आज हमने पड़ताल की है कलियुग की. वो कलियुग, जिसका एक कनेक्शन संभल शहर से जुड़ता है. वो शहर जहां मस्जिद को लेकर बवाल छिड़ा हुआ है. संभल शहर से कल्कि अवतार का जिक्र पुराणों में मिलता है, वो कलियुग जिसमें हम सब जी रहे हैं. इससे पहले तीन युग बीत चुके हैं, सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग.
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Kalyug: आज हमने पड़ताल की है कलियुग की. वो कलियुग, जिसका एक कनेक्शन संभल शहर से जुड़ता है. वो शहर जहां मस्जिद को लेकर बवाल छिड़ा हुआ है. संभल शहर से कल्कि अवतार का जिक्र पुराणों में मिलता है, वो कलियुग जिसमें हम सब जी रहे हैं. इससे पहले तीन युग बीत चुके हैं, सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग. इन तीनों ही युगों का जिक्र हमारे धार्मिक ग्रंथों में पूरी काल गणना के साथ मिलता है. तो क्या कलियुग के लिए भी ऐसी कोई काल गणना है? क्या कोई ऐसा समय है, जिसके बाद कलियुग का काल खत्म हो जाएगा? इस सवाल पर हमारे वैदिक ग्रंथों में कल्कि अवातार की भविष्यवाणी मिलती है. कल्कि यानी भगवान विष्णु का 10वां अवतार? क्या इसी 10वें अवतार भगवान कल्कि के साथ कलियुग का अंत होगा? क्या हैं इसके संकेत, पहले इसे समझते हैं.
भगवान कल्कि के अवतार को लेकर जयपुर के कल्कि मंदिर की चर्चा होती है. इन सवालों का जवाब दरअसल कल्कि पुराण के साथ जयपुर के इतिहास में छिपा था. माना जाता है कि महाराज सवाई जय सिंह ने जयपुर शहर की बुनियाद बड़े ज्योतिषाचार्यों की सलाह के बाद रखी थी. इसी ज्योतिषीय सलाह का हिस्सा है राजमहल के ठीक सामने भव्य कल्कि मंदिर की स्थापना.
पूरी दुनिया में आपने कहीं सुना है कि जिस भगवान का अवतार नहीं हुआ हो उसकी पूजा ऐसे हो रही हो? भगवान कल्कि इसके अपवाद है. अवतार से पहले ही ना सिर्फ उनका नाम जपा जाता है, बल्कि उनकी सवारी भी देवव्रत के रूप में पहले से तय है और वो है भगवान कल्कि का घोड़ा. देवव्रत नाम के इस घोड़े को वैसे ही बनाया गया है, जैसा जिक्र कल्कि पुराण में मिलता है. दुर्लभ सफेद संगमरमर से बना देवव्रत नाम का घोड़ा सवाई जयसिंह के अश्वमेघ यज्ञ का हिस्सा था. माना जाता है कि महाभारत काल के अश्वमेध यज्ञ के बाद महाराजा जय सिंह का अश्वमेध धरती पर हुआ सबसे भव्य धार्मिक अनुष्ठान था.
महाराजा जय सिंह ने वो अश्वमेध यज्ञ नए-नए बसे जयपुर की सुरक्षा के लिए कराया था. इसमें बड़े बड़े ज्योतिषाचार्य आए थे. इन्हीं ज्योतिषाचार्यं ने अपनी गणना के आधार पर कहा था कि भगवान विष्णु का दसवां अवतार धरती के इसी हिस्से पर होगा. इसी सलाह के बाद सवाई जय सिंह ने भगवान कल्कि का मंदिर बनवाया और 1739 में अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा मंदिर में स्थापित किया. मंदिर और घोड़े की स्थापना में एक दिलचस्प बात और है. इस मंदिर से हरिद्वार में गंगा के उतरने की जगह जहां 51 किलोमीटर है, वहीं महाकाल की नगरी उज्जैन 501 किलोमीमटर की परिधि में.
घोड़े के पिछले वाले जिस दाहिने पांव में जख्म जैसा जो गड्ढा दिख रहा है, उसके बारे में मान्यता है कि वो समय के साथ भर रहा है. यानी इस गड्ढ़े की चौड़ाई कम हो रही है. घोड़े के पैर में एक छोटासा छेद रखा है, जिस दिन कलियुग समाप्त होगा उस दिन भगवान विष्णु घोड़े पर सवार होकर परिक्रमा करेंगे.
संगमरमर से बने घोड़े के पांव का गड्ढा कैसे भरेगा, इसे लेकर आपके मन में भी सवाल होंगे. यहां एक वैज्ञानिक तथ्य ये है, संगमरमर पर मौसम में होने वाले बदलावों का असर होता है. ये बदलाव सामने आने में हजारों साल का समय लगता है. तो क्या इस घोड़े के पांव में छेद किसी गणना के आधार पर बनाया गया था? जैसे सैंड क्लॉक का कॉन्सेप्ट है. क्योंकि घोड़े को बनाने वालों को क्या पता था, इसके पांव में बना गड्ढा इतने बरसों बाद भरेगा? तो क्या ये मान्यता इसी गणना के आधार पर बनी कि जिस दिन देवव्रत के पांव का गढ्ढा पूरी तरह से भर जाएगा, उस दिन कलियुग खत्म होगा और इसके साथ होगा भगवान कल्कि का अवतार.
जयपुर का राजघराना पुराने जमाने से ही ज्योतिष विद्या को प्राथमिकता देता था. राजघराने से जुड़े कई ज्योतिषाचार्य मुगलों के काल में भी मशहूर हुए. खुद राजा मान सिंह इस विद्या में इतना विश्वास करते थे कि उन्होंने दिल्ली में जंतर-मंतर जैसे कई टाइम ऑब्जरवेटरी पूरे देश में बनवाए. कहते हैं अकबर के सेनापति रहे मान सिंह ने जो 14 युद्ध जीते, उसके पीछे भी शौर्य और वीरता के साथ ज्योतिषीय गणनाओं की बड़ी भूमिका थी. तो क्या कल्कि मंदिर के पीछे कलियुग की ऐसी ही कोई काल गणना थी?
वैज्ञानिक गणना के मुताबिक 460 करोड़ साल पहले बनी धरती चार महाकल्पों से गुजरते हुए जीवन की सुगबुगाहट से भरी. धरती पर जीवन की पहली आहट आखिरी महाकल्प यानी करीब 6 करोड़ साल पहले पहली हुई. पहले जीव से इंसानों की उत्पति तक के 6 करोड़ सालों को भी विज्ञान छोटे-छोटे 4 कल्पों और 7 युगों में बांटता है. उसी काल को हमारी वैदिक गणना 4 युगों में बांटती है.
➤ सतयुग- 4800 दिव्य वर्ष यानी
1 करोड़, 72 लाख साल
➤ त्रेतायुग- 3600 दिव्य वर्ष यानी
1 करोड़, 29 लाख, 60 हजार साल
➤ द्वापर युग- 2400 दिव्य वर्ष यानी
86 लाख 40 हजार साल यानी
➤ कलियुग- 1200 दिव्य वर्ष
4 लाख 32 हजार साल
इस गणना को आसानी से समझने के लिए आपको दिव्य वर्ष के बारे में बता दें- एक दिव्य वर्ष यानी देवताओं का एक साल होता है, जिसमें 3600 मानव वर्ष होते है. दिव्य वर्ष का इस्तेमाल युगों को नापने के लिए एक इकाई के रूप में किया जाता है, जैसे वैज्ञानिक गणना में कल्पों और महाकल्पों का इस्तेमाल होता है. ज्योतिषीय गणना, महान गणितज्ञ आर्य भट्ट की देन मानी जाती है. ये गणना इतनी सटीक है कि सूर्य से पृथ्वी, शुक्र, बुद्ध की दूरी ठीक उतनी ही है, जिसकी पुष्टि 19वीं और 20वीं सदी का विज्ञान करता है.
भारतीय वैदिक मानकों पर हुई इस गणना के मुताबिक 3 करोड़ 87 लाख साल धरती पर जीवन के पूरे हो चुके हैं. इस दौरान तीन युगों में तीन बार महाविनाश हुए, अब चौथे की बारी है. चौथे युग का अंत यानी एक और प्रलय और उसी प्रलय का प्रतीक ये कल्कि मंदिर और कल्कि महाराज का घोड़ा देवव्रत है. 1734 में जब सवाई जयसिंह ने ये मंदिर बनवाय तो इसके पीछे कलियुग की यही कालगणना बताई जाती है. इसी आधार पर मंदिर के लिए ज्योतिषाचार्यों ने जगह तय की और कल्कि महाराज और उनके घोड़े देवव्रत को स्थापित करने का मुहुर्त निकाला गया. ज्योतिषिय गणना के मुताबिक कलियुग की पूरी अवधि 4 लाख 32 हजार साल है, जिसमें से अभी 5121 साल ही खत्म हुए हैं. तो क्या जयपुर कल्कि मंदिर के घोड़े के जख्म भरने में अभी 4 लाख 27 हजार साल लगेंगे?
जयपुर के कल्कि मंदिर को लेकर मान्यता है कि अवतार के बाद बाद कल्कि महाराज देवव्रत नाम के सफेद घोड़े पर सवार होंगे और पूरे जयपुर भ्रमण के बाद विश्व विजय पर निकलेंगे.