DNA ANALYSIS: अफगानिस्तान को अफसोस, UN-मलाला समेत सब खामोश
अफगानिस्तान (Afghanistan) पर आखिरकार तालिबान (Taliban) का कब्जा हो ही गया और इसी के साथ उसने शरई कानूनों की शुरुआत भी कर दी है. वहीं मानवाधिकारों की बात करने वाली बड़ी-बड़ी हस्तियों से लेकर दुनिया के अधिकतर देश अब भी पूरे हालात पर खामोशी ओढ़े हुए हैं.
नई दिल्ली: तालिबान (Taliban) ने अपने नए शासन का नाम Islamic Emirate of Afghanistan रखा है. आज जब अफगानिस्तान (Afghanistan) इतने बड़े संकट में है, तब संयुक्त राष्ट्र इस पर क्या कर रहा है? ये हम सबको जानना चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक मूल्यों और लोगों की आजादी के लिए काम करता है. इस समय दुनिया के 12 देशों में संयुक्त राष्ट्र की Peace Keeping Forces मौजूद हैं. इनमें एक Peace Keeping Force कश्मीर में भी काम कर रही है. हालांकि अफगानिस्तान में मानव अधिकारों को लेकर संयुक्त राष्ट्र का कोई मिशन नहीं है. इससे आप इस अंतर्राष्ट्रीय संस्था के चरित्र को समझ सकते हैं.
अफगानिस्तान पर चुप्पी क्यों?
इसी तरह मलाला युसुफजई भी इस पर ज्यादा सक्रिय नहीं हैं. उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार तालिबान के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए ही मिला था. उन्होंने स्कूलों में लड़कियों की पढ़ाई के लिए लड़ाई लड़ी और इसके लिए तालिबान (Taliban) के आंतकवादियों ने उन्हें गोली मार दी थी. लेकिन आज मलाला अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी पर ज़्यादा सक्रिय नहीं है. उन्होंने केवल एक बयान जारी करके महिलाओं और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है.
किसान आन्दोलन को लेकर टूल किट शेयर करने वाली और पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के पास भी अफगानिस्तान को तालिबान से बचाने के लिए कोई टूल किट नहीं है. ये वो तमाम लोग हैं, जो लोकतंत्र और मानव अधिकारों की बात करते हैं. इसके बावजूद अफगानिस्तान के मामले में इनका रूख़ वैसा नहीं है, जैसा भारत या दूसरे देशों को लेकर होता है.
ये देश मान्यता देने को तैयार!
अभी ये साफ नहीं है कि अगर तालिबान अफगानिस्तान (Afghanistan) में सरकार बनाता है तो उसे कौन कौन से देश मान्यता देंगे. पाकिस्तान, चीन, टर्की और Russia ने कहा है कि वो अफगानिस्तान में अपने दूतावास बंद नहीं करेंगे.
तालिबान (Taliban) ने 1996 में पहली बार अपनी सरकार बनाई थी. तब उसकी सरकार को सबसे पहले पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने मान्यता दी थी. इसके अलावा दुनिया के किसी भी दूसरे देश ने तालिबान को मान्यता नहीं दी थी. इस बार स्थितियां बदल सकती है.
Organisation of Islamic Cooperation में 57 देश शामिल हैं. ये दुनिया में इस्लामिक देशों का सबसे बड़ा संगठन है. इस संगठन ने फिलहाल अफगानिस्तान की सरकार और तालिबान से संघर्ष विराम के लिए कहा है.
हालांकि इसी संगठन में शामिल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान ने गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने का काम किया है.
Qatar भी इस संगठन का हिस्सा है और Qatar वो देश है. जिसने तालिबान और अमेरिका को बातचीत के लिए अपनी जमीन मुहैया कराई थी. Qatar की राजधानी दोहा में ही तालिबान के नेता दूसरे देशों के नेताओं से मिलते हैं.
दूसरी तरफ चीन ने कहा है कि वो तालिबान के साथ दोस्ताना संबध रखना चाहता है. जबकि Russia का कहना है कि वो तालिबान (Taliban) को मान्यता देने पर विचार कर सकता है. अफगानिस्तान में Lithium बहुत बड़े पैमाने पर पाया जाता है. Lithium से ही मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक वाहनों के लिए बैटरी बनाई जाती है. चीन अपने यहां आने वाले देशों में सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहन चलाना चाहता है और वो पूरी दुनिया को इनकी सप्लाई करना चाहता है. इसलिए चीन की नजर अफगानिस्तान के Lithium पर भी है. जिसकी कीमत 75 लाख करोड़ रुपये है. पहले युद्ध तेल के लिए होते थे. अब हो सकता है कि Lithium के लिए दुनिया के देश आपस में लड़ें. जिसकी शुरुआत अफगानिस्तान से हो चुकी है.
कुल मिलाकर अफगानिस्तान (Afghanistan) के मुद्दे पर पाकिस्तान, चीन, Russia और Qatar एक नए मोर्चे का निर्माण कर सकते हैं. जिसमें Turky जैसे देशों की भी भूमिका हो सकती है. दरअसल Turky के पाकिस्तान से अच्छे संबंध हैं. वहीं पाकिस्तान और तालिबान के संबंधों के बारे में दुनिया जानती है.
पाकिस्तान ने अमेरिका से खूब ऐंठे डॉलर
अफगानिस्तान में आज जो कुछ हो रहा है उसके पीछे पाकिस्तान का धोखा जिम्मेदार है. तालिबान (Taliban) से लड़ने के नाम पर अमेरिका ने पाकिस्तान को 15 वर्षों में ढाई लाख करोड़ रुपये दिए. पाकिस्तान ने आतंकवाद को रोकने के नाम पर अमेरिका को खूब ठगा. पाकिस्तान अमेरिका से पैसे भी लेता रहा, तालिबानियों को Training भी देता रहा और उसने ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादियों को अपने देश में छिपाकर भी रखा.
कुल मिलाकर पाकिस्तान ने वर्ष 2002 से 2017 तक अमेरिका को आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर बेवकूफ बनाया. जब डोनल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने पाकिस्तान को दी जाने वाली मदद रोक दी. 2018 में अमेरिका ने पाकिस्तान को 15 हजार करोड़ रुपये देने थे. जिस पर रोक लगा दी गई. इसका बदला लेने के लिए पाकिस्तान ने खुलेआम तालिबान का समर्थन शुरू कर दिया.
तालिबान के नेता दावा कर रहे हैं कि वो पहले की तरह क्रूर तरीके से सरकार नहीं चलाएंगे. सच ये है कि तालिबान (Taliban) ने अफगानिस्तान में शरिया कानून लागू करना शुरू कर दिया है. चोरी करने वालों के हाथ और पांव काटने का ऐलान किया जा रहा है. कई जगहों पर महिलाओं के अकेले घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई है. हिजाब और बुर्के को अनिवार्य कर दिया गया है और महिलाओं से कहा गया है कि वो इस बात का ध्यान रखें कि उनके शरीर का कोई भी हिस्सा दिखाई ना दें. इस्लाम के शरिया कानून में अपराधियों को कोड़े मारने, उनके हाथ-पैर काट देने और गंभीर अपराध के मामले में फांसी तक देने का प्रावधान है.
कुछ दिनों पहले ही तालिबान (Taliban) ने फतवा जारी करके कहा था कि उसके लड़ाके 12 वर्ष से ज्यादा उम्र की लड़कियों और 45 साल से कम उम्र की विधवा महिलाओं के साथ भी जबरदस्ती शादी कर सकते हैं. तालिबान ने ऐसी बच्चियों और महिलाओं की List बनानी भी शुरू कर दी है.
ये मुसलमान भी चाहते हैं शरिया कानून
शरिया कानून कुरान और इस्लाम के दूसरे धार्मिक ग्रंथों और फतवों पर आधारित कानून है. पूरी दुनिया में कई ऐसे देश हैं. जहां रहने वाले मुसलमान चाहते हैं कि उनके देश में भी शरिया कानून लागू हो जाए. सबसे खराब स्थिति दक्षिण एशिया की है. जहां बांग्लादेश के 82 प्रतिशत, पाकिस्तान के 84 प्रतिशत और अफगानिस्तान के 99 प्रतिशत मुसलमान चाहते हैं कि उनके देश में शरिया कानून लागू हो जाए. इसी रिसर्च के मुताबिक भारत के 74 प्रतिशत मुसलमान भी चाहते हैं कि सामान्य अदालतों के साथ साथ देश में शरिया अदालतें भी होनी चाहिए.
वैसे ये स्थिति अचानक से नहीं आई है. इसकी जड़ में भारत का इतिहास और वर्ष 1947 में धर्म के आधार पर हुआ भारत का बंटवारा है. आज भी भारत में बहुत सारे लोग ऐसे हैं. जो ना सिर्फ शरिया का बल्कि तालिबान का भी समर्थन करते हैं. ऐसे ही लोगों की एक Chat Social Media Platform पर Viral हो रही है. जिसमें देश का ये टुकड़े टुकड़े गैंग कह रहा है कि हमें तालिबान से सीखना चाहिए कि आजादी कैसे हासिल की जाती है.
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वैसे अगर इन लोगों को शरिया और तालिबान (Taliban) इतना ही पसंद हैं तो ये लोग अफगानिस्तान (Afghanistan) जा सकते हैं. भारत के जो हिंदू और सिख वहां फंसे हुए. वो किसी भी हालत में वहां से बाहर निकलना चाहते हैं.
एक अनुमान के मुताबिक अफगानिस्तान में अब भी 1500 सिख और हिंदू फंसे हुए हैं. भारत की सरकार ने इन्हें वहां से निकालने के लिए अपने प्रयास शुरू कर दिए हैं. काबुल में भारत के दूतावास में भी भारत के करीब 200 नागरिक फंसे हुए हैं. इन्हें सुरक्षित बाहर निकालने के लिए भारत अपने विमान वहां भेजना चाहता है.
फिलहाल काबुल के Air Space को बंद कर दिया गया है. किसी भी देश का विमान काबुल के ऊपर उड़ान नहीं भर सकता. रविवार को भारत ने Air India का एक विमान काबुल भेजा था. जिसके जरिए 129 लोगों को काबुल से बाहर निकाला गया. इसमें भारतीय नागरिकों समेत अफगानिस्तान के दो सांसद और वहां के राष्ट्रपति के सलाहकार भी थे.
डरे हुए हैं अफगानिस्तान के हिंदू-सिख
हालांकि तालिबान (Taliban) के कुछ नेताओं ने अफगानिस्तान में फंसे हिदुओं और सिखों से मुलाकात करके उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिया है. इसके बावजूद तालिबान के दावों पर यकीन नहीं किया जा सकता.
अफगानिस्तान की कुल आबादी 3 करोड़ 80 लाख है. अफगानिस्तान (Afghanistan) में कुल 34 प्रांत और 421 जिले हैं. अफगानिस्तान 6 लाख 52 हज़ार वर्ग किलोमीटर में फैला है. यानी क्षेत्रफल के मामले में ये ब्रिटेन से दोगुना बड़ा है. अफगानिस्तान को एशिया का Heart कहा जाता है, लेकिन आज कट्टरपंथी इस्लामिक ताक़तों की वजह ये Heart फेल होने की कगार पर है.
अफगानिस्तान में ग़रीबी बहुत ज़्यादा है. अकेले कंधार में 81 प्रतिशत लोग ग़रीबी से संघर्ष कर रहे हैं. अफगानिस्तान में साक्षरता की भी कमी है. वहां केवल 30 प्रतिशत महिलाएं लिख पढ़ सकती हैं जबकि ऐसे पुरुषों की संख्या सिर्फ़ 55 प्रतिशत है. अफगानिस्तान में बड़े बड़े पहाड़ हैं और वहां का बड़ा हिस्सा रेगिस्तानी इलाक़ों से घिरा है.
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