नई दिल्ली: भारत में लोगों को ये जानना है कि ओलंपिक में मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों का धर्म और उनकी जाति क्या है. 1 अगस्त को पीवी सिंधु ने कांस्य पदक (Bronze Medal) जीता था. लेकिन इस जीत से पहले ही लोग इंटरनेट पर उनकी जाति ढूंढने लगे थे. गूगल ट्रेंड्स (Google Trends) के मुताबिक जिस दिन सिंधु ने मेडल जीता, उसी दिन उनकी जाति को Internet पर सबसे ज्यादा सर्च किया गया.


जमकर खोजी पीवी सिंधु की जाति 


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यानी लोगों की दिलचस्पी ये जानने में नहीं थी कि पीवी सिंधु ने किसको हराया, कितने अंतर से हराया उनके जीवन की कहानी क्या है. लोग सिर्फ ये जानना चाहते थे कि उनकी जाति क्या है. सिंधु की जीत के बाद इंटरनेट पर उनकी जाति ढूंढने वालों की संख्या 700 प्रतिशत तक बढ़ गई थी. पीवी सिंधु की जाति ढूंढने वालों में सबसे आगे आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लोग थे, पीवी सिंधु आंध्र प्रदेश से ही आती हैं.


इसी तरह सेमीफाइनल में पहुंचने वाली भारत की बॉक्सर लवलीना बोरगोहेन के धर्म को भी इंटरनेट पर ढूंढा गया. भारतीय बॉक्सर (Indian Boxers) को लेकर लोगों ने इंटरनेट पर जो भी सर्च किया गया उसमें लवलीना का धर्म तीसरे नंबर पर था. लवलीना के धर्म में सबसे ज्यादा दिलचस्पी कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र के लोगों को थी. इसी तरह लोगों ने रेसलर (Wrestler) साक्षी मलिक की जाति के बारे में भी इंटरनेट पर खूब छानबीन की.


ऐसा पहली बार नहीं है जब इंटरनेट पर भारत के किसी खिलाड़ी की जाति इस तरह से ढूंढी गई हो. वर्ष 2018 में जब भारत की एथलीट हिमा दास ने World Under 20 Championship में गोल्ड मेडल (Gold Medal) जीता था, तब भी लोगों ने उनकी जाति को इंटरनेट पर सबसे ज्यादा सर्च किया था. भारत में क्रिकेटर संजू सैमसन की जाति को इंटरनेट पर सबसे ज्यादा बार ढूंढा जाता है. आंकड़ों के मुताबिक संजू सैमसन की जाति पिछले एक साल में 7 बार टॉप ट्रेंड्स (Top Trends) में रही.


सफल व्यक्ति की जाति में रुचि क्यों?


ये ट्रेंड्स साफ करता है कि भारत में आज भी ज्यादातर लोगों के लिए सबसे बड़ी चीज़ जाति है और लोग किसी भी कामयाब व्यक्ति की कहानी जानने से ज्यादा उसकी जाति जानने में रुचि रखते हैं. भारत में आज भी ज्यादातर शादियां जातियों के मिलान के बाद ही होती हैं और जो लोग इंटरेनट पर मेट्रोमोनियल साइट्स (Matrimonial Sites) के ज़रिए रिश्ता ढूंढते हैं, उनमें से ज्यादातर सबसे पहले जाति का ही फिल्टर लगाते हैं.


इसलिए हम कहना चाहते हैं कि जब तक भारत के लोग एक-दूसरे को जातियों के फिल्टर से देखना बंद नहीं करेंगे, तब तक दुनिया में भारत की सफलताएं भी ट्रेंड नहीं करेंगी, क्योंकि हर जीत और हर सफलता को जातियों में बांटने से देश की छवि को चोट पहुंचती है.