेकिन हर बार इस चर्चा से वो बच्चे छूट गए, जिनकी जिंदगी इस संक्रमण काल में घर तक सिमट कर रह गई है. यानी इस दौरान किसी ने बच्चों की बात नहीं की.


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सोचिए कोरोना वायरस से पहले बच्चों की जिंदगी क्या होती थी?


-वो सुबह उठते ही स्कूल जाते थे.


-स्कूल में अपने दोस्तों से मिलते थे, पढ़ाई करते थे.


-फिर घर आकर आराम करते थे.


-बहुत से बच्चे स्कूल के बाद ट्यूशन क्लास लेने के लिए चले जाते थे


-फिर स्कूल से मिला होम वर्क भी करते थे


-दिनभर में उनके खेलने का समय भी तय होता था.


-पार्कों में बच्चों की रौनक होती थी.


जिंदगी घर तक ही सिमट कर रह गई 


लेकिन कोरोना वायरस ने बच्चों की इस खुशहाल और आनंद से भरी जिंदगी में उथल पुथल मचा दी. आज इस संक्रमण की वजह से बच्चों का जीवन पूरी तरह बदल गया है. कोरोना वायरस से पहले जहां बच्चे स्कूल से घर पर आकर होम वर्क करते थे, तो अब उनकी जिंदगी घर तक ही सिमट कर रह गई है. एक पल के लिए अगर सोचा जाए तो इस महामारी में सबसे बड़ा त्याग और योगदान इन करोड़ों बच्चों ने ही दिया.


बड़े बुज़ुर्ग तो फिर भी किसी न किसी काम से बाहर चले जाते हैं, लेकिन ये बच्चे डेढ़ वर्षों से घर में बंद हैं. हालांकि इसके बाद भी इन बच्चों की कभी बात नहीं हुई, लेकिन आज DNA में हम इस पर आपसे संवाद करना चाहते हैं. आज हम आपको बताएंगे कि कैसे इस महामारी ने भारत में बच्चों की जिंदगी बदल दी और कैसे पहले बच्चों के कंधों पर किताबों से भरे बैग का बोझ होता था, लेकिन अब ये बोझ कंधों से उनके दिमाग तक पहुंच गया है और ये बोझ है ऑनलाइन पढ़ाई का.


ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर शिकायत


हाल ही में एक 6 साल की एक बच्ची का वीडियो सामने आया. इस बच्ची ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर अपनी शिकायतों का एक वीडियो बनाया और कहा कि इतने छोटे बच्चों पर ऑनलाइन पढ़ाई का ये बोझ सही नहीं है. बच्ची की इस मासूमियत में कई गंभीर सवाल भी छिपे थे. इसीलिए ये वीडियो वायरल हुआ और अब जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा के हस्तक्षेप के बाद नए दिशा निर्देश जारी किए गए हैं. इसके तहत पहली से आठवीं तक की ऑनलाइन क्लास डेढ़ घंटे की होगी. नौवीं से बारहवीं की ऑनलाइन क्लास 3 घंटे की होगी और पांचवीं तक ऑनलाइन क्लास में कोई होमवर्क नहीं दिया जाएगा.


इस वीडियो का सार ये है कि आज बच्चों पर ऑनलाइन पढ़ाई का दबाव काफी बढ़ गया है.


-भारत में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की आबादी 36 करोड़ है.


-ये आंकड़ा 2011 की जनगणना से लिया गया है. यानी 10 साल में ये संख्या और भी बढ़ गई होगी.


-इसके अलावा हमारे देश में 25 करोड़ बच्चे स्कूल जाते हैं, जो अभी कोरोना वायरस की वजह से घर पर बैठे हैं.


-भारत में 15 लाख सरकारी और प्राइवेट स्कूल हैं, जिनमें 85 लाख शिक्षक बच्चों को पढ़ाते हैं, लेकिन कोरोना वायरस की वजह से अब ये व्यवस्था बदल गई है.


संक्रमण के खतरे की वजह से अभी बच्चे स्कूल नहीं जा सकते, इसीलिए स्कूल बंद हैं और स्कूल बंद हैं इसीलिए टीचर उन्हें ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं. वैसे तो कई स्टडी कहती हैं कि बच्चों को मोबाइल फ़ोन, कम्प्यूटर और लैपटॉप से दूर रहना चाहिए, लेकिन अब यही मोबाइल फोन, कम्प्यूटर और लैपटॉप उनके भविष्य की सीढ़ी बन गए हैं. आज अगर किसी बच्चे के पास इन तीनों में कोई एक चीज न हो तो वो शिक्षा हासिल ही नहीं कर पाएगा.


-सोचिए कोरोना वायरस ने शिक्षा के सिद्धांत को ही बदल दिया.


-पहले कहा जाता था कि स्कूल नहीं होंगे तो बच्चे अशिक्षित रहेंगे और अब कहा जाता है कि मोबाइल फोन नहीं होंगे तो बच्चे अशिक्षित रहेंगे.


हालांकि यहां सवाल ये है कि क्या ऑनलाइन शिक्षा उतनी प्रभावशाली है, जितनी स्कूली शिक्षा होती है? इसे पांच Points में समझिए-


सबसे बड़ा नुकसान 


पिछले डेढ़ वर्ष में ऑनलाइन पढ़ाई का जो सबसे बड़ा नुकसान सामने आया है, वो है 'Social Interaction'. डॉक्टर्स मानते हैं कि एक बच्चे के विकास में Social Interaction की बहुत बड़ी भूमिका होती है. वो बाहर जाता है, अपने दोस्तों से मिलता है, शिक्षक से संवाद करता है और ऐसी सामाजिक स्थितियों में वो कई बातें सीखता है. जैसे- वो सहयोग करना सीखता है, मदद करना सीखता है, व्यवहार और स्वभाव के गुण और अवगुण समझता है और अनुशासन में रहना सीखता है.


आपने देखा होगा कि बच्चों को एक तय समय पर स्कूल पहुंचना होता है. फिर तय समय पर ही उनको ब्रेक मिलता है, प्ले टाइम होता है और फिर स्कूल से छुट्टी भी तय समय पर मिलती है. यानी स्कूल में रहते हुए बच्चे अनुशासन में रहना सीखते हैं। और शिक्षक भी उन्हें इसका महत्व समझाते हैं। कहने का मतलब ये है कि स्कूल में सिर्फ बच्चों को ज्ञान नहीं मिलता, बल्कि वो जीवन का विज्ञान भी स्कूलों से ही सीखते हैं.


Social Interaction से दूर हुए बच्चे


हमारे देश में तो लोग ये भी कहते हैं कि जैसा स्कूल होगा, वैसा ही बच्चा होगा. लेकिन कोरोना वायरस और ऑनलाइन पढ़ाई ने बच्चों को Social Interaction से दूर कर दिया है. ये पहला पॉइंट है.


दूसरा पॉइंट, ऑनलाइन पढ़ाई का एक और बड़ा नुकसान है कि इसमें बच्चे एक सीमा तक ही किसी भी विषय के बारे में अपनी सीख और समझ को बढ़ा पाते हैं. अक्सर बच्चों की यही शिकायत रहती है कि वो ऑनलाइन पढ़ाई में कुछ समझ नहीं पाते और जितना समझते हैं, वो पर्याप्त नहीं होता. यही नहीं सिलेबस पूरा करने के चक्कर में कई बार बच्चों को अधिक समय तक ऑनलाइन क्लास लेनी पड़ती है, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है.


अमेरिकी संस्था CPR द्वारा की गई एक स्टडी के मुताबिक, लगातार लैपटॉप, कम्प्यूटर या मोबाइल फोन के सामने बैठने से बच्चों की आंखों और उनके दिमागी विकास पर असर पड़ता है. WHO का तो यहां तक कहना है कि बच्चों को ऐसी स्थिति में हर 20 मिनट के बाद एक छोटा सा ब्रेक लेना चाहिए. लेकिन सवाल है कि क्या ये सम्भव है? सोचिए एक बच्चे की एक घंटे की क्लास है, तो क्या वो 20 मिनट बाद ब्रेक ले सकता है? अभी की स्थिति में नहीं ले सकता और इसी से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है.


एक स्टडी ये भी कहती है कि बच्चे जितनी छोटी स्क्रीन पर ऑनलाइन पढ़ेंगे, उनकी आंखों पर उतना ज्यादा इसका गलत असर होगा और इस समय हमारे देश में ज्यादातर बच्चे मोबाइल फोन पर पढ़ रहे हैं क्योंकि, भारत में सभी माता पिता के लिए अपने बच्चों को लैपटॉप या कम्प्यूटर देना सम्भव नहीं है. कई माता पिता ने तो अपना मोबाइल फोन अपने बच्चों को पढ़ने के लिए दे दिया है, लेकिन सोचिए ये मोबाइल फोन बच्चों की आंखों और उनके दिमागी स्वास्थ्य पर कितना बुरा असर डाल सकते हैं.


तीसरा पॉइंट, मोबाइल फोन पर बहुत ज्यादा समय बिताने से बच्चों का स्लीप पैटर्न भी बिगड़ जाता है. अगर आपके घर में भी बच्चे पूरी नींद नहीं ले पा रहे हैं, तो आपको इस बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए.


चौथा पॉइंट, ऑनलाइन पढ़ाई के कारण बच्चों के अंदर आमने-सामने संवाद करने का गुण भी विकसित नहीं हो पाता. ऐसे में बच्चे ज्यादा शर्माते हैं, बात करने में डरते हैं और उनमें आत्मविश्वास की भी काफी कमी होती है.


और पांचवां पॉइंट ये है कि ऑनलाइन पढ़ाई बच्चों को अकेलेपन की तरफ धकेलती है. स्कूल में बच्चे एक कक्षा में साथ बैठ कर पढ़ते हैं. जबकि ऑनलाइन ऐसा संभव नहीं होता. ऐसे में ये दूरी उन्हें अकेलेपन की तरफ धकेलती है और बच्चों के अंदर इससे मायूसी बढ़ती है.



 इंटरनेट पर हानिकारिक जानकारियां


ऑनलाइन पढ़ाई का एक बहुत बड़ा नुकसान ये भी है कि इंटरनेट पर कई सारी हानिकारक जानकारियां भी उपलब्ध हैं और मोबाइल फोन पर ज़्यादा समय बिताने से बच्चे ऐसी जानकारियों के सम्पर्क में आ सकते हैं, जिससे उनके विकास पर गलत प्रभाव पड़ सकता है. इंटरनेट पर ड्रग्स से जुड़ी जानकारियां हैं, हिंसक सामग्री है और अश्लील तस्वीरें भी हैं. ऐसे में बच्चों को इंटरनेट के इन खतरों से बचाना भी बड़ी चुनौती है.


हम ये नहीं कह रहे कि ऑनलाइन पढ़ाई गलत है. आज जब कोरोना वायरस की वजह से स्कूल खुल नहीं सकते, तब इंटरनेट ही बच्चों की शिक्षा के लिए एक बड़ा टूल बन पाया है, लेकिन हमें यहां ये भी ध्यान रखना है कि ऑनलाइन पढ़ाई ने बच्चों के दिमाग पर बोझ बढ़ा दिया है और बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए ये बोझ सही नहीं है.


बच्चों के जीवन पर वायरस का प्रभाव


हमने अभी तक आपको ये बताया कि ऑनलाइन पढ़ाई का बच्चों पर क्या असर हुआ, लेकिन कोरोना वायरस ने कैसे बच्चों के जीवन को प्रभावित किया है, ये भी आज आपको समझना चाहिए क्योंकि, पिछले डेढ़ साल में सबसे ज्यादा पीड़ा से बच्चों को ही गुजरना पड़ा है. वो न तो बाहर जा सकते हैं, न अपनी बात सही से रख सकते हैं और न सारी बातों और उनके मायनों को समझ सकते हैं. ऐसे में उनका अच्छा बुरा माता पिता को ही देखना होता है, लेकिन कोरोना वायरस ने सबको बेबस कर दिया है. इसलिए अब हम आपको ये बताएंगे कि इस वायरस से कैसे बच्चे प्रभावित हुए?


इस महामारी की वजह से विकासशील देशों में लगभग 14 करोड़ बच्चे गरीबी रेखा से नीचे चले गए.


इसके अलावा पूरी दुनिया में 15 करोड़ बच्चे ऐसे हैं, जो इस महामारी में जीवन के लिए बुनियादी माने जाने वाली चीजों से वंचित हो गए हैं. जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पौष्टिक आहार और साफ पानी.


-यही नहीं दुनियाभर में स्कूल बंद होने की वजह से 160 करोड़ बच्चे प्रभावित हुए हैं.


-बड़ी बात ये है कि इस समय दुनिया में हर तीन में से एक बच्चा कमजोर आर्थिक स्थिति और दूसरे कारणों की वजह से ऑनलाइन शिक्षा नहीं ले पा रहा है.


-UNICEF के मुताबिक़ ऐसे बच्चों की संख्या विश्व में 46 करोड़ 30 लाख है


-इसके अलावा वर्ष 2020 में कुपोषण का शिकार होने वाले 5 साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या 60 से 70 लाख तक बढ़ गई है.


-इसी तरह कोरोना वायरस की वजह से दुनियाभर में 37 करोड़ बच्चे स्कूल में मिलने वाले आहार से वंचित हो गए हैं.


-भारत में सरकारी स्कूलों में बच्चों को मिड डे मील मिलता है. इसके बारे में आपने जरूर सुना होगा. कोरोना से पहले भारत में साढ़े 11 करोड़ बच्चों को स्कूलों में मिड डे मील मिलता था, लेकिन अब स्कूल बंद हैं और इस मिड डे मील से ये बच्चे वंचित हो गए हैं.


-WHO कहता है कि इस महामारी के कारण 68 देशों में 1 साल से कम उम्र के 8 करोड़ बच्चों को पर्याप्त दवाइयां नहीं मिल पाएंगी. सोचिए ये बच्चे तो दवाइयां लेने खुद जा भी नहीं सकते.


-संयुक्त राष्ट्र की संस्था UNICEF का तो यहां तक कहना है कि महामारी की वजह से पूरी दुनिया में 1 करोड़ बच्चों का बाल विवाह हो सकता है. ये सब सोचिए, कोरोना वायरस की वजह से हो रहा है और बच्चे इससे बुरी तरह प्रभावित है.


-इंग्लैंड की नेशनल हेल्थ सर्विस ने अपनी एक रिसर्च में पाया कि कोरोना संक्रमण पर रोकथाम के लिए लगाए गए लॉकडाउन के दौरान वहां बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट आई.


-5 से 10 साल की उम्र की श्रेणी में मानसिक बीमारियों से ग्रस्त बच्चों की संख्या 5.1 प्रतिशत बढ़ गई. जबकि 11 से 16 वर्ष के ऐसे बच्चों की संख्या में 4.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई और ये कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन से हुआ.


मानसिक बीमारियों का हो रहे शिकार


हम यहां आपसे ये कहना चाहते हैं कि अब कोरोना ने बच्चों को भी मानसिक बीमारियों, डिप्रेशन और Anxiety का शिकार बना दिया है. AIIMS दिल्ली में भी इस पर एक स्टडी  की गई, जिसके परिणाम ये कहते हैं कि 79 प्रतिशत बच्चों पर कोरोना का नकारात्मक असर पड़ा है.


-ये स्टडी, 15 अध्ययनों को आधार बना कर की गई और इसमें 22 हजार 996 बच्चों पर शोध किया गया और इसमें जो नतीजे निकल कर आए, वो चौंकाने वाले हैं. इस स्टडी के मुताबिक,


-कोरोना महामारी के दौरान 34.5 प्रतिशत बच्चों में घबराहट और एंजाइटी (Anxiety) के लक्षण दिखे.


-41.7 प्रतिशत बच्चों को डिप्रेशन हो गया.


-42.3 प्रतिशत बच्चों में चिड़चिड़ापन पहले से बढ़ गया.


-और 30.8 प्रतिशत बच्चों का व्यवहार पहले से बदल गया. ऐसे बच्चे अब हर चीज में आनाकानी करने लगे हैं.


-यानी कुल मिलाकर 79 प्रतिशत बच्चे कोरोना से मानसिक तौर पर प्रभावित हुए हैं और कई बच्चे ऐसे भी हैं, जो कोरोना से डरे हुए हैं.


-आज बच्चों की इस मनोस्थिति पर हमने एक रिपोर्ट तैयार की है, जो आपको जरूर देखनी चाहिए.


आज हम आपसे यही कहना चाहते हैं कि बच्चे एक टीवी की तरह होते हैं, जिनका रिमोट उनके माता पिता के हाथ में होता है. उस टीवी यानी बच्चे में आप क्या देखना चाहते हैं ये आप पर निर्भर करता है. अगर आप अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें, अच्छी शिक्षा दें, ऑनलाइन पढ़ाई के लाभ और नुकसान के बारे में उनको बताएं और उनकी तकलीफों को समझें तो आप अपने बच्चों को इस महामारी में सुरक्षित रख सकते हैं.


भारत में हमेशा से एक बात बोली जाती है कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं. इसलिए बच्चे खुश तो भगवान खुश. आपको ये बात हमेशा याद रखनी है.