नई दिल्‍ली:  पर्यावरण की चिंता जताने में और उसको बचाने के प्रयास में बहुत बड़ा फर्क होता है. अगर हम आपसे पूछें कि 15 साल की उम्र में संयुक्त राष्ट्र में चिंता जताने वाला महान है या 15 साल की उम्र से एक बंजर जमीन को एक घना जंगल बना देने वाला महान है, तो आप इसमें से किसको चुनेंगे. यकीनन उसको जिसके प्रयास ने बंजर को जंगल बना दिया. असम के जादव पायेंग को आपमें से बहुत कम लोग इनके बारे में जानते होंगे, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जादव पायेंग को Forest Man of India कहा जाता है.


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स्‍वीडिश पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग और भारत के फॉरेस्‍ट मैन जादव पायेंग पर्यावरण को लेकर व्यक्ति की सोच के उदाहरण हैं. ग्रेटा थनबर्ग पर्यावरण की चिंता का प्रतीक हैं और जादव पायेंग पर्यावरण सुधार के प्रयास का प्रतीक हैं. आज हम कहना चाहते हैं कि भारत के Forest Man ही दुनिया के 100 प्रतिशत असली पर्यावरण रक्षक हैं. 


पर्यावरण के सच्‍चे योद्धा की कहानी


आज हमने आपके लिए असम के मोलाई जंगल से ही एक ग्राउंड रिपोर्ट लेकर आए हैं. सूखा, बंजर किस तरह हरियाली में बदलता है उसके बारे में हम आपको बताएंगे साथ ही हम आपको मिलवाएंगे जादव पायेंग से, जिनका कहना है कि इंसानों ने अपने घरों के लिए जानवरों के घर छीन लिए तो अब वो जानवरों का घर बसाने के लिए जंगल तैयार करते हैं.


यहां दूर तक आपको ब्रह्मपुत्र नदी का किनारा और उसकी रेतीली जमीन दिखाई देगी. जिस पर कुछ भी उगने की आस तो वन विभाग को भी नहीं थी.  पर अब यहां 1300 एकड़ में एक विशाल जंगल फैला हुआ है. हैरानी की बात है, लेकिन ये जंगल एक इंसान ने अपने अकेले के दम पर तैयार किया है, वो हैं जादव पायेंग. जादव पायेंग पिछले 42 सालों से लगातार इस इलाके में पेड़ लगा रहे हैं. उनको देखकर ही लगता है नामुमकिन कुछ भी नहीं.


2000 एकड़ में और पेड़ लगाने का लक्ष्‍य


जोरहाट के कोकिलामुख गांव में रहने वाले जादव के पैरों में चप्पल तक नहीं है. बदन पर एक सूती बनियान और लुंगी है. वह एक साधारण शख्स लेकिन असाधारण शख्सियत हैं. पर्यावरण सुधार को लेकर विचार आना और फिर उसके लिए कुछ कर गुजरने का उदाहरण हैं, जादव पायेंग.



जाधव कहते हैं कि उनका ये काम अभी पूरा नहीं हुआ है. अभी तो उन्हें 2000 एकड़ में और पेड़ लगाने हैं. उनकी मेहनत की वजह से ही आज उनके जंगल में आज देश में पाए जाने वाले पक्षियों की 80 प्रतिशत प्रजातियां हैं और इसके अलावा बाघ समेत कई जंगली जानवर अपने घर यानी जंगल लौट आए हैं.


2015 में पद्मश्री से नवाजा गया


ये जंगल जैसा आज दिख रहा है, 40 साल पहले ऐसा नहीं था. ये बंजर था, बाढ़ से प्रभावित था. वन विभाग ने जादव की मदद से इनकार कर दिया था. लेकिन जादव की लगन और मेहनत देखकर प्रकृति ने उनकी मदद की और वर्ष 2015 में सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया.


जादव अपने बसाए जंगल में ही रहते हैं, उसको और ज्यादा पल्लवित करते हैं. वो अपने जंगल और वहां रहने वाले जानवरों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं.  सोशल मीडिया पर पर्यावरण को लेकर Hashtag Save Forest लिखकर अपनी जिम्मेदारी पूरी समझ लेने वालों को जादव पायेंग से सीख लेनी चाहिए. जादव पायेंग जैसे लोग ही हमारी दुनिया के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.