नई दिल्‍ली: पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील के पास से अपने टैंकों और जवानों को हटाना चीन के लिए अच्छी खबर नहीं थी. लेकिन राहुल गांधी ने ये झूठ बोल कर चीन को खुश कर दिया कि चीन जीत गया है और भारत की इसमें हार हुई है. कल 12 फरवरी को राहुल गांधी ने देश से बहुत सारे झूठ बोले और देश की सेना का भी अपमान किया. उनकी प्रेस कॉन्‍फ्रेंस की तीन बड़ी बातें या तीन बड़े झूठ क्या हैं. सबसे पहले आसान भाषा में आपको ये बताते हैं-


राहुल गांधी ने देश को गुमराह किया


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पहला झूठ राहुल गांधी ने कहा कि भारत सरकार ने पैंगोंग झील के पास फिंगर 3 से फिंगर 4 तक की जमीन चीन को दे दी है. लेकिन ये दावा पूरी तरह भ्रामक गलत है. असल में लाइन ऑफ एक्‍चुअल कंट्रोल फिंगर 8 पर है.  चीन ने सहमति दी है कि उसकी सेना फिंगर 8 के पास चली जाएगी, जबकि भारतीय सैनिकों को फिंगर 3 पर लौटना है, जहां वो मई 2020 से पहले थे यानी ये दावा करना कि फिंगर 3 से फिंगर 4 तक की जमीन सरकार ने चीन को दे दी है, ये एक बहुत बड़ा झूठ है और राहुल गांधी ने ऐसा करके देश को गुमराह किया है. 


दूसरा बड़ा झूठ राहुल गांधी ने कहा कि सीमा पर तनाव खत्म करने के लिए भारत और चीन के बीच जो समझौता हुआ है, उसमें चीन की जीत हुई है,  जबकि सच ये है कि चीन की सेना ने इस पर सहमति दी है कि वो पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर फिंगर 8 के पास चली जाएगी, जहां लाइन ऑफ एक्‍चुअल कंट्रोल  है. यानी चीन को वापस जाना पड़ा है और ये भारत की बड़ी जीत है. 


अब तीसरा बड़ा झूठ आपको बताते हैं. राहुल गांधी ने आज ये भी कहा कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने भारत माता का एक टुकड़ा काट कर चीन को दे दिया है और उन्होंने इस दौरान देश की सेना का अपमान भी किया. उन्होंने कहा कि सरकार सेना के जवानों के बलिदान पर थूक रही है.


रक्षा मंत्रालय का बयान


राहुल गांधी की इन बातों से स्पष्ट है कि वो चीन के साथ खड़े हैं और भारत में उनका काम सिर्फ राजनीति करना है और देश की सेना को अपमानित करना है. राहुल गांधी ने आज देश से जो झूठ बोले, उस पर रक्षा मंत्रालय की तरफ से भी एक बयान जारी किया गया और इनमें दो बातें राहुल गांधी के लिए भी लिखी गई हैं. 


पहली बात ये कि भारत चीन सीमा पर मौजूदा स्थिति को लेकर देश के मीडिया में झूठी और गलत खबरें फैलाई जा रही हैं और ऐसा कौन कर रहा है ये सब जानते हैं. ऐसा राहुल गांधी कर रहे हैं. 


दूसरी बात ये कि रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि जिन लोगों को भारत की इस सफलता पर शक है, वो लोग असल में हमारे देश के जवानों के बलिदान का अपमान कर रहे हैं. 


रक्षा मंत्रालय ने ये भी साफ किया कि ये दावा पूरी तरह गलत है कि भारत की जमीन पूर्वी लद्दाख में  झील के पास फिंगर 4 तक है. ये झूठ भी राहुल गांधी ने कल 12 फरवरी को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोला था. 


मंत्रालय ने ये भी बताया कि 1962 में हुए युद्ध के बाद से भारत की 43 हजार वर्ग किलोमीटर की जमीन पर चीन का अवैध कब्‍जा है और ये कब्‍जा राहुल गांधी के परनाना और तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के शासन में हुआ था. दुनिया में इस समय कुल 195 देश हैं और इनमें 34 देश ऐसे हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल चीन द्वारा कब्‍जाई गई भारत की जमीन से भी कम है. इन देशों में मालदीव्‍स, सिंगापुर और बहरीन प्रमुख हैं. 



भारतीय सेना की सफलता से राहुल को क्‍या परेशानी है? 


नए समझौते के तहत भारतीय सैनिक पैंगोंग झील के पास फिंगर 3 के अपने परमानेंट बेस धन सिंह थापा पोस्ट तक वापस लौट आएंगे, जहां मई 2020 से पहले थे और इस समझौते में भारत ने एक इंच जमीन भी नहीं गंवाई है. लेकिन राहुल गांधी ने इस पर भी देश को आज गुमराह करने की कोशिश की और ये दावा किया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने भारत माता के एक टुकड़े को चीन को दे दिया है. अब आप खुद सोचिए कि राहुल गांधी को भारतीय सेना की इस सफलता से कितनी परेशानी हो रही है. 


यहां ध्यान देने वाली बात ये भी है कि राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के लिए सुबह का समय चुना. यानी राहुल गांधी ने सुबह-सुबह देश से झूठ बोला. फिर बहस के लिए एक एजेंडा सेट किया और जब ये खबर चारों तरफ फैल गई तो दिनभर इस पर देश में चर्चा होती रही और फिर रक्षा मंत्रालय को भी इस पर जवाब देना पड़ा. 


यानी ऐसा लगता है कि राहुल गांधी भी देश के खिलाफ दुष्प्रचार करने वाली किसी टूल किट को फॉलो कर रहे थे और इसी के तहत उन्होंने 12 फरवरी को सुबह 9 बजे के आस पास प्रेस कॉन्फ्रेंस की और इससे दुनिया को जो संदेश गया वो ये कि भारत में देश से ज्‍यादा राजनीतिक हितों को महत्व दिया जाता है क्योंकि, 9 महीने के बाद जब भारत और चीन सीमा पर तनाव समाप्त होता दिख रहा है, ऐसे समय में राहुल गांधी का झूठ बोलना दोनों देशों के बीच नए विवाद को जन्म दे सकता है. 


सीमा विवाद को लेकर फैलाई जा रहीं गलत और झूठी खबरें


राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद से देश में सीमा विवाद को लेकर गलत और झूठी खबरें फैलाई जा रही हैं और इन खबरों का मौजूदा स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है. सबसे अहम जिस समय हमारे देश के जवान सीमा पर मजबूती से डटे हुए हैं, उस वक्‍त सेना को अपमानित करना और उसकी सफलता पर प्रश्न करना दुर्भाग्यपूर्ण है और राहुल गांधी को इसके बारे में आज जरूर सोचना चाहिए. 


भारत चीन सीमा विवाद के लिए केंद्र सरकार पर सवाल उठाने वाले राहुल गांधी शायद ये भूल चुके हैं कि जब देश की सत्ता उनके परनाना पंडित जवाहर लाल नेहरू के पास थी और वो प्रधानमंत्री थे तो चीन ने भारत की 43 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्‍जा कर लिया था. 


वर्ष 2013 में UPA की सरकार में रक्षा मंत्री रहते हुए एके एंटनी ने संसद में कुछ बातें कही थी. एके एंटनी ने माना था कि कांग्रेस की गलत नीतियों की वजह से चीन को काफी फायदा मिला और वो भारत की जमीन के एक बड़े हिस्से पर कब्‍जा करने में सफल हुआ था. 


...तो भारत को अपनी जमीन का बड़ा हिस्सा गंवाना नहीं पड़ता


पिछले साल जून 2020 में शरद पवार ने भी ये माना था कि अगर पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार में चीन को लेकर नीतियां सही होतीं, तो भारत को अपनी जमीन का बड़ा हिस्सा गंवाना नहीं पड़ता. वर्ष 1991 में जब पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे तब रक्षा मंत्रालय की जिम्‍मेदारी शरद पवार के पास ही थी. ऐसे में उनकी इन बातों का महत्व और भी ज्‍यादा बढ़ जाता है. 


हम चाहते हैं कि आज राहुल गांधी इन दोनों नेताओं की बातों को जरूर सुनें क्योंकि इससे उन्हें पता चलेगा कि भारत और चीन के बीच जो सीमा विवाद है, उसकी जड़ें कितनी गहरी हैं और ये जड़ें कैसे जवाहर लाल नेहरू के शासन में मजबूत होनी शुरू हुई थी. 


आज राहुल गांधी को ये भी याद रखना चाहिए कि जवाहर लाल नेहरू ने वर्ष 1961 में 4 और 5 दिसंबर को लोक सभा में हुई चर्चा के दौरान क्या कहा था. उस समय चीन ने लद्दाख के जिन इलाकों पर अवैध कब्जा कर लिया था. उस पर सरकार से सवाल पूछे जा रहे थे. तब इन सवालों के जवाब में जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि इस इलाके में एक पेड़ तक नहीं उगता. उन्होंने लद्दाख की इस जमीन को बेकार बताया था और कहा था कि इस जगह पर कोई बसना नहीं चाहेगा. 


हालांकि उस समय कांग्रेस के एक सांसद महावीर त्यागी संसद में मौजूद थे और वो ये बातें सुनकर अपनी सीट से खड़े हो गए और उन्‍होंने अपनी टोपी उतारते हुए कहा कि मेरे सिर पर बाल नहीं है तो क्या ये मान लिया जाए कि मेरे सिर की कोई कीमत नहीं है. 


संसद में पहला अविश्वास प्रस्ताव 


आज हम आपके लिए एक सवाल भी लाए हैं. क्या आपको पता है कि आजाद भारत की संसद में पहला अविश्वास प्रस्ताव कब लाया गया था?  शायद आपमें से बहुत से लोगों को इसकी जानकारी नहीं होगी. ये अविश्वास प्रस्ताव जे.बी. कृप्लानी द्वारा वर्ष 1963 में तब की जवाहर लाल नेहरू सरकार के खिलाफ संसद में पेश किया गया था और इसका जिक्र NCERT की 12वीं कक्षा की एक पुस्तक में भी मिलता है.


इसमें लिखा है कि 1962 में हुए युद्ध में चीन से मिली हार के बाद देश में जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ काफी नाराजगी थी. उस समय सेना के कई बड़े अधिकारियों और कमांडर्स ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और नेहरू के सबसे नजदीकी और उस समय के रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन को भी कैबिनेट से इस्तीफा देना पड़ा था. 


युद्ध में सेना को बिना किसी तैयारी के भेजने के लिए जवाहर लाल नेहरू की भी कड़ी आलोचना हुई थी और इसके बाद 1963 में लोक सभा में नेहरू के खिलाफ देश का पहला अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. यही नहीं युद्ध में हार की वजह से कांग्रेस पार्टी को कई उप चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था. 


राहुल गांधी ये बात कैसे भूल गए?


आज राहुल गांधी को ये भी नहीं भूलना चाहिए कि 1962 के युद्ध से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को कई नेताओं ने चेतावनी दी थी कि उनकी नीतियां देश के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं. लेकिन जवाहर लाल नेहरू ने इन सभी चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया और इसके बाद 1962 में भारत को चीन से युद्ध लड़ना पड़ा.  इस युद्ध में हमारे देश ने लद्दाख में 43 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन गंवा दी. चीन ने इस जमीन पर कब्‍जा कर लिया. 


जिस समय नेहरू पंचशील समझौते और हिंदी-चीनी भाई भाई का नारा बुलंद कर रहे थे, उस समय कई नेताओं ने उन्हें चीन को लेकर आगाह किया था.  वर्ष 1954 में राज्य सभा में डॉक्टर भीम राव अंबेडकर ने नेहरू के इस फैसले की आलोचना की थी और आगाह किया था कि इस गलती की वजह से चीन, भारत को घेर लेगा.


26 अगस्त 1954 को राज्य सभा में डॉक्टर अंबेडकर ने कहा था कि भारत को पूरी तरह से घेर लिया गया है. एक तरफ पाकिस्तान और दूसरे मुस्लिम देश हैं और दूसरी तरफ तिब्बत पर चीन का कब्जा स्वीकार करके नेहरू ने एक तरह से चीन का बॉर्डर भारत के करीब लाने में मदद की है.  उन्होंने ये भी कहा था कि अगर आज इससे भारत को खतरा नहीं है, तो इसका मतलब ये नहीं है कि आगे भी खतरा नहीं होगा, क्योंकि जिसकी आदत आक्रमण की होती है वो कभी अपनी आदत नहीं छोड़ता. 


भीम राव अंबेडकर के अलावा पंडित दीन दयान उपाध्याय, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन अध्यक्ष एम.एस. गोलवलकर, राम मनोहर लोहिया और सी राजगोपालाचारी ने भी चीन को लेकर नेहरु की नीतियों पर चिंता जताई थी. लेकिन नेहरू उस समय इन चेतावनियों को नजरअंदाज कर अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर चीन का समर्थन कर रहे थे. 


तिब्बत पर चीन के गैर कानूनी कब्‍जे को मान्‍यता


वर्ष 1954 में जवाहर लाल नेहरू ने अपनी चीन यात्रा के दौरान तिब्बत पर चीन के गैर कानूनी कब्‍जे को पंचशील समझौते के तहत मान्यता दे दी थी. यहां पंचशील का मतलब था पंच यानी पांच और शील यानी विचार. यानी ये समझौता पांच विचारों पर टिका था. इसमें आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का मुद्दा भी था. चीन ने इस समझौते का फायदा उठाया और जब तक नेहरू ये समझ पाते कि उनकी नीतियां गलत साबित हुई हैं चीन, भारत की जमीन पर कब्‍जा कर चुका था. 


चीन को लेकर जवाहर लाल नेहरू की नीतियां कितनी गलत थीं, ये आपको 67 वर्ष पुरानी एक चिट्ठी से समझाने की कोशिश करते हैं. नेहरू ने वर्ष 1954 में चीन की यात्रा से लौटने के बाद अंग्रेजों के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन की पत्नी एडविना माउंटबेटन को एक चिट्ठी लिखी थी,  जिसमें वो एडविना माउंटबेटन को ये बता रहे थे कि चीन में उनका जबरदस्त स्वागत हुआ और उन्हें जितना सम्मान भारत में मिलता है, उतना ही सम्मान चीन में भी मिला. नेहरू ने तब बताया था कि चीन के एक शहर में 10 लाख लोगों ने उनका स्वागत किया था और ये लोग उनके वहां पहुंचने से काफी उत्साहित थे. 


इस चिट्ठी में नेहरू द्वारा लिखी गई बातों को पढ़कर लगता है कि जैसे आज कल लोग सोशल मीडिया पर अपने फॉलोअर्स, लाइक्‍स और शेयर देख कर खुश हो जाते हैं, ठीक वैसी ही अनुभूति उस समय नेहरू को भी हो रही थी.


चीन पर पंडित नेहरू की 7 बड़ी गलतियां 


चीन को लेकर जवाहर लाल नेहरू की 7 बड़ी गलतियां क्या थीं. आज आपको ये भी समझना चाहिए-


पहली गलती चीन और कम्‍युनिज्‍म पर नेहरू का रवैया नरम था. 


दूसरी बात तिब्बत में चीन के गैर कानूनी कब्‍जे का विरोध नहीं किया


तीसरी बात तिब्बत में चीन के कब्‍जे को मान्यता दे दी. 


चौथी बात संयुक्त राष्ट्र में जब अमेरिका द्वारा भारत को स्थाई सदस्यता का प्रस्ताव दिया गया तो नेहरू ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया


पांचवीं बात चीन को लेकर नेहरू ने लगातार गलत सैन्य फैसले लिए और नेहरू की फॉरवर्ड पॉलिसी साल 1962 में हुए युद्ध का बड़ा कारण बनी. 


छठी बात  युद्ध के दौरान नेहरू ने वायु सेना का इस्तेमाल करने में संकोच दिखाया. अगर वो वायु सेना की मदद लेते तो युद्ध के परिणाम अलग हो सकते थे. 


और सातवीं बात नेहरू की गुटनिरपेक्ष नीति की वजह से युद्ध में अंतरराष्‍ट्रीय ताकतों ने भारत का समर्थन नहीं किया.


तो ये वो सात गलतियां थीं. भारत चीन सीमा पर मौजूदा स्थिति को लेकर राहुल गांधी ने झूठ फैलाने की कोशिश की, लेकिन हमें लगता है कि जब झूठ जोर-जोर से बोला जाता है तो उस समय सच के लिए संघर्ष करना ही असली राष्ट्रवाद होता है.