नई दिल्ली: हम आपकी मुलाकात भारतीय महिला हॉकी टीम (Womens Hockey Team) की उन युवा खिलाड़ियों से करवाएंगे. ये लड़कियां ब्रिटेन की टीम से Bronze Medal मैच में ज़रूर हार गईं लेकिन इन्होंने करोड़ों लोगों के दिल जीत लिए.


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मेडल के लिए लड़ने वाले ऐसे खिलाड़ी खून, पसीने और आंसुओं से बनते हैं. इसीलिए Bronze Medal Match हारने के बाद उस दिन हमारे देश की ये लड़कियां खूब रोईं थी. बड़ी बात ये है कि ब्रिटेन की लड़कियों के मुकाबले हमारे देश की लड़कियों का संघर्ष कहीं ज्यादा मुश्किल है. आपने इन लड़कियों को Television पर मैच खेलते हुए तो ज़रूर देखा होगा. लेकिन इनके संघर्ष के बारे में आप नहीं जानते होंगे.


टोक्यो के मैदान (Tokyo Olympics 2021) पर पहुंचने से पहले हमारे देश की इन लड़कियों ने उस समाज से मैच खेला. जिसे लड़कियों के Shorts पहनने पर आपत्ति है. रात को देर से घर लौटने पर आपत्ति है. उस परिवार के साथ मैच खेला जो खेल से पहले ही उनकी शादी करा देना चाहता था और उस व्यवस्था से मैच खेला. जहां किसी भी गरीब खिलाड़ी के लिए नाम कमाना आसान नहीं है. अब ये लड़कियां. देश की 65 करोड़ों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गईं हैं. मैदान पर हार कर भी ये लड़कियां पूरे देश का दिल जीत चुकी हैं. 


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सवाल: रानी, आप लोग खेल के बाज़ीगर हो, उस दिन इतना क्यों रोए?  
जवाब: हमारे लिए भावुक लम्हा था, हम मेडल के बहुत करीब थे. करीब जाकर वापस आते हैं तो बहुत दुख होता है. एक एथलीट की लाइफ इतनी आसान नहीं होती है. कोविड के टाइम में बहुत त्याग किए हैं. फैमिली से बहुत दिनों तक दूर थे. मेडल के पास जाकर सब याद आता है. इतनी मेहनत के बाद मेडल नहीं जीत पाए. देश से जो प्यार मिला वो बहुत अच्छा लगा. पहले कभी महिला हॉकी को इतना प्यार नहीं मिला. 


सवाल: ब्रॉन्ज के लिए मैच से पहले आपके क्या भाव थे?  
जवाब: मैच से पहले हमको पूरा आत्मविश्वास था. अर्जेंटीना के साथ सेमीफाइनल अच्छा खेला था. हमने फैसला किया था मेडल हाथ से नहीं जाने देना. हमारी टीम ने मेडल के लिए बहुत फाइट की. दुर्भाग्य से वो हमारा दिन नहीं था.    


सवाल: सविता, मैच में आपने कैसे इतने गोल रोके? 
जवाब: ये काफी लंबी यात्रा रही है. आखिरी ओलंपिक के प्रदर्शन से हम संतुष्ट नहीं थे. हमारा गोल था कि हमें मैच बाई मैच जाना है. हमने तय किया कि हमें अच्छी तरह फिनिश करना है. शुरूआत में हम हारे, बाद में कमबैक टर्निंग प्वाइंट था. 


सवाल: हॉकी बाल क्या फुटबॉल की तरह दिख रही थी? 
जवाब: हमने काफी हार्ड वर्क किया था. अनुभव आपको सब कुछ सिखा देता है. पहले ओलंपिक में दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था. इस ओलंपिक में मुझे पता था कि प्रेशर कैसे हैंडल करना है.


सवाल: नवनीत आपको कैसे चोट लगी, आराम क्यों नहीं किया?
जवाब: मैच खेलते हुए दूसरे प्लेयर की टक्कर से चोट लगी. टीम में 16 प्लेयर थे और मैच में मेरा वापस जाना ज़रूरी था. प्लेयर कम होते तो टीम को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती. टीम को मेरी जरूरत थी तो मुझे लगा चोट बाद में देखेंगे. 
       
सवाल: नवनीत, खेलते वक्त कभी दोबारा चोट पर ध्यान गया?
जवाब: वो मैच लास्ट है, यही सोचकर खेल रहे थे. हर मैच लास्ट है तो अपना बेस्ट करना है. चोट तो बाद में ठीक हो ही जाएगी. 


सवाल: सलीमा कैसा लगा. जब आपतो पता लगा कि प्रधानमंत्री आपके बारे में पूछ रहे हैं? 
जवाब: अच्छा लगा अंदर से क्योंकि बहुत ज्यादा कड़ी मेहनत की. मैच दर मैच हमने खुद को बेहतर किया. मैं सबसे जूनियर हूं तो मुझे अनुभव नहीं था ज्यादा.
        
सवाल: 19 साल की सलीमा को टीम कैसे ट्रीट करती है?  
जवाब: सीनियर बताते हैं डर कर खेलने से कुछ नहीं होता. अपना गेम खेलो, खुलकर खेलो. 


सवाल: वंदना आपने उम्मीद की थी दुनिया बदल जाएगी? 
जवाब: नहीं, कोरोना काल में टीम ने कड़ी मेहनत की. हमने यहां तक पहुंचने के  लिए कड़ी मेहनत की. उत्तराखंड सरकार और मुख्यमंत्री का धन्यवाद. उन्होंने मौका दिया, इसके लिए शुक्रिया. 


सवाल: सुशीला क्या ओलंपिक में देश की प्रतिक्रिया पता चलती थी? 
जवाब: हमारी टीम इंटरनेट यूज़ नहीं करती हैं. हम सोशल मीडिया भी यूज़ नहीं करते हैं. हम साथ विलेज में ग्राउंड जाते हैं मैच खेलते हैं. बस न्यूज़ में चल रही खबर हमने सुनी. 


सवाल: मोनिका जब आप लौटीं तो लगा कि स्टारडम आ गया है? 
जवाब: संदेशों से पता चला देश बहुत खुश है. जब सुना मेडल नहीं दिल जीता, ये बड़ी चीज थी. नंबर चार पर आना भी बहुत बड़ी एचीवमेंट होती है. एयरपोर्ट पर बहुत ज्यादा लोग रिसीव करने आए. सभी का बहुत ज्यादा प्यार मिला, हम बहुत खुश हैं.


सवाल: लालरेमसिआमी आपका अनुभव कैसा रहा? 
जवाब: सर बहुत अच्छा लगा. मैं एक छोटे से राज्य मिजोरम से आई हूं. लोग यहां हॉकी पहचानते और खेलते नहीं है. मैं ओलंपिक तक खेली, मुझको बहुत अच्छा लगा. 


सवाल: नवजोत जब आप यहां वापस आईं तो क्या बदलाव दिखा? 
जवाब: एयरपोर्ट पर बहुत ज्यादा लोग आए थे. बहुत अच्छा लगा देश हमको इतना सपोर्ट कर रहा है. दिल से हमारी रिस्पेक्ट कर रहा है. यहां से हमारी शुरुआत है तो आगे भी हम अच्छा करेंगे. 


सवाल: गुरजीत कभी ऐसा लगता है कि एक गोल कर देते तो मेडल मिल जाता? 
जवाब: जब मैं रेस्ट पर गई तभी पेनल्टी कॉर्नर मिला. टीम में रानी और ग्रेस भी अच्छी पेनल्टी मारते हैं. कभी कभी किसी का भाग्य साथ नहीं देता. हो सकता है कि मैं अंदर होती तो पेनल्टी लग जाती. ये कभी कभी मेरे दिमाग में आता है. 


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सवाल: रानी, फील्ड तक पहुंचने का संघर्ष कैसा रहा? 
जवाब: बचपन से काफी संघर्ष देखा है. सात साल की उम्र में हॉकी खेलना शुरू किया. हरियाणा के कुरुक्षेत्र में शाहबाद हॉकी की नर्सरी है. 20 साल पहले हरियाणा में लड़कियों का बाहर निकलना मुश्किल था. माता-पिता बहुत पढ़े लिखे नहीं थे, खेलों के बारे में नहीं पता था. माता पिता को लगता था कि लड़की को बाहर भेजेंगे तो लोग क्या सोचेंगे. मैं काफी गरीब परिवार से निकल कर यहां तक पहुंची हूं. मुश्किलें आपके अंदर कुछ करने का ज़ज्बा लेकर आती हैं. इससे माता-पिता भी खुश होते हैं. उन्होंने मुझे हॉकी खेलने भेजा. 


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