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नई दिल्ली: चीन (China) के विकास की चमक इन दिनों अंधेरे में डूबी हुई है क्योंकि चीन में बिजली संकट (Electricity Crisis) की वजह से पहले फैक्ट्रियों में काम काज ठप हुआ और अब लाखों-करोड़ों घरों में बिजली न आने से लोग परेशान हैं. इसका सबसे ज्यादा असर चीन के उत्तर और पूर्व के शहरों पर पड़ा है. चीन के इन इलाकों में, ट्रैफिक लाइट्स, स्ट्रीट लाइट, इमारतों में लगी लिफ्ट और मोबाइल नेटवर्क ठीक से काम नहीं कर रहे.
चीन अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे अर्थव्यवस्था है और वो खुद को एक सुपर पावर के तौर पर देखता है. लेकिन चीन में हो रहे पावर कट (Power Cut) ने भविष्य की इस सुपर पावर की पोल खोल दी है. चीन में इस बिजली संकट की शुरुआत कुछ महीने पहले ही हो गई थी. तब उत्तर-पूर्वी चीन में लगी कई फैक्ट्रियों को या तो प्रोडक्शन घटाने के लिए कह दिया गया था या फिर इन्हे बंद करने के आदेश दे दिए गए थे. अब चीन के आम लोगों से भी कह दिया गया है कि सोच समझकर बिजली का इस्तेमाल करें.
चीन के जिन इलाकों में बिजली की कमी है. वहां पिछले 4 दिनों से दिन में 8 बार बिजली की सप्लाई रोकी जा रही है. अब इस वजह से जल्द ही इन इलाकों में पानी की सप्लाई भी रुक सकती है. चीन के कई सुपर मार्केट में तो आजकल मोमबत्ती की रोशनी में काम हो रहा है. लेकिन ये समस्या सिर्फ चीन तक सीमित नहीं है. इसका असर ग्लोबल सप्लाई पर भी पड़ने लगा है. चीन को दुनिया की फैक्ट्री कहा जाता है. लेकिन बिजली संकट की वजह से चीन की फैक्ट्रियों में प्रोडक्शन रुका हुआ है और इससे दुनिया भर की सप्लाई चैन भी प्रभावित हो रही है.
चीन में इस बिजली संकट के दो बड़े कारण है. पहला ये कि, चीन में कोयले की उपलब्धता कम है और इसकी कीमतें बहुत ज्यादा हो गई है. इसलिए फैक्ट्रियां और बिजली सप्लाई करने वाली कंपनियां कम मात्रा में कोयला खरीद रही है. चीन में आज भी 68 प्रतिशत बिजली का उत्पादन कोयले से होता है. चीन को कोयले की सबसे ज्यादा सप्लाई ऑस्ट्रेलिया से होती है. लेकिन चीन और ऑस्ट्रेलिया इन दिनों व्यापार युद्ध में उलझे हैं और चीन ने ऑस्ट्रेलिया से होने वाले कोयले के आयात पर रोक लगा रखी है.
दूसरा कारण ये है कि चीन ने वर्ष 2030 तक कोयले पर अपनी निर्भरता खत्म करने का लक्ष्य रखा है ताकि कॉर्बन एमिशन (Carbon Emission) को कम करने का लक्ष्य हासिल किया जा सके. इसके लिए वहां कोयले के इस्तेमाल को लेकर सख्त कानून बनाए गए हैं. लेकिन अभी चीन की अर्थव्यवस्था इस स्थिति में नहीं है कि वो कोयले पर अपनी निर्भरता को एकदम से कम कर सके. लेकिन जब चीन की सरकार कोई फैसला लेती है तो वो किसी की नहीं सुनती. चीन सिर्फ पूरी दुनिया में किसी भी तरह से अपनी छवि को चमकाना चाहता है और अपनी छवि को चमकाने के लिए चीन की सरकार ने अपने लाखों करोड़ों नागरिकों को अंधेरे में धकेल दिया है.
चीन में अगले वर्ष विंटर ओलंपिक्स (Winter Olympics) का आयोजन होना है और चीन के राष्ट्रपति चाहते हैं कि उससे पहले चीन की हवा एकदम साफ हो जाए और चीन के आसमान में प्रदूषण का कोई निशान न हो. लेकिन समस्या ये है कि सर्दियों के दौरान चीन के ज्यादातर इलाकों में जबरदस्त ठंड पड़ती है, और पारा शून्य से भी नीचे चला जाता है. इसलिए ऐसे इलाकों में घरों और दफ्तरों को गर्म रखने के लिए भी बिजली की जरूरत होती है. लेकिन चीन की सरकार को इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता. भविष्य में चीन के लोग या तो ठंड से मरने पर मजबूर होंगे या फिर भूख से मारे जाएंगे क्योंकि फैक्ट्रियों में प्रोडक्शन बंद होने की वजह से इस साल के आखिर तक चीन की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट की आशंका है. अगर ऐसा हुआ तो चीन में बेरोजगारी और भुखमरी दोनों बढ़ जाएंगी.
इसका असर दुनिया पर भी पड़ना तय है. पूरी दुनिया में अभी से एल्युमिनियम, टेक्सटाइल, माइक्रो चिप्स और स्टील की कमी होने लगी है. क्योंकि इन चीजों की सबसे ज्यादा सप्लाई चीन से ही होती है. चीन की रियल स्टेट कंपनी एवरग्रांडे (Evergrande) दिवालिया होने वाली है, जिस पर साढ़े 22 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है. इस आशंका से दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं पहले से डरी हुई हैं. क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो दुनिया में आर्थिक मंदी आ सकती है और अब चीन की हजारों फैक्ट्रियों के बंद होने आर्थिक मंदी की आशंका और मजबूत हो गई है. दुनिया की कई बड़ी रेटिंग एजेंसियों ने भी अब चीन की रेटिंग्स घटानी शुरू कर दी है. इसका असर भी पूरी दुनिया की अर्थव्यस्था पर पड़ेगा.
अब इसका समाधान ये है कि दुनिया भर के देश चीन पर अपनी निर्भरता कम करें. भारत जैसे देशों में ज्यादा से ज्यादा फैक्ट्रियां लगाई जाए और चीन का बहिष्कार किया जाए. ताकि चीन अपने संकट के संक्रमण को तरह पूरी दुनिया में ना फैला पाए.
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