नई दिल्ली: भारत एक तरफ तो पहाड़ों पर सुरंगें बना रहा है, लेकिन दूसरी तरफ ये पहाड़ लगातार कमजोर भी हो रहे हैं. इसी वजह से हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में जबरदस्त लैंडस्लाइड हुआ, जिसमें आठ मंज़िला एक इमारत देखते ही देखते मलबे के ढेर में तब्दील हो गई. भारी बारिश को देखते हुए शिमला नगर निगम ने 15 दिन पहले ही इस बिल्डिंग को खाली करने के निर्देश दे दिए थे, लेकिन इसमें रहने वाले लोगों को यही लगता रहा कि ये इमारत नहीं गिरेगी, लेकिन कुछ ही घंटे पहले पुलिस की मदद से सभी परिवारों को वहां से बाहर निकाला गया, जिसके बाद घटना हुई.


एनजीटी के आदेश को किया गया नजरअंदाज


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क्लाइमेट चेंज (Climate Change) और इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर पहाड़ों के दोहन की वजह से हिमाचल प्रदेश में इस बार पिछले वर्ष के मुकाबले लैंडस्लाइड की घटनाएं 116 प्रतिशत बढ़ गई हैं और बादल फटने की घटनाओं में 121 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal) ने 6 साल पहले एक आदेश दिया था कि शिमला में लैंडस्लाइड के खतरे की वजह से कोई भी इमारत तीन मंजिल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, लेकिन 6 साल बाद आज भी शिमला में ज्यादातर इमारतें 5 से 12 मंजिल की हैं, जिससे बड़े हादसों का खतरा बना रहता है. हिमाचल सरकार ने खुद एनजीटी के इस आदेश को कोर्ट में चुनौती दी हुई है.


दुनिया में सबसे ज्यादा हुई लैंडस्लाइड की घटनाएं


ब्रिटेन की शेफील्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्च के मुताबिक साल 2004 से 2016 के बीच पूरी दुनिया के मुकाबले भारत में लैंडस्लाइड की सबसे ज्यादा घटनाएं हुईं. भारत में लैंडस्लाइड की 28 प्रतिशत घटनाएं पहाड़ों पर हो रहे निर्माण कार्यों की वजह से होती है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है. दूसरे नंबर पर चीन और तीसरे नंबर पर पाकिस्तान है. लैंडस्लाइड (Landslide) की दूसरी सबसे बड़ी वजह है तेज और बेमौसम बारिश है, जिसके लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार माना जाता है.


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कई राज्यों में भूकंप का बड़ा खतरा


जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (Geological Survey of India) के मुताबिक भारत में 4 लाख 20 हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका ऐसा है, जहां कभी भी बड़े पैमाने पर लैंडस्लाइड हो सकता है. दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला जिसे हम हिमालय पर्वत श्रृंखला कहते हैं वो भारत के 13 राज्यों से होकर गुजरती है. इनमें से कई राज्य भूकंपीय क्षेत्र पांच में आते हैं. माना जाता है कि इस जोन में आने वाले इलाकों में कभी भी रेक्टर स्केल पर सात या इससे ज्यादा तीव्रता का भूकंप आ सकता है. इसके बाद सबसे खतरनाक श्रेणी भूकंपीय क्षेत्र चार मानी जाती है. और इस इलाके में भी 7 या इससे ज्यादा तीव्रता वाले भूकंप का खतरा बना हुआ है. देश की राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार के बहुत सारे इलाके जोन चार में आते हैं.


ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बढ़ी घटनाएं


कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) की वजह से भूकंप और लैंडस्लाइड की घटनाएं तेजी से बढ़ सकती है. वैज्ञानिकों के मुताबिक जैसे ही पहाड़ों की बर्फ या वहां मौजूद ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं वैसे ही पहाड़ों का वेट डिस्ट्रीब्यूशन (Weight Distribution) बदल जाता है और पृथ्वी के नीचे मौजूद टेक्टोनिक प्लेट्स (Tectonic Plates) के टकराने की आशंका बढ़ जाती है, जिससे भूकंप आते हैं और लैंडस्लाइड की घटनाएं होती हैं.


क्लाइमेट चेंज पर जागरूकता की कमी


क्लाइमेट चेंज वो मुद्दा है, जिसे लेकर लोगों और सरकारों के बीच जागरूकता पहले से ही बहुत कम है और जहां जागरूकता है भी वहां लोग इस बारे में ज्यादा बात नहीं करना चाहते. हमारे देश का मीडिया भी क्लाइमेट चेंज की खबरों को गंभीरता से नहीं लेता. इसे हेडलाइंस में जगह नहीं मिलती और ये खबर बहुत पीछे छूट जाती है. मीडिया का पूरा ध्यान इस पर रहता है कि किस सेलिब्रेटी ने किसको तलाक दिया. किसने किस कंपनी से इस्तीफा दिया और किसने कितना पैसा कमाया, लेकिन हमें लगता है कि क्लाइमेट चेंज की खबरों को प्राथमिकता देने का समय आ गया है.


क्योंकि वो दिन दूर नहीं जब दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों मे बर्फ पड़ने लगेगी, नैनिताल और शिमला जैसे शहरों में भीषण गर्मी पड़ेगी और राजस्थान और कच्छ के रेगिस्तान में भारी बरसात होगी. आज अपने घर में बैठे हुए आप इस जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते, लेकिन कुछ ही वर्षों के बाद ये सब कुछ आपके सामने होगा. इसिलए आज हम इस बहुत ही गंभीर मुद्दे पर आपको सावधान कर रहे हैं.


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