DNA ANALYSIS: Coronavirus पर अस्पतालों की लूट, इलाज के रेट तय होते तो क्या बच जाती कई लोगों की जान?
जिस समय देश कोरोना (Coronavirus) के ख़िलाफ़ एकजुट हो कर लड़ रहा था, उस समय प्राइवेट अस्पतालों में मरीज़ों को इलाज के नाम पर भारी भरकम बिल चुकाने पड़े. जिन मरीज़ों के पास पैसे नहीं थे, उन्हें न तो सरकारी अस्पतालों में बेड की कमी की वजह से इलाज मिल पाया और न ही प्राइवेट अस्पतालों (Private Hospitals) में उन्हें जगह दी गई.
नई दिल्ली: देश में कोरोना वायरस (Coronavirus) के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और हालात गंभीर हैं. इस बीच भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय (Health Ministry) की स्थायी संसदीय समिति ने कोरोना महामारी (Coronavirus Pandemic) के प्रकोप और इसके प्रबंधन पर राज्य सभा को एक रिपोर्ट सौंपी है. इसमें प्राइवेट अस्पतालों (Private Hospitals) के रवैये पर कई सवाल उठाए गए हैं. कोरोना (Coronavirus) पर ये देश में पहला आधिकारिक आकलन है.
इसे पांच पॉइंट्स में समझिए-
1. रिपोर्ट में बताया गया कि जिस समय देश में कोरोना के मामले तेज़ी से बढ़ रहे थे, तब प्राइवेट अस्पतालों में मरीज़ों से इलाज के नाम पर बढ़ा चढ़ा कर पैसे लिए गए.
2. रिपोर्ट में चिंता जताते हुए कहा गया कि सरकारी अस्पतालों में बेड की कमी का फ़ायदा प्राइवेट अस्पतालों को मिला और इससे लोगों पर इलाज का आर्थिक बोझ काफ़ी बढ़ गया.
3. समिति ने अपने आकलन में इस बात पर भी ज़ोर दिया कि सरकार ने इलाज के रेट को लेकर स्पष्ट दिशा निर्देश जारी नहीं किए, जिससे प्राइवेट अस्पतालों को खुली छूट मिल गई.
4. रिपोर्ट के मुताबिक़ अगर सरकार ने इलाज के रेट तय किए होते तो कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी. समिति ने आबादी के लिहाज से देश के स्वास्थ्य बजट को भी काफ़ी कम बताया है.
5. स्वास्थ्य मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति ने इलाज के ख़र्च के चलते कई परिवारों के ग़रीबी रेखा के नीचे जाने पर भी चिंता जताई है.
अब आप सोचिए कि जिस समय देश कोरोना के ख़िलाफ़ एकजुट हो कर लड़ रहा था, उस समय प्राइवेट अस्पतालों में मरीज़ों को इलाज के नाम पर भारी भरकम बिल चुकाने पड़े. जिन मरीज़ों के पास पैसे नहीं थे, उन्हें न तो सरकारी अस्पतालों में बेड की कमी की वजह से इलाज मिल पाया और न ही प्राइवेट अस्पतालों में उन्हें जगह दी गई और इस तरह ग़रीब के लिए सारे दरवाज़े बंद हो गए.
एक अनुमान है कि अगर किसी व्यक्ति को कोरोना होने पर प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया जाता है तो उसका एक हफ़्ते का इलाज का औसत ख़र्च ढाई से तीन लाख रुपये बन जाता है. भारत की कुल आबादी का बड़ा हिस्सा ऐसा है, जो साल भर भी अगर मेहनत और मन लगा कर काम करे तो वो इतने तीन लाख रुपये नहीं कमा सकता.
Reserve Bank of India की 2019 की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रामीण भारत में क़रीब 25 प्रतिशत आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे है और शहरी भारत में ये आंकड़ा 14 प्रतिशत के आसपास है.
यानी भारत की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है, जो प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने के बारे में सोच भी नहीं सकता और जो लोग इलाज करा सकते हैं, उनके लिए भी स्थिति ज़्यादा अच्छी नहीं है क्योंकि, अगर सलाना तीन लाख रुपये कमाने वाला व्यक्ति ये राशि प्राइवेट अस्पतालों का एक हफ़्ते का बिल चुकाने में लगा दे तो उसके सामने भूखा मरने की नौबत आ जाएगी और ये स्थिति उसके लिए मौत से भी बदतर हो सकती है.
शंघाई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर 17 हजार लोगों का कोरोना टेस्ट
कोरोना का ये संकट कितना गंभीर है ये समझाने आपको चीन से आई कुछ तस्वीरों के बारे में बताते हैं जो चीन के शंघाई इंटरनेशनल एयरपोर्ट से आई हैं. यहां 22 नवंबर की रात 17 हज़ार से ज़्यादा लोगों को उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ एयरपोर्ट के बेसमेंट एरिया में बंद कर दिया गया.
एयरपोर्ट के दो कर्मचारियों की कोरोना रिपोर्ट पॉज़िटिव आने पर चीन ने 17 हज़ार लोगों से उनकी आज़ादी छीन ली. इसके बाद इन लोगों को कोरोना टेस्ट कराने के लिए मजबूर किया गया और इन्हें 14 दिनों के लिए क्वारंटीन सेंटर में भेजने का भी फ़ैसला हुआ.
लेकिन इस फैसले के बाद एयरपोर्ट के बेसमेंस एरिया में भगदड़ मच गई. लोग 14 दिनों के लिए क्वारंटीन सेंटर में जाने से बचने के लिए भागने लगे. कई लोगों की मेडिकल टीम के साथ धक्का मुक्की भी हुई. शंघाई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर हजारों लोगों को कैद करके उनका कोरोना टेस्ट करने की इन तस्वीरों ने दुनियाभर में बहस छेड़ दी है.
शंघाई में 5 नवम्बर को China International Import Fair शुरू हुआ था. तब से अब तक शंघाई में सात लोग कोरोना संक्रमित हो गए हैं. इनमें शंघाई इंटरनेशनल एयरपोर्ट के कार्गो टर्मिनल में काम करने वाले लोग और उनके सम्पर्क में आए व्यक्तियों की संख्या ज़्यादा है.
चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने जानकारी दी है कि 22 नवंबर को शंघाई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर Mass Testing के लिए 277 उड़ानों को रद्द कर दिया गया. रात भर में कुल 17 हज़ार 719 लोगों का कोरोना टेस्ट किया गया, जिनमें से 11 हज़ार से ज़्यादा लोगों की टेस्ट रिपोर्ट आ चुकी है. ये सभी लोग कोरोना निगेटिव बताए गए हैं.
चीन जैसी सख्ती की जरूरत भारत के लोगों को भी
चीन में सरकार जो सख्ती दिखाती है वैसी सख्ती की जरूरत भारत के लोगों को भी है. दिल्ली के मोती नगर में जब मास्क नहीं लगाने पर एक गाड़ी चला रहे व्यक्ति को रोका गया तो उसमें बैठे लोगों ने एक पुलिसवाले पर गाड़ी चढ़ा दी. ये पुलिसवाला वहां गिर गया और उसे कुछ चोटें भी आईं. लेकिन इसके बाद भी गाड़ी में बैठे लोग नीचे नहीं उतरे. दिल्ली में मास्क नहीं लगाने पर जुर्माने की राशि 500 रुपये से बढ़ा कर दो हज़ार रुपये कर दी गई है, जिस पर लोगों में नाराज़गी है. लेकिन आज़ादी का दुरुपयोग कैसे किया जाता है, वो आप इस खबर से समझ सकते हैं.
मास्क को लेकर लोगों की लापरवाही का ये कोई पहला मामला नहीं है. हम बार बार कह रहे हैं कि जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती, तब तक आपका मास्क ही आपकी वैक्सीन है. मास्क कफ़न से छोटा होता है और ये आपको और आपके अपनों को कोरोना की महामारी से बचा सकता है. लेकिन भारत के लोग अपनी आजादी का गलत इस्तेमाल करते हैं और नियमों को नहीं मानते, जबकि चीन में पूरी सख्ती बरती जाती है.
एक व्यक्ति से 176 लोगों में संक्रमण फैल गया
अमेरिका के Los Angeles times में छपी ख़बर के अनुसार, कैलिफोर्निया के एक दंपती ने शादी के बाद Maine (मेन) प्रांत के Millinocket (मिलिनकेट) में 7 अगस्त को रिसेप्शन पार्टी दी थी. इस पार्टी में 55 मेहमान थे. जिनमें से एक व्यक्ति कोरोना से संक्रमित था. कुछ ही हफ्तों में कोरोना वायरस ने 176 लोगों को संक्रमित कर दिया. यानी एक व्यक्ति से 176 लोगों में संक्रमण फैल गया. कुछ दिनों में इनमें से 7 लोगों की मौत हो गई. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि जिन 7 लोगों की मौत कोरोना वायरस से हुई, उनमें से कोई भी शादी की रिसेप्शन पार्टी में नहीं गया था.