नई दिल्‍ली:  सोमवार 8 मार्च को देश महिला दिवस मना रहा था. देश में महिला अधिकारों की बहुत सी बातें हुई, संगोष्ठियां हुई, महिलाओं को गुलदस्ते दिए गए, गिफ्ट बांटे गए, महिला शक्ति के पुरस्कार भी बांटे गए पर क्या इससे महिलाओं की स्थिति बदल गई?


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नहीं बदली है, आज जिस खबर के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, वो ये बताती है कि किसी भी महिला को उसके अधिकार तभी मिल सकते हैं जब वो सबसे पहले खुद अपने अधिकारों के लिए हिम्मत दिखाए. ये खबर एक ऐसी ही महिला की है जिसने 26 वर्षों के बाद खामोशी तोड़ी है. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में एक महिला ने 26 वर्ष के बाद, खुद के साथ हुए रेप की एफआईआर दर्ज करवाई है.


क्‍या है पूरा मामला?


हमारे पास वो एफआईआर है. जिस पर शिकायत का वर्ष 2021 लिखा है और बलात्कार का वर्ष 1994, वक्त का अंतर हुआ 26 वर्ष. इस एफआईआर में ये भी लिखा है कि 26 साल बाद भी केस दर्ज कराने के लिए रेप पीड़िता को 6 महीने तक कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. 



अब आप में से कई लोगों के मन में सवाल होगा कि 26 साल क्यों लग गए? इसका जवाब है महिला का बेटा. आप कहेंगे कि अचानक महिला का बेटा कहां से आ गया और ये बेटा अबतक चुप क्यों था? ऐसे बहुत से सवाल आपके मन में इस कहानी को देखते वक्त आएंगे इसलिए हम सबसे पहले आपको संक्षेप में ये बताते हैं कि पूरी घटना क्या है और इस एफआईआर के पीछे की कहानी क्या है.



ये घटना वर्ष 1994 की है. महिला ने पुलिस को बताया है कि जब वो 12 वर्ष की थी तो पड़ोस में रहने वाले दो सगे भाइयों 25 वर्ष के नकी हसन और 22 वर्ष के गुड्डू ने उसके साथ 1 वर्ष तक रेप किया था. इसकी वजह से वो गर्भवती हो गई. 13 वर्ष की उम्र में महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया था. बदनामी के डर से बच्चे को किसी दूसरे परिवार को गोद दे दिया.



20 वर्ष की उम्र में घटना के 6 साल बाद वर्ष 2000 में महिला की शादी हो गई. लेकिन शादी के कुछ वर्षों के बाद महिला के पति को इस घटना की जानकारी हुई और उसने महिला को तलाक दे दिया. महिला की कोई गलती नहीं थी फिर भी वो अपनी जिंदगी को सजा की तरह बिताने को मजबूर थी. 



दूसरी ओर पीड़ित महिला का बेटा भी बड़ा हो चुका था. जब वो 11 वर्ष का हुआ तो उसके दत्तक माता-पिता उसे पीड़िता के पास छोड़कर चले गए. 



बेटे ने किया मां के साथ हुए अन्‍याय के खिलाफ लड़ने का फैसला


ये बच्चा जैसे जैसे बड़ा हुआ, अपनी मां से अपने बारे में अपनी पहचान के बारे में सवाल करने लगा. कुछ वर्षों तक मां सच छुपाती रही, लेकिन बेटे ने जब अपनी जान देने की धमकी दे दी तो पिछले वर्ष मां ने अपने बेटे को सब सच बता दिया. लेकिन बेटे के इस सवाल का जवाब उसके पास नहीं था कि उसके पिता कौन हैं क्योंकि, बलात्कार की इस घटना में दो लोग शामिल थे.


बेटे ने मां के साथ हुए अन्याय के खिलाफ लड़ने का फैसला किया. अपनी मां को इस लड़ाई के लिए तैयार किया. मां ने भी अपने बेटे के अधिकार के लिए पुलिस के पास एफआईआर दर्ज करवाई है. हालांकि 26 वर्ष बाद ये केस दर्ज करवाना आसान नहीं था. 6 महीने तक पुलिस थानों के चक्कर काटने के बाद भी महिला की सुनवाई नहीं हुई. तब महिला ने शाहजहांपुर जिला अदालत में शिकायत की.


अदालत के हस्तक्षेप के बाद दर्ज हुई शिकायत


इस वर्ष 12 फरवरी को अदालत ने मामला दर्ज करने का आदेश दिया. जिसके बाद 4 मार्च को एफआईआर दर्ज हुई है. इस बात को एफआईआर में भी लिखा गया है कि महिला महीनों तक पुलिस के पास शिकायत लेकर जाती रही, लेकिन उसकी सुनवाई नहीं हो रही थी. अब अदालत के हस्तक्षेप के बाद शिकायत दर्ज की गई है. इस मामले में अभी तक पुलिस ने एक आरोपी से पूछताछ की है. दूसरे आरोपी से पूछताछ की जानी अभी बाकी है. मां की शिकायत के बाद बेटे का और दोनों आरोपियों का डीएनए टेस्‍ट कराया जा सकता है. ताकि तय हो सके कि बेटे का असली पिता कौन है और आरोपियों को सजा मिल सके.


आरोपियों को कितनी सजा होगी?


अब आपके मन में ये सवाल जरूर आ रहा होगा कि 26 वर्ष बाद अपने अधिकारों की आवाज उठाने वाली इस महिला के केस में क्या होगा. क्या आरोपियों को सजा होगी या नहीं. अगर होगी तो कितनी सजा हो सकती है.


इस केस में डीएनए टेस्‍ट सबसे बड़ा आधार बन सकता है. अगर पिता और बेटे का संबंध स्थापित हो जाता है तो ये केस आगे बढ़ेगा. ये केस भारतीय दंड संहिता आईपीसी की धारा 376(2) के तहत दर्ज किया गया है. ये धारा गैंगरेप के मामले में लगाई जाती है और इसके तहत दोषी पाए जाने पर आरोपियों को 10 वर्ष की सजा हो सकती है.


वर्ष 2012 के बाद दिल्ली में निर्भया गैंगरेप केस के बाद बलात्कार के मामले में सजा को लेकर कई बदलाव हुए हैं. इन प्रावधानों के तहत अगर 12 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ बलात्कार होता है तो आजीवन कारावास या फांसी की सजा भी हो सकती है, लेकिन यहां हम आपको ये बता दें कि भारत के संविधान में किसी पुराने मामले पर नया कानून लागू नहीं हो सकता. इसलिए 2012 के बाद कानून में किए गए बदलाव इस केस पर लागू नहीं हो सकते.


यौन उत्‍पीड़न के मामले में अदालत का फैसला


फरवरी 2021 में दिल्ली की एक अदालत ने यौन उत्पीड़न के एक चर्चित मामले का फैसला सुनाते हुए कहा था कि अक्सर समाज का डर महिला को शिकायत करने से रोक देता है. कोर्ट ने ये भी कहा कि महिला कई बार खुद को ही गलत मान लेती है और शर्म के कारण शिकायत नहीं कर पाती. लेकिन कई वर्षों के बाद जब पीड़िता बोलने का फैसला करती है, तो इस बात को उसके खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता कि शिकायत वर्षों के बाद की गई है.


अपने हक के लिए आवाज उठाने के लिए हौसला चाहिए. ये काम आसान नहीं होता. समाज का दबाव, बदनामी का डर, पुलिस और अदालत का सामना. एक महिला के सामने ये सब परेशानियां खड़ी होती हैं. ये हिम्मत जुटाने में जितना वक्त लगे, आप जरूर लगाएं. लेकिन अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को अपनी किस्मत मानकर छोड़ना नहीं चाहिए. अधिकारों की रक्षा करने के लिए कानून तो बहुत हैं, लेकिन पहली आवाज महिला को खुद ही उठानी पड़ती है और हम आपसे कहेंगे कि जरूरत पड़े, तो ये आवाज जरूर उठाएं.