नई दिल्ली: काबुल एयरपोर्ट के बाद अफगानिस्तान का पंजशीर ऐसा इलाका है, जिस पर पूरी दुनिया की नजर है. इस समय अहमद शाह मसूद के 32 वर्षीय बेटे अहमद मसूद और अफगानिस्तान के पूर्व उप राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह पंजशीर से तालिबान के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व कर रहे हैं.


पंजशीर के साथ हैं अन्य प्रांत


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Zee Media भारत का पहला ऐसा न्यूज चैनल है, जिसने अहमद शाह मसूद के भाई अहमद वली मसूद से बात की है और उन्होंने हमसे कहा है कि तालिबान के खिलाफ इस विद्रोह को पंजशीर के अलावा दूसरे प्रांतों से भी समर्थन मिल रहा है.


अहमद वली मसूद, अहमद शाह मसूद के भाई हैं, जिन्होंने 1996 से 2001 तक तालिबान की सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और नॉर्दन एलायंस की कमान सम्भाली थी. अल कायदा ने उन्हें 2001 में एक आत्मघाती हमले में मार दिया था और आज उनके 32 साल के बेटे अहमद मसूद इस लड़ाई को लड़ रहे हैं.


अहमद मसूद ने लंदन के किंग्स कॉलेज से वॉर स्टडीज में अंडर ग्रेजुएट की पढ़ाई की है और वो ब्रिटेन की मशहूर Sandhurst Military Academy में भी पढ़ चुके हैं और अब तालिबान के खिलाफ लड़ रहे हैं. उनके चाचा अहमद वली मसूद ने उन्हें और दुनिया को अफगान संकट पर क्या संदेश दिया है, ये आपको जरूर जानना चाहिए.


देश की नहीं, कारोबार की चिंता


अहमद शाह मसूद के भाई अहमद वली मसूद तालिबान के खिलाफ क्रान्ति की बात कर रहे हैं. लेकिन अब हम आपको अशरफ गनी के भाई हशमत गनी की बातें सुनाते हैं, जिनका कहना है कि उन्हें तालिबान का शासन स्वीकार है और तालिबान अफगानिस्तान की सुरक्षा करने में सक्षम है.


हशमत गनी अफगानिस्तान के एक बड़े कारोबारी हैं, इसलिए अगर वो अपने भाई की तरह अफगानिस्तान से भाग जाते तो उन्हें बहुत नुकसान होता. इसलिए उन्होंने अपने देश के साथ विश्वासघात करके तालिबान के सामने सरेंडर करने का फैसला किया. यानी कारोबार के लिए देश के प्रति अपनी कर्तव्यों की कुर्बानी दे दी.


अफगान संकट से मिली ये सीख


अफगानिस्तान संकट में आज आपके लिए भी कुछ सीख छिपी हैं. अगर आपका राष्ट्र मजबूत नहीं है तो आपका बंगला, गाड़ियां, बिजनेस, बैंक बैलेंस और पढ़ाई लिखाई किसी काम की नहीं रहती. अगर आपका देश आत्मनिर्भर नहीं है तो आपकी अपनी सम्पत्ति की भी कोई कीमत नहीं रह जाती. अगर आपकी सरकार में कड़े और बड़े फैसले लने की ताकत नहीं है तो आपकी ताकत का भी कोई वजूद नहीं रहता. ऐसी स्थिति में आपको भी हवाई जहाज पर लटक कर भागना पड़ सकता है.


जिस नेता को आपने चुना है, वो अगर कमजोर हो तो सबकुछ होने के बावजूद किसी भी देश के नागरिकों को शरणार्थी बनते देर नहीं लगती. ऐसे कमजोर नेता मुश्किल परिस्थितियों में अपने लोगों को छोड़ कर भाग जाते हैं, जैसा कि अफगानिस्तान में हुआ.


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वोट देते समय हमेशा याद रखें कि जिस नेता को आप चुन रहे हैं, वो आपके लिए और अपने देश के लिए मजबूती से खड़ा रहे और सबसे बड़ी सीख जाति, धर्म, डर, और मुफ्त की चीजों के नाम पर किसी को वोट मत दीजिए. वोट अपने देश को मजबूत बनाने के लिए दीजिए. ये सीख अफगानिस्तान के इस संकट से आज आपको लेनी चाहिए.