DNA ANALYSIS: होटल में खाने वालों को सावधान करने वाली रिपोर्ट, क्या आप भी खा रहे ऐसा खाना?
भारत में लगभग 3 करोड़ ढाबे और रेस्टोरेंट हैं, जिनमें से 70 लाख ऑर्गनाइज्ड सेक्टर में हैं. यानी ये ऐसे फूड आउटलेट्स हैं, जिनके पास लाइसेंस है. लेकिन अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर में इनकी संख्या लगभग 2 करोड़ 30 लाख है और इनमें से ज़्यादातर ऐसे ढाबे हैं, जिनके पास कोई लाइसेंस नहीं है.
नई दिल्ली: आज हम आपको दिल्ली की एक ऐसी खबर के बारे में बताएंगे, जिसने लोगों के मन में बाहर खाना खाने को लेकर एक डर पैदा कर दिया है. ये खबर एक ढाबे से जुड़ी है, जहां काम करने वाले दो लोगों पर आरोप है कि उन्होंने तंदूर में रोटियां पकाने से पहले उनमें थूका और ऐसा एक बार नहीं कई बार किया गया.
सामने आया ऐसा वीडियो
इनमें एक आरोपी का नाम मोहम्मद इब्राहिम है जो 40 साल का है जबकि दूसरे आरोपी का नाम साबी अनवर है और उसकी उम्र सिर्फ़ 22 साल है. इस घटना का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें आरोपी मोहम्मद इब्राहिम पहले रोटी बनाता है और फिर उसमें थूक देता है.
आप भी कभी न कभी अपने परिवार के साथ बाहर खाना खाने गए होंगे या फिर जब छुट्टियां मनाने किसी और राज्य गए होंगे तो वहां किसी ढाबे पर खाना खाया होगा. ज़्यादातर रेस्टोरेंट, होटल और ढाबे पर आप ये नहीं देख पाते कि आपको जो खाना परोसा जा रहा है, उसे कैसे बनाया गया है और आप इस पर कोई सवाल भी नहीं करते. आप पलटकर रेस्टोरेंट के मालिक से ये तक नहीं पूछते कि आख़िर ये खाना किसने बनाया है और कैसे बनाया गया है.
ऐसे में अगर किसी ढाबे पर इस तरह की घटना होती है तो विश्वास की उस पूरी चेन पर ही सवाल खड़ा हो जाता है, जिसका हिस्सा आप भी हैं और हम भी हैं.
थूक डालकर रोटी बनाने के पीछे क्या मंशा होगी?
आप खुद सोचिए कि इन लोगों ने ऐसा क्यों किया होगा और ढाबे पर जो लोग खाना खाने के लिए बैठे थे, उनके लिए थूक डालकर रोटी बनाने के पीछे आखिर इनकी क्या मंशा रही होगी.
भारत में लगभग 3 करोड़ ढाबे और रेस्टोरेंट हैं, जिनमें से 70 लाख ऑर्गनाइज्ड सेक्टर में हैं. यानी ये ऐसे फूड आउटलेट्स हैं, जिनके पास लाइसेंस है. लेकिन अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर में इनकी संख्या लगभग 2 करोड़ 30 लाख है और इनमें से ज़्यादातर ऐसे ढाबे हैं, जिनके पास कोई लाइसेंस नहीं है.
देश में ओपन किचन की संख्या
ये ठीक उसी तरह है, जैसे किसी अस्पताल में कोई डॉक्टर आपका इलाज करे लेकिन उसके पास डॉक्टर बनने की कोई डिग्री ही न हो. बिना लाइसेंस वाले ढाबे और रेस्टोरेंट भी ऐसे ही होते हैं, जहां आप अपनी भूख मिटाने के लिए पहुंच तो जाते हैं. भरोसा भी कर लेते हैं, लेकिन आपको क्या खिलाया जा रहा है. आप इसकी ज़्यादा जानकारी नहीं जुटा पाते.
अहम बात ये है कि हमारे देश में ओपन रेस्टोरेंट्स और ओपन किचन की संख्या काफ़ी सीमित है और इस वजह से आप बाहर जो खाना खाते हैं. अक्सर उसे अपनी आंखों के सामने बनते हुए देख नहीं पाते.