नई दिल्ली: रूस के मशहूर लेखक लियो टॉलस्टॉय का एक मशहूर कथन है कि धैर्य और समय किसी भी योद्धा के दो सबसे शक्तिशाली हथियार होते हैं और ये बात जीवन का युद्ध लड़ने वाले योद्धाओं पर भी फिट बैठती है.


स्वीपर से SDM तक का सफर


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ऐसी ही एक योद्धा का नाम है, आशा कंडारा. कभी जोधपुर नगर निगम के लिए सड़कों पर झाड़ू लगाने वाली आशा राजस्थान प्रशासनिक सेवा यानी RAS की परीक्षा पास करके सब डिविजनल मजिस्ट्रेट यानी SDM बन गई हैं. आम भाषा में इस पद को डिप्टी कलेक्टर भी कहते हैं. लेकिन आशा की कहानी सिर्फ इतनी सी नहीं है.


आशा कंडारा ने वर्ष 2018 में RAS की परीक्षा दी थी और इस बीच परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन्होंने जोधपुर नगर निगम में सफाई कर्मचारी की भर्ती परीक्षा भी दी. RAS परीक्षा का रिजल्ट आने में समय था और आशा ने सफाई कर्मचारी भर्ती परीक्षा पास कर ली थी, उनकी नियुक्ति भी नगर निगम में हो गई थी.


दो वर्षों तक सड़कों पर झाड़ू लगाने का काम किया


इसके बाद उन्होंने इसे छोटी नौकरी समझकर ठोकर नहीं मारी, बल्कि दो वर्षों तक सड़कों पर झाड़ू लगाने का काम करते हुए भी वो RAS की मेन्स परीक्षा की तैयारी करती रहीं. उनकी ये मेहनत सफल रही और 728वीं रैक के साथ ये परीक्षा पास करके वो SDM बनने वाली हैं. आशा की शादी के 5 वर्षों के बाद उनके पति उनसे अलग हो गए थे. आशा के कंधों पर दो बच्चों को पालने की जिम्मेदारी थी, लेकिन आशा ने हार नहीं मानी. आशा संघर्ष करती रहीं और इसी बीच उन्होंने ग्रेजुएशन भी पूरी की.


लोगों के ताने भी सुने


इस दौरान उनकी जाति की वजह से लोग उन्हें ताने भी मारते रहे. आशा कंडारा अनुसूचित जाति से आती हैं. कई बार उनकी जाति कि वजह से लोग उन्हें ताना मारते हुए कह देते थे कि तुम कहीं कि कलेक्टर हो क्या? और लोगों का ये ताना ही आशा के लिए एक नया लक्ष्य बन गया और उन्होंने कलेक्टर बनने की ठान ली.



भारत में आज भी अगर लोगों को मौका मिल जाए तो वो ऑफिस जाने की बजाय वर्क फ्रॉम होम करना पसंद करते हैं, अपनी जाति और पदों का विज्ञापन अपनी गाड़ी पर चिपकाकर चलते हैं और जब जीवन में जरा सी परेशानी आती है तो ये तमाम लोग अपनी किस्मत को दोष देने लगते हैं, देश के सिस्टम को कोसने लगते हैं. लेकिन धैर्य और समय को अपना हथियार नहीं बनाते.



जोधपुर की आशा ने पूरे देश को उम्मीद की एक आशा दिखाई है. आशा की ये कहानी आज देश के हर उस नागरिक को देखनी चाहिए, जिसे देश में समस्याएं तो दिखाई देती हैं, लेकिन इसके समाधान के लिए वो मेहनत नहीं करना चाहते.