नई दिल्‍ली: इंसानों का हठ प्रकृति के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है. इंसान इतने जिद्दी हो चुके हैं कि वो लाख मना करने पर भी प्रदूषण फैलाने से बाज़ नहीं आते और इसी का नतीजा ये हुआ है कि अब ये प्रदूषण ऐसी जगह तक पहुंच गया है, जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते. 


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हमारी जीवन में जननी के दो अर्थ है. एक है पृथ्वी, जहां हम जन्म लेते हैं और एक है मां, जो हमें जन्म देती है. ये बात आपको पता होगी कि इस समय पृथ्वी पर प्लास्टिक का कचरा सबसे बड़ी समस्या बन चुका है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मां के जिस गर्भ से हम जन्म लेते हैं, वहां भी प्लास्टिक पहुंच चुका है, यानी इंसानों ने कोरोना की वैक्सीन तो बना ली, लेकिन प्लास्टिक के प्रदूषण के खिलाफ कोई वैक्सीन नहीं बनाई जा सकी. 


गर्भ में माइक्रो प्लास्टिक की पहचान


Enviroment International नामक एक जर्नल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़ वैज्ञानिकों ने गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के गर्भ में माइक्रो प्लास्टिक की पहचान की है. माइक्रो प्लास्टिक 5 मिलीमीटर से भी कम आकार के प्लास्टिक या फाइबर के छोटे छोटे टुकड़े होते हैं. यानी जो प्लास्टिक अब तक समुद्र, हवा, पानी और खाने में था, वो अब मां के गर्भ तक पहुंच चुका है.  आप इसे ख़तरे की घंटी भी कह सकते हैं. इस रिसर्च में कुल 6 महिलाओं को शामिल किया गया था. इनमें से चार महिलाओं की गर्भनाल में नीले, लाल और गुलाबी रंग के प्लास्टिक के कण मिले हैं. गर्भनाल महिलाओं के शरीर को वो अंग है, जिससे गर्भावस्था के दौरान बच्चे को ऑक्सीजन और ज़रूरी पोषण मिलता है



वैज्ञानिकों का मानना है कि Paints, Cosmetics और Personal Care Products के ज़रिए प्लास्टिक के ये कण महिलाओं की गर्भनाल तक पहुंचे हैं. 


अजन्मे बच्चे के लिए मां  के गर्भ से सुरक्षित जगह कोई नहीं हो सकती, लेकिन इसमें माइक्रोप्लास्टिक मिलने से वैज्ञानिकों की चुनौती बढ़ गई है. 


 20 वर्षों में दुनिया, प्लास्टिक की गंभीर समस्या से जूझ रही होगी


North Pacific ocean पर रहने वाले एक समुद्री पक्षी की तस्‍वीर सामने आई है,  जिसे Albatross कहा जाता है.  इसकी प्लास्टिक खाने से मौत हो गई थी.  कई दिनों बाद जब अमेरिका से कुछ लोग वहां एक फ़िल्म की शूटिंग करने के लिए पहुंचे, तो उन्होंने ये तस्वीर खींची. तब इस मृत पक्षी के पेट में प्लास्टिक की बोतल, ढक्कन और दूसरी चीज़ें मिली थीं.


अनुमान है कि अगले 20 वर्षों में दुनिया प्लास्टिक की गंभीर समस्या से जूझ रही होगी. हर वर्ष पूरी दुनिया में 30 करोड़ टन प्‍लास्टिक का कचरा पैदा होता है.  ये पूरी दुनिया की जनसंख्या के कुल वज़न के बराबर है. 


आप सोच रहे होंगे कि प्लास्टिक ही तो है, इससे क्या हो जाएगा? हमारे देश में प्लास्टिक बैग्स पर बैन है, लेकिन बावजूद इसके लोग इसका इस्तेमाल करते हैं.  हम ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि हम प्लास्टिक फ्रेंडली हो गए हैं. 


Environmental Science की एक रिसर्च में बताया गया है कि एक इंसान के शरीर में पूरे साल में 39 हज़ार से 52 हज़ार प्लास्टिक के कण प्रवेश कर जाते हैं और सांस लेते हुए 74 हज़ार प्लास्टिक के कण शरीर में चले जाते हैं. यानी आज समुद्र, हवा, पानी और यहां तक की हमारे शरीर में भी प्लास्टिक की मिलावट हो चुकी है. 


समुद्र में फेंके जाएंगे 150 करोड़ मास्क 


प्लास्टिक की समस्या कितनी गंभीर है, इसे एक दूसरी ख़बर से समझिए.  इस साल 150 करोड़ मास्क समुद्र में फेंके जाएंगे. यानी जिस मास्क को कोरोना वायरस से बचाव के लिए सबसे बड़ा हथियार माना जा रहा है, उससे समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ जाएगा. 


हॉन्ग कॉन्ग की एक पर्यावरण संरक्षण संस्था ने इस पर एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट को आप 5 पॉइंट्स  में समझिए- 


-इस वर्ष दुनियाभर में 5200 करोड़ मास्क बनाए गए हैं.


-अनुमान है कि इसका 3 प्रतिशत यानी 150 करोड़ मास्क समुद्र में पहुंच जाएंगे.


-ये मास्क एक ख़ास किस्म के प्लास्टिक से बने होते हैं और प्रत्येक मास्क का वज़न तीन से चार ग्राम होता है.


-इस हिसाब से समुद्र में जो 150 करोड़ मास्क फेंके जाएंगे, उनका वज़न 68 लाख किलोग्राम होगा, जिसे नष्ट होने में लगभग 450 साल लग जाएंगे.


-वैज्ञानिकों ने इस ख़तरे से बचने के लिए कपड़े से बने मास्क पहनने का सुझाव दिया है. 


कहते हैं कि सच छिपाने के लिए की गई एक ग़लती, एक हज़ार समस्याओं को जन्म देती है और यही ग़लती इंसानों से हुई है.  पहले दुनिया भर में प्लास्टिक के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया, हर चीज़ में प्लास्टिक का इस्तेमाल होने लगा और जब कोरोना वायरस आया तो इससे बचने के लिए भी जो मास्क बनाए गए, उनमें भी प्लास्टिक का इस्तेमाल किया गया.  दुनिया के कई देश जब समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं, ऐसे में मास्क से पैदा हुए इस नए संकट ने सबकी चिंता बढ़ा दी है.  आप इसे समस्याओं का चक्र भी कह सकते हैं, जिसमें इंसान अपनी ग़लतियों के लिए बार बार नए संकट का सामना कर रहा है और नए साल में इस संकट का सामना करना दुनियाभर के देशों के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी.