नई दिल्ली: राम मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या में बुधवार को भूमिपूजन होगा, जिसके लिए तैयारियां करीब करीब पूरी हो चुकी हैं. करीब 500 वर्षों के बाद राम जन्मभूमि पर राम मंदिर फिर से बनने जा रहा है. इसलिए ये भारत के लिए न सिर्फ ऐतिहासिक बल्कि भावनात्मक तौर पर सबसे बड़ा दिन है. वर्ष 1528 में मुगल बादशाह बाबर के समय, अयोध्या में मंदिर की जगह बाबरी मस्जिद बनाई गई थी और अब भारत अपने इस इतिहास को सही कर रहा है.


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देश का संघर्ष
अब आप सोचिए कि इस दौरान मुगल राज खत्म हो गया, अंग्रेजों का 200 साल का राज खत्म हो गया, भारत की आजादी के 73 वर्ष हो गए, यानी आप कल्पना कीजिए कि इन 500 वर्ष में कितनी पीढ़ियां चली गईं, हमने अनुमान लगाया है कि इस दौरान भारत की करीब 25 पीढ़ियां आईं, जिन्होंने राम मंदिर के मुद्दे पर देश के संघर्ष को देखा है और अब जाकर वो मौका आया है जब राम मंदिर का सपना साकार होने जा रहा है.


आप में से बहुत सारे लोगों ने 1990 का वो दौर भी देखा होगा, जब राम मंदिर आंदोलन, एक जन-आंदोलन बन गया था. तब क्या आप सोच सकते थे कि 2020 वो साल होगा, जब मंदिर निर्माण का शुभ अवसर आएगा.


बीच में तो बहुत सारे लोगों ने ये उम्मीद भी छोड़ दी होगी कि मंदिर का बनना तो दूर, वो लोग अपने जीते-जी कभी अयोध्या विवाद का समाधान देख पाएंगे. क्योंकि वर्षों तक भारत के लोगों ने, इस मामले को राजनीति और न्याय व्यवस्था में फंसा हुआ देखा है. इसीलिए ये बहुत संयोग और सौभाग्य की बात है कि आज का भारत, अयोध्या में राम मंदिर को बनते हुए देख रहा है.


आस्था और अधिकार
अगर आजाद भारत की बात करें तो ऐसा दूसरी बार होगा, जब इस तरह से किसी भव्य मंदिर का पुर्ननिर्माण होगा. आजादी के तुरंत बाद गुजरात में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था और तब तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने इसका उद्घाटन किया था और अब राम मंदिर का निर्माण हो रहा है, जिसके लिए भूमि पूजन करने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या जाएंगे.


बहुत लोग ये सवाल भी करते हैं कि राम मंदिर बन जाएगा तो क्या होगा. सबसे बड़ी बात तो आस्था और अधिकार की है. लेकिन दूसरी बात भारत की सॉफ्ट पावर की भी है. भगवान राम सिर्फ भारत के ही नहीं हैं, बल्कि दुनिया के कई देशों में भगवान राम की बड़ी मान्यता है. यही वजह है कि राम मंदिर निर्माण के लिए श्रीलंका जैसे देशों से पवित्र मिट्टी, ईंटें और नदियों का जल आ रहा है. दक्षिण पूर्व एशिया में थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे देश खुद को भगवान श्री राम से जोड़ते हैं.


म्यांमार में राम
श्रीलंका और म्यांमार जैसे देशों में रामायण के लोक गीतों और रामलीला के तरह के नाटकों का मंचन होता है. म्यांमार में आज भी बहुत से लोगों और बहुत से स्थानों के नाम राम के नाम पर हैं. इसी तरह से मलेशिया में रामकथा का प्रचार अभी तक होता है. वहां पर मुस्लिम भी अपने नाम के साथ कई बार राम, लक्ष्मण का नाम जोड़ते हैं. थाईलैंड में तो भरत की तरह राम की पादुकाएं लेकर राज्य करने की अब तक परंपरा चलती है. थाईलैंड के राजवंश के लोग खुद को राम के वंशज कहते हैं. कंबोडिया में भी कई जगहों पर रामायण का आज भी पाठ होता है.


इसके अलावा करीब 3 करोड़ प्रवासी भारतीय दुनिया के अलग अलग हिस्सों में रहते हैं. इसमें ज्यादातर लोग भगवान श्री राम को मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं. भारतीयों के बारे में कहा जाता है कि वो जहां भी जाते हैं, अपनी संस्कृति को साथ लेकर जाते हैं और अपनी संस्कृति को बाहर के देशों में भी प्रसारित करते हैं. भव्य राम मंदिर के निर्माण से इन प्रवासी भारतीयों के अंदर अपने धर्म और संस्कृति के प्रति एक नए गर्व की भावनाएं होंगी.


राम मंदिर के लिए लंबा इंतजार
अगर राम मंदिर के महत्व को हम एक डायग्राम के जरिए समझने की कोशिश करें और इसे भूतकाल, वर्तमान काल, और भविष्य काल में बांटकर देखें तो राम ना सिर्फ हमारी आस्था बल्कि हमारी संस्कृति के केंद्र में रहे हैं. आज भी देश के अलग अलग हिस्सों में लोग एक दूसरे से मिलने पर राम राम या जय राम जी की कहते हैं. हमारे यहां जीवन से लेकर मृत्यु तक, राम का नाम लिया जाता है.


भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम यानी समाज का आदर्श पुरुष कहते हैं. राम राज्य एक ऐसा कॉन्सेप्ट है, जिसकी बात आज भी होती है. लेकिन ये बहुत अफसोस की बात है कि जिस देश की रग रग में राम हों, वहां पर राम मंदिर के लिए इतना इंतजार करना पड़ा जबकि हम आपको बता चुके हैं कि कैसे दुनिया के दूसरे देशों में भगवान राम की मान्यता है.


लेकिन अब जब अयोध्या में भगवान राम के मंदिर का भव्य निर्माण हो रहा है तो उनके नाम पर भारत की सॉफ्ट पावर दोगुनी हो जाएगी. अर्थव्यवस्था के मामले की बात करें, तो भव्य मंदिर निर्माण से यहां पर पर्यटक आएंगे और पर्यटन बढ़ेगा. यानी आप इसे इस तरह से समझें कि राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत होने के बाद भारत का इतिहास दो हिस्सों में बंट जाएगा. पहला हिस्सा राम मंदिर से पहले का होगा और दूसरा हिस्सा इसके निर्माण के बाद का.


मंदिर निर्माण का ऐतिहासिक क्षण 
भगवान राम हमारे लिए कोई खबर नहीं हैं, राम हमारे देश का आधार हैं, पूरे देश की भावनाएं भगवान राम से जुड़ी हैं, इसलिए ज़ी न्यूज़ ने इन भावनाओं को मंच देने के लिए राम मंदिर निर्माण के ऐतिहासिक मौके की भव्य कवरेज की तैयारी की है. हमने राम मंदिर का एक प्रतीकात्मक मॉडल बनाया है जिससे आप ज़ी न्यूज़ के साथ राम मंदिर निर्माण की शुरुआत के ऐतिहासिक मौके के साक्षी बन सकेंगे.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 अगस्त को अयोध्या जाएंगे और वहां पर राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करेंगे. लेकिन जिन लोगों ने उन्हें राम मंदिर आंदोलन के समय देखा होगा, वो लोग उस वक्त कल्पना भी नहीं सकते थे, कि एक दिन इसी नेता के प्रधानमंत्री रहते, राम मंदिर निर्माण का ऐतिहासिक क्षण आएगा. आज हम आपको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 29 वर्ष पुरानी एक तस्वीर दिखाते हैं.


पीएम मोदी की कसम
साल 1991 में जब नरेन्द्र मोदी बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी के साथ अयोध्या गए थे और वहां रामजन्मभूमि परिसर में राम जन्मोत्सव के कार्यक्रम में शामिल हुए थे. तब एक फोटोग्राफर ने मुरली मनोहर जोशी से सवाल पूछा कि उनके बगल में खड़ा व्यक्ति कौन है, तो उन्होंने ये जवाब दिया कि ये गुजरात से आए हैं और इनका नाम नरेंद्र मोदी है.


तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी संगठन में काम करते थे, और जब उनसे पूछा गया कि वो रामलला के दर्शन करने दोबारा कब अयोध्या आएंगे तो उन्होंने यही कहा था कि जब राम मंदिर बनेगा तभी वो रामलला के दर्शन करने अयोध्या आएंगे. अब इसके 29 वर्ष बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ये कसम 5 अगस्त को पूरी होने वाली है.


राम मंदिर आंदोलन से प्रधानमंत्री का पुराना रिश्ता रहा है. आपको वर्ष 1990 में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की चर्चित रथयात्रा याद होगी, जो मंदिर निर्माण की मांग के लिए सोमनाथ से अयोध्या के लिए निकाली गई थी. इस रथ यात्रा की जिम्मेदारी, तब गुजरात बीजेपी के संगठन सचिव के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थी.


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