DNA ANALYSIS: देश में सभी लोगों के लिए अनिवार्य कर दी जानी चाहिए कोरोना वैक्सीन? ये है बड़ी वजह
Coronavirus Vaccine: ज़ी न्यूज़ (ZEE NEWS) की टीम दिल्ली के पास उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के चार गांवों में और मध्य प्रदेश के गांव में गई और इस दौरान हमें यहां ऐसे कई लोग मिले, जो वैक्सीन नहीं लगवाना चाहते. इनमें से कई लोगों ने वैक्सीन लगाने पहुंचे स्वास्थ्यकर्मियों के मुंह पर अपने घर का दरवाजा तक बंद कर दिया.
नई दिल्ली: आज हम आपको ये बताएंगे कि क्या देश में कोरोना वायरस की वैक्सीन सभी लोगों के लिए अनिवार्य कर देनी चाहिए? इस समय देश में वैक्सीन को लेकर दो बड़े सवाल पूछे जा रहे हैं?
पहला सवाल ये है कि देश में 18 साल से ऊपर के सभी लोगों को वैक्सीन लगाने में कितना समय लगेगा?
और दूसरा सवाल ये है कि क्या भारत में सभी लोगों को वैक्सीन लगाना मुमकिन है?
लोग नहीं लगवाना चाहते वैक्सीन
इनमें से एक सवाल का जवाब तो सरकार ने दे दिया है और दूसरे सवाल का जवाब आपको कुछ तस्वीरों से मिल जाएगा. ये तस्वीरें दिल्ली के पास गाजियाबाद के नाहल गांव की हैं, जहां लोग वैक्सीन उपलब्ध होते हुए भी नहीं लगवाना चाहते. वहां हमारी टीम ने जब स्वास्थ्यकर्मियों के साथ कई घरों पर दस्तक दी तो लोगों ने वैक्सीन देखते ही अपने घर के दरवाजे बंद कर दिए. यानी ये लोग वैक्सीन नहीं लगवाना चाहते, लेकिन केन्द्र सरकार ने इसकी पूरी तैयारी कर ली है.
पहले आपको ये बताते हैं कि 18 साल से ऊपर के 94 करोड़ लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज़ लगाने के लिए सरकार की क्या योजना है?
तो सरकार ने तय किया है कि वो दिसम्बर महीने तक देश में 18 साल से ऊपर के सभी लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज देने का काम पूरा कर लेगी. इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी ने 7 जून को एक बड़ा ऐलान किया और बताया कि अब वैक्सीन के कुल उत्पादन में से 75 प्रतिशत डोज कम्पनियों के द्वारा केन्द्र सरकार को उपलब्ध कराई जाएंगी और 25 प्रतिशत डोज प्राइवेट अस्पतालों को दी जाएंगी.
जुलाई के महीने तक कोविशील्ड और कोवैक्सीन की 53 करोड़ 60 लाख डोज देश में उपलब्ध होंगी. इसके बाद अगस्त से दिसम्बर महीने के बीच 133 करोड़ 60 लाख वैक्सीन की डोज कंपनियों द्वारा विकसित कर सरकार को दी जाएंगी.
-इनमें से 50 करोड़ डोज कोविशील्ड की होंगी.
-38 करोड़ 60 लाख डोज कोवैक्सीन की होंगी.
-30 करोड़ डोज Biological E की होंगी.अगले महीने तक Biological E की वैक्सीन भारत में आ जाएगी, जिसका नाम Corbevax होगा.
-इसके अलावा रूस की वैक्सीन Sputnik V की 10 करोड़ डोज मिलेंगी.
-और Zydus Cadila की 5 करोड़ डोज इस दौरान भारत में इस्तेमाल होंगी.
इस हिसाब से इस साल जनवरी से दिसम्बर तक भारत में 187 करोड़ 20 लाख डोज इस्तेमाल की जाएंगी और केन्द्र सरकार ने लक्ष्य रखा है कि वो दिसम्बर तक 18 साल से ऊपर के 94 करोड़ लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लगा देगी.
ये तो हुआ इस सवाल का जवाब कि वैक्सीन के लिए कितना इंतज़ार करना होगा, लेकिन अब दूसरा सवाल ये है कि सरकार तो वैक्सीन का इंतजाम कर लेगी, लेकिन क्या सभी लोग वैक्सीन लगवाना चाहते हैं?
कोरोना वैक्सीन को लेकर भ्रम
ZEE NEWS की टीम दिल्ली के पास उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के चार गांवों में और मध्य प्रदेश के गांव में गई और इस दौरान हमें यहां ऐसे कई लोग मिले, जो वैक्सीन नहीं लगवाना चाहते. इनमें से कई लोगों ने वैक्सीन लगाने पहुंचे स्वास्थ्यकर्मियों के मुंह पर अपने घर का दरवाजा तक बंद कर दिया.
कई लोगों ने स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा कई बार दरवाजा खटखटाने के बाद भी उसे नहीं खोला. हमें कई लोग ऐसे मिले, जो ये झूठ बोलते दिखे कि उन्होंने वैक्सीन लगवा ली है जबकि कुछ महिलाओं ने ये कहा कि वो मर जाएंगी, लेकिन वैक्सीन नहीं लगवाएंगी. इन इलाकों में मस्जिद पर लगे लाउडस्पीकर से वैक्सीन लगवाने की अपील का भी कोई असर नहीं हुआ. कुल मिला कर कहें तो इन इलाकों में लोग वैक्सीन नहीं लगवाना चाहते.
बड़ी बात ये है कि यहां वैक्सीन के लिए ऑनलाइन अपॉइंटमेंट लेने का भी कोई झंझट नहीं है न ही इन्हें वैक्सीन लगवाने के लिए दूर किसी जगह जाना है.
स्वास्थ्यकर्मियों की टीम वैक्सीन के साथ गांवों में जा रही है और वैक्सीन लगवाने के लिए लोगों से कह रही हैं, लेकिन अधिकतर लोग वैक्सीन लगवाने से डर रहे हैं. इनमें से ज़्यादातर लोगों को लगता है कि वैक्सीन उनकी जान ले लेगी या वैक्सीन से आने वाली नस्ल ख़राब हो जाएगी.
टीकाकरण अभियान पर राजनीति
वैक्सीन को लेकर लोगों के मन में बैठे इस डर को समझाने के लिए आज हमने एक ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट को पढ़कर आपको पता चलेगा कि हमारे देश में वैक्सीन नहीं लगवाने के कितने बहाने आ चुके हैं.
हमारे देश में जब से कोरोना वायरस के खिलाफ टीकाकरण अभियान शुरू हुआ है, तभी से इस पर राजनीति हो रही है.
जब वैक्सीन विकसित नहीं हुई थी, तब ये राजनीति हुई कि सरकार इसमें देरी क्यों कर रही है?
जब वैक्सीन बना ली गई तो मेड इन इंडिया, कोवैक्सीन पर राजनीति हुई. इस वैक्सीन को मंज़ूरी देने पर सवाल उठाए गए.
इस बात पर भी राजनीति हुई कि वैक्सीन पहले फ्रंटलाइन वर्कर्स और 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को ही क्यों लगाई गई?
जब 45 साल के ऊपर के लोगों को वैक्सीन लगनी शुरू हुई तो इस पर राजनीति और बढ़ गई
राज्य सरकारों ने केन्द्र सरकार पर आरोप लगाया कि केन्द्र, राज्यों को वैक्सीन की खरीद नहीं करने दे रहा.
जब इस राजनीतिक विवाद को खत्म किया गया, तो वैक्सीन की कीमत पर पॉलिटिक्स शुरू हो गई.
कीमत के बाद इस बात पर भी पॉलिटिक्स हुई कि केन्द्र सरकार वैक्सीनेशन के लिए एक राष्ट्रीय नीति क्यों नहीं बनाती.
दूसरे देशों को कोरोना की वैक्सीन भेजने पर भी राजनीति हुई और आज भी ये राजनीति जारी है. यानी राजनीति की लहर कभी नीचे नहीं आती और राजनीति का वायरस तो कोरोना से भी ज़्यादा संक्रामक है.
लद्दाख की तस्वीर
हालांकि वैक्सीन पर विपक्षी पार्टियों की राजनीति, कुछ लोगों के विरोध और अफ़वाहों के बावजूद ये अभियान चुपचाप बड़े स्तर पर चल रहा है. भले देश के कई गांवों में लोग वैक्सीन नहीं लगवाना चाहते, लेकिन कई गांव ऐसे भी हैं, जहां स्वास्थ्यकर्मी तमाम मुश्किलों को पार करके वैक्सीन लगाने पहुंच रहे हैं. इसे आप लद्दाख की तस्वीर से समझ सकते हैं, जहां वैक्सीन लगाने के लिए स्वास्थ्यकर्मियों की एक टीम जेसीबी के लोडर में बैठ कर नदी को पार करती दिखी.
आप जम्मू कश्मीर की तस्वीरें भी देख सकते हैं, जहां हेल्थ वर्कर्स दूर दराज के इलाक़ों में खेतों में जाकर लोगों को कोरोना की वैक्सीन लगा रहे हैं. कश्मीर के कई इलाक़ों में ख़ासकर ऐसे इलाक़े, जो सीमा के पास हैं, वहां वैक्सीनेशन 80 प्रतिशत तक पूरा हो चुका है. भले ही भारत में कोरोना के टीकाकरण अभियान की राजनीतिक आलोचना हो रही है, लेकिन इसे सफल बनाने के लिए हमारे हेल्थ वर्कर्स और अधिकारी दिन रात काम कर रहे हैं.