नई दिल्ली: आज हम प्रदूषण (Air Pollution) के खिलाफ उस कर्तव्य की बात करेंगे जिसे देश और देश का सिस्टम पूरी तरह भुला चुका है. भारत सरकार ने जनवरी 2019 में National Clean Air Program की शुरुआत की थी जिसके तहत वर्ष 2024 तक प्रदूषण के स्तर में 30 से 40 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन दो साल पूरे होने वाले हैं और हम इस लक्ष्य के आस-पास भी नहीं पहुंच पाए हैं.


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कल दिल्ली (Delhi) और आस पास के शहरों में प्रदूषण ने इस मौसम का रिकॉर्ड तोड़ दिया. पिछले 48 घंटों से इन शहरों हवा का हाल इतना बुरा है कि आप ठीक से सांस नहीं ले सकते हैं. इस प्रदूषण की वजह से दिल्ली में धूप तक नहीं निकल रही और अगर आप दिल्ली या आस पास के शहरों में नहीं रहते तो आप खुद को खुश किस्मत मान सकते हैं.


सर्दियों में प्रदूषण के जहरीले हालात का सामना
अगर आप इन शहरों रहते हैं तो चाहे आप घर के बाहर हों या अंदर - लोग दम घुटने, आंखों में जलन और सिरदर्द की शिकायतें कर रहे हैं. ये बीमारियां प्रदूषण की ही देन हैं.


पूरे देश में आज सबसे खराब हवा दिल्ली और आस पास के इलाकों की है. दिल्ली में कल प्रदूषण का औसत स्तर 508 रहा जबकि IIT दिल्ली पर ये 596 था. सबसे खराब हालात नोएडा के हैं. नोएडा में एयर क्वालिटी इंडेक्स 649 रहा. सर्दियों में प्रदूषण के ऐसे जहरीले हालात का सामना हमें पिछले कई वर्षों से लगातार करना पड़ रहा है. 


हम आपको बता दें कि एयर क्वालिटी इंडेक्स Air Quality Index सिर्फ 50 तक ही सेहतमंद माना जाता है.


500 से ज्यादा एयर क्वालिटी इंडेक्स को खतरनाक माना जाता है. इस हवा में सांस लेना मौत को निमंत्रण देने जैसा है.


दिल्ली की प्रदूषित हवा में पराली का योगदान 42 प्रतिशत
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सफर APP के मुताबिक पिछले 24 घंटे में दिल्ली के आस पास के राज्यों पंजाब हरियाणा और उत्तर प्रदेश में कुल मिलाकर 4 हजार से अधिक जगहों पर पराली जलाई गई. ये इस सीजन में सबसे ज्यादा है और दिल्ली की प्रदूषित हवा में पराली का योगदान आज 42 प्रतिशत आंका गया है.


इस प्रदूषण में पराली जलाए जाने की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत से ज्यादा है. हर साल सर्दियां आते ही उत्तर भारत के कई राज्यों में किसान पराली जलाने लगते हैं. इस पराली से निकला धुआं उत्तर भारत के करोड़ों लोगों की सांसों को छीनने लगता है. आज आपको इस समस्या के साथ इसका समाधान भी बताएंगे.


हर साल पराली की समस्या की शुरुआत कैसे होती है?
सबसे पहले आप ये समझिए कि हर साल पराली की इस समस्या की शुरुआत कैसे होती है.


- सर्दियों की शुरुआत में पंजाब और हरियाणा के खेतों में फसल के अवशेष यानी पराली और खर-पतवार को हटाने का काम शुरू हो जाता है.


- किसानों को धान के बाद 15 से 20 दिनों में गेहूं की फसल लगानी होती है, इसके लिए खेतों से पराली को जल्द हटाना होता है.


- पराली में आग लगाने की वजह से, खेत पूरी तरह से साफ हो जाते हैं. लेकिन ये जलते हुए खेत और उनसे निकलने वाला धुआं, हवा में जहर फैलाने का काम करता है.


- किसानों के लिए पराली को हटाने के दूसरे तरीके अपनाना मुश्किल है. अगर इसमें मजदूरों की मदद ली जाए तो गरीब किसानों के लिए खेती का खर्च बढ़ जाएगा.


- नई टेक्नोलॉजी की मदद से खेतों में पराली को नष्ट करना आसान है लेकिन ऐसा करने वाली मशीनें बहुत महंगी हैं.


- हालांकि एक सच्चाई ये भी है कि हर वर्ष पराली जलाई जाती है. लेकिन राज्य सरकारें पहले से इसकी तैयारी नहीं करती हैं. इसे रोकने के लिए किसानों को समय रहते सब्सिडी और मशीनें नहीं दी जाती हैं.


सिर्फ पंजाब में ही 66 लाख एकड़ में धान की फसल उगाई गई
वर्ष 2020 में सिर्फ पंजाब में ही 66 लाख एकड़ में धान की फसल उगाई गई है. ये इलाका दिल्ली जैसे 18 शहरों के बराबर है. पंजाब को देश का अन्नदाता कहा जाता है. लेकिन एक बड़ा विरोधाभास ये भी है कि वहां के खेतों से आपका पेट भरनेवाले अन्न के साथ-साथ आपके फेफड़ों को सजा देने वाला धुआं भी आता है.


Zee News की टीम पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के उन इलाकों में गई जहां पर पराली जलाई जाती है. अक्सर पराली जलाने की समस्या का जिम्मेदार किसानों को बताया जाता है.


हालांकि इस ग्राउंड रिपोर्ट में हम पंजाब के ऐसे किसानों से भी आपका परिचय करवाएंगे जिन्होंने पराली को न जलाने की प्रथा शुरू की है और ये प्रदूषण को कम करने की दिशा में एक अच्छी शुरुआत है.


किसानों की मजबूरी
आज पूरे उत्तर भारत की सांसे उखड़ी उखड़ी सी हैं. नवंबर में प्रदूषण के स्तर ने पिछले साल का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया है. देश की राजधानी दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में प्रदूषण इतना जानलेवा क्यों हो गया है, इस यक्ष प्रश्न का जवाब ढूंढने आप जाएंगे तो पहला जवाब जो आपको सुनाई देगा वो है, पराली. अब तक उत्तर भारत के इस प्रदूषण में जलती हुई पराली की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत हो चुकी है. पराली जलाने का आरोप है, आस पास के राज्यों के किसानों पर. इसलिए आज Zee News ने समस्या की जड़ में जाने का प्रयास किया है और इसके लिए हमारी टीम पहुंची उन धुआं उगलते खेतों में जहां से ये जहरीला धुआं तैरता हुआ, आपकी और हमारी सांसों में पसर जाता है.


पराली से होने वाले प्रदूषण की सबसे बड़ी तोहमत पंजाब के किसानों पर लगती है. लेकिन पंजाब के खेतों में पराली जलाने वाले किसानों का कहना है कि वो ऐसा अपनी खुशी से नहीं, बल्कि मजबूरी में करते हैं क्योंकि, पराली जलाने से रोकने के लिए सरकार ने किसानों को जो मशीने और सुविधाएं देने का वादा किया था, वो आजतक इन्हें नसीब नहीं हुई हैं. पंजाब के मनसा के उल्लक गांव के किसानों की बातें आप सुनेंगे तो आपको एहसास होगा कि आपकी और हमारी सांसों पर दमघोंटू सियासत कैसे हावी हो गई है.


इन खेतों में उगने वाला अन्न भले ही अन्नदाताओं के बच्चों के पेट में सबसे पहले जाए या ना जाए लेकिन इनके बच्चे ही सबसे पहले इस जहरीले धुएं का शिकार होते हैं.


पंजाब में मानसा के उल्लक गांव के किसान रंजीत सिंह का कहना है कि जो पराली जलाने से धुंआ उठ रहा है वो पहले हमें, हमारे बच्चों और गांव को प्रदूषित कर रहा है.


पिछले वर्ष के मुकाबले पराली जलाए जाने के 5 गुना ज्यादा मामले
पंजाब में इस साल 66 लाख एकड़ इलाके में धान उगाया गया है.  ये धान अन्न के रूप में देशभर के करोड़ों लोगों के पेट में जाएंगा. लेकिन आपकी थाली में पहुंचने से पहले, पराली की आग के रूप में उठा धुआं उत्तर भारत के करोड़ों लोगों को गंभीर बीमारियों के एक कदम करीब ले आया होगा. पंजाब में इस साल पिछले वर्ष के मुकाबले पराली जलाए जाने के 5 गुना ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं. किसान पराली न जला पाएं. इसके लिए 8 हजार नोडल ऑफिसर्स की भी तैनाती की गई है.


पराली जलाने से रोकने के लिए विकल्प और मशीनें
पंजाब में 1980 के दशक में मशीनों से खेती करने की शुरुआत हुई थी. जब धान जैसी फसल की खेती मशीनों की मदद से की जाती है तो इन्हें काटने पर जो पराली बच जाती है, वो आकार में 1 से 2 फीट तक लंबी होती है जबकि जब हाथ से फसल काटी जाती है तो उसमें बची पराली का आकार 6 इंच से भी छोटा होता है. दूसरी समस्या ये है कि जो पराली बचती है उसे प्राकृतिक रूप से डिकंपोज़ होने से लंबा समय लगता है और तब तक दूसरी फसल बोने का समय आ जाता है. इसलिए किसान इसे जलाकर जल्दी से अपने खेतों को दूसरी फसल के लिए तैयार कर लेते हैं. किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए जो विकल्प और मशीनें सरकार ने देने का वादा किया है, उनका खर्च कर्ज के तले दबे किसानों को भारी पड़ता है.


किसानों की बातों में दम हैं क्योंकि खुद अधिकारी मानते हैं कि पराली को जलाने से रोकने के लिए जो मशीनें किसानों को दी जानी थीं, उनके लिए किसानों से अर्जियां देर से मांगी गई हैं.


एक समय पर पंजाब धान की खेती के लिए नहीं जाना जाता था. लेकिन अब पंजाब में बड़े पैमाने पर धान उगाया जाता है.  किसानों का कहना है कि अगर वो पराली न जलाएं तो मिट्टी में मिलने के बाद उसमें कीड़े हो जाते हैं और ये कीड़े दूसरी फसल के लिए जमीन को खराब कर देते हैं.


मानसा के बाद जब हमने बठिंडा के किसानों से बात की तो उन्होंने भी हमें ऐसी ही परेशानियां गिनाईं.


स्वास्थ्य के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था पर भी बड़ा असर
पराली जलाने से स्वास्थ्य के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था पर भी बड़ा असर पड़ता है और ये नुकसान 2 लाख करोड़ रुपए के आस पास का है. सरकार को भी यह पता है कि पराली के जलाने से न सिर्फ स्वास्थ्य का नुकसान हो रहा है, बल्कि जमीन की गुणवत्ता भी घटती रही है.


पराली एक परेशानी है तो इस परेशानी का हल भी है और हमें ये हल भी पंजाब में ही मिला. जब हम मोगा जिले के रण सिंह कला गांव पहुंचे. यहां हमारी मुलाकात गांव के सरपंच और किसान प्रीत इंदर पाल सिंह से हुई.


प्रीत इंदर पाल सिंह जब कुछ वर्ष पहले कनाडा गए तो वहां के विकसित गांवों को देखकर उनके मन में अपने गांव को भी विकसित और आत्मनिर्भर बनाने का ख्याल आया और फिर ये ख्याल गांव की शक्ल ओ सूरत बदलने की जिद में बदल गया.


रण सिंह कला गांव की कहानी में समस्या का हल छिपा है और ये संदेश भी कि सरकारों और किसानों को मिलकर काम करना होगा. क्योंकि अगर पराली ऐसे ही जलती रही तो देश में अन्न तो उगता रहेगा. लेकिन उस अन्न को खाने वाले इस जहरीले धुएं से बीमार और बहुत बीमार हो चुके होंगे.