DNA: बंट रहा था भारत और `रईस` जिन्ना सिगार के डब्बे तलाशने में जुटे थे
आज से 73 साल पहले आधी रात को भारत दो हिस्सों में बंट गया था. भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आज़ादी तो मिल गई.लेकिन इसकी क़ीमत भारत ने पाकिस्तान के रूप में चुकाई.
नई दिल्ली: आज से 73 साल पहले आधी रात को भारत दो हिस्सों में बंट गया था. भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आज़ादी तो मिल गई.लेकिन इसकी क़ीमत भारत ने पाकिस्तान के रूप में चुकाई. इसलिए आज के दिन को पाकिस्तान में आजादी के दिन के रूप में मनाया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज़ादी मिलने से कुछ दिन पहले तक भारत में क्या-क्या घटनाक्रम हो रहे थे और भारत के बंटवारे और आज़ादी के सूत्रधार क्या कर रहे थे? ये किरदार हैं भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, महात्मा गांधी और मोहम्मद अली जिन्ना (Md ali Jinnah)
भारत के अंतिम Viceroy का नाम था Lord Mountbatten.Lord Mountbatten ने ही भारत के बंटवारे की रूप रेखा तय की थी. Lord Mountbatten जवाहर लाल नेहरू को सिद्धांतों पर चलने वाला नेता मानते थे.लेकिन उनकी राय में नेहरू के सामने जब कोई मज़बूती से अपनी राय रखता था तो वो तुरंत झुक भी जाते थे. जबकि भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को वो एक समझदार और अपनी बात पर मज़बूती से अड़े रहने वाला नेता मानते थे. मोहम्मद अली जिन्ना के बारे में उनकी राय ये थी कि वो बहुत अड़ियल हैं और उन पर किसी की बात का कोई असर नहीं होता.
जब इन तमाम नेताओं ने भारत के बंटवारे का फ़ैसला कर लिया और ये ख़बर फैलने लगी तो वर्ष 1947 के जून महीने में अचानक पाकिस्तान के कराची में अफ़रा-तफ़री मच गई और लोगों ने बैकों में अपने Saving Accounts से 6 करोड़ रुपये निकाल लिए. इसी दौरान दिल्ली के Viceroy House में एक रात चोरी की घटना हो गई. ये चोरी Viceroy House के उस हिस्से में की गई थी. जहां Lord Mountbatten के सैन्य सलाहाकार रहते थे. लेकिन चोर कभी पकड़े नहीं जा सके. Viceroy House को ही आज राष्ट्रपति भवन कहा जाता है.जहां भारत के राष्ट्रपति रहते हैं.
देश में दंगों के बीच जिन्ना को सिगार की पड़ी थी...
इसी बीच देश के हालात बिगड़ने लगे, कहीं हड़तालें होनी लगीं तो कहीं दंगे फ़साद की नौबत आ गई. हरियाणा के रेवाड़ी से 70 हिंदुओं का अपहरण कर लिया गया. भारत के नेता इन स्थितियों को लेकर चिंता में थे. लेकिन उस समय पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को सिर्फ़ अपने सिगार की फ़िक्र थी. मोहम्मद अली जिन्ना ने देहरादून के किसी यूनुस को चिट्ठी लिखी और पूछा कि उनके सिगार के Cartons यानी डिब्बे कहां हैं? आप कह सकते हैं कि जब भारत बंटवारे की आग में जल रहा था. तब भी जिन्ना जैसे नेता को सिर्फ़ अपने शौक की पड़ी थी. वो किसी भी तरह से अपने खोए हुए सिगार वापस पाना चाहते थे। और अपनी शानो शौकत में कोई कमी नहीं आने देना चाहते थे.
वर्ष 1947 में जून का महीना खत्म होते होते देश भर में दंगे फैलने लगे. गुड़गांव, ढाका और लाहौर जैसे शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया. लेकिन जिन्ना की दिलचस्पी सिर्फ ये जानने में थी कि उनके बैंक Account में कितने पैसे हैं. Bank Of India की बॉम्बे और लाहौर ब्रांच ने उन्हें बताया कि उनके Bank Account में 7 लाख 97 हज़ार, 149 रुपये, 12 आना और 3 पैसे बचे हैं. ये उस समय भारत के बंटवारे के सूत्रधार मोहम्मद अली जिन्ना की जमा पूंजी थी.
जुलाई के पहले हफ्ते में एक अमेरिकी नागरिक भारत आया और उसकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई. उस अमेरिकी नागरिक ने महात्मा गांधी से उनका Autograph मांगा.तब गांधी जी ने उस अमेरिकी से कहा कि अगर Autograph चाहिए तो 20 रुपये देने होंगे. काफी देर तक सौदेबाजी के बाद गांधी जी 15 रुपये में अपना Autograph देने के लिए तैयार हो गए और उन्होंने ये रकम हरिजन वेलफेयर फंड में जमा करा दी.
देश के साथ-साथ भारत की सेना का बंटवारा किया जाना था. इस दौरान भारत सरकार ने सैनिकों के लिए नई Pay Scheme की घोषणा की और सेना में जनरल पद के लिए 3 हज़ार रुपये और 10वीं तक पढ़ाई करने वाले सैनिकों के लिए 35 रुपये की मासिक तनख़्वाह तय कर दी गई.
लॉर्ड माउंटबेटन भी परेशान हुए
जिन्ना पाकिस्तान तो बनाना चाहते ही थे लेकिन उनकी ज़िद ने लॉर्ड माउंटबेटन को भी बहुत परेशान कर दिया था. इसी परेशानी के बीच लॉर्ड माउंटबेटन ने अपनी बेटी Patricia को एक चिट्ठी लिखी. इसमें उन्होंने लिखा कि तुम्हारे पिता एक ऐसी स्थिति में फंस गए हैं जिससे सम्मान जनक तरीके से बाहर आना बहुत मुश्किल है. उन्होंने लिखा कि मैने अपने अति आत्म-विश्वास की वजह से सबकुछ बर्बाद कर दिया है. और मैं इस बात से बहुत निराश हूं कि इतनी मेहनत करने के बाद भी मैंने जिन्ना को समझने में बहुत बड़ी ग़लती कर दी. और अब मैं खुद इस जगह को जल्द से जल्द छोड़ना चाहता हूं.
जुलाई 1947 के पहले हफ़्ते में तमाम नेताओं के बीच हुई एक महत्वपूर्ण बैठक के बाद महात्मा गांधी ने अपनी प्रार्थना सभा में मशूहर अंग्रेजी लेखक George Bernard Shaw की एक बात का ज़िक्र किया. Bernard Shaw कहते थे कि एक अंग्रेज़ कभी ग़लत नहीं होता, वो सब कुछ सिद्धांतों के मुताबिक करता है. वो देशभक्ति के सिद्धांतों की आड़ में आपसे लड़ता है. व्यापार के सिद्धांतों के सहारे आपको लूटता है. उपनिवेशवाद के सिद्धांत के दम पर आपको ग़ुलाम बनाता है. वफ़ादारी के सिद्धांत के ज़रिए राजा की सेवा करता है और लोकतंत्र के सिद्धांत का सहारा लेकर अपने ही राजा का सिर भी कलम कर देता है. इसके बाद गांधी जी ने कहा कि अंग्रेज़ों को भारत छोड़ना ही होगा.लेकिन मैं समझना चाहता हूं कि इसके लिए वो कौन से सिद्धांत का सहारा लेंगे.
12 जुलाई 1947 को नागपुर में जस्टिस TL शियोडे ने गांधी टोपी पहनकर शपथ ली. तब उनसे एक ब्रिटिश जज ने पूछा कि क्या वो गांधी टोपी पहनकर ही रात में सोते हैं ? तो इस पर जस्टिस शियोडे ने जवाब दिया कि जी बिल्कुल वैसे ही जैसे आप अपने सिर पर Hat पहनकर सोते हैं. इसके अगले दिन मोहम्मद अली जिन्ना ने दोपहर के समय एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उनसे एक पत्रकार ने पूछा कि क्या आप बता सकते हैं कि आप पाकिस्तान को एक आधुनिक लोकतांत्रिक देश कैसे बनाएंगे? जवाब में जिन्ना ने कहा कि मैंने ऐसा कब कहा?.मैंने ऐसा कभी नहीं कहा. यानी उस समय के नेता भी जनता को सिर्फ़ झूठ बेच रहे थे ।
15 अगस्त यानी बंटवारे के दिन रिटायर होना
जब बंटवारे का समय करीब आया.तब Indian Civil Services के 470 अधिकारियों से पूछा गया कि वो क्या चाहते हैं. इनमें से 400 ने कहा कि वो 15 अगस्त यानी बंटवारे के दिन रिटायर होना पसंद करेंगे. जबकि 40 ने भारत में रहने और 30 अधिकारियों ने पाकिस्तान जाने की बात कही.
उस समय की ब्रिटिश सरकार चाहती थी कि भारत और पाकिस्तान दोनों के झंडे में ब्रिटेन के झंडे यानी Union Jack को भी शामिल किया जाए. लेकिन जवाहर लाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना ने इस मांग को ख़ारिज कर दिया. इसके बाद 14 अगस्त को लखनऊ रेसिडेंसी के ऊपर लहराते ब्रिटेन के झंडे को उतारकर London भेज दिया गया. ब्रिटेन का ये झंडा 1857 से यहां लगातार लहरा रहा था. लेकिन लंबे संघर्ष के बाद...अंग्रेज़ों के साथ साथ अंग्रेज़ों का झंडा भी भारत से चला गया.
उस समय लखनऊ में स्वंतंत्रता दिवस से संबंधित कार्यक्रम आयोजित करने के लिए 2 लाख रुपये जारी किए गए थे. और बॉम्बे में वकीलों के एक चैंबर से एक नेम प्लेट हटा दी गई. जिस पर लिखा था..M A Jinnah - Bar At Law. ये मोहम्मद अली जिन्ना की Name Plate थी....जो एक वकील भी थे.
ये तो आप सब जानते हैं कि भारत को आज़ादी आधी रात को मिली थी. लेकिन इसके पीछे का कारण भी कम दिलचस्प नहीं है. ब्रिटेन भेजे गए लॉर्ड माउंटबेटेन के एक टेलीग्राम से पता चलता है कि आधी रात में आजादी की सलाह भारत के ज्योतिषियों ने दी थी , क्योंकि उनके मुताबिक ये एक शुभ मुहूर्त था.
पाकिस्तान में सेना की भूमिका के बारे में पूछे जाने पर नाराज हो गए थे जिन्ना
इसी दौरान जब किसी व्यक्ति ने मोहम्मद अली जिन्ना से ये पूछा कि पाकिस्तान में सेना की क्या भूमिका होगी तो जिन्ना बहुत नाराज़ हो गए. उन्होंने उस व्यक्ति को ऊपर से नीचे तक घूरा और कहा कि पाकिस्तान में सिर्फ़ नागरिकों की सरकार होगी और जो भी इससे अलग राय रखता है उसे पाकिस्तान आने का कोई हक़ नहीं है. लेकिन जिन्ना के ये दावे भी उनके बाकी दावों की तरह झूठ साबित हुए और पाकिस्तान में 33 वर्षों तक सेना ने ही शासन किया.
इस बीच अगस्त के पहले हफ़्ते तक अकेले दिल्ली में ही शरणार्थियों की संख्या 80 हज़ार तक पहुंच गई. भोजन की कमी होने लगी और स्कूलों को दो शिफ्ट में चलाया जाने लगा ताकि पढ़ाई पर कोई असर ना पड़े. इसी दौरान ये भी तय हुआ कि दिल्ली के 7 पृथ्वी राज रोड पर प्रधानमंत्री का आधिकारिक निवास होगा. हालांकि बाद में 7 रेस कोर्स को भारत के प्रधानमंत्री का आधिकारिक निवास बनाया गया जिसका नाम अब बदलकर 7 लोक कल्याण मार्ग कर दिया गया है.
अब आपको दो और दिलचस्प किस्से बताते हैं. पहला किस्सा BCCI से जुड़ा हुआ है. Board of Control for Cricket in India यानी BCCI की स्थापना 1928 में हुई थी और क्रिकेट शुरू से ही भारत में बहुत लोकप्रिय था. लेकिन जब बात बंटवारे की आई तो BCCI के तत्कालीन चेयरमैन एंथनी डी मेलो ने राय दी कि बंटवारे से टीम नहीं बंटनी चाहिए .क्योंकि इससे खेल और खेल की भावना पर बुरा असर पड़ेगा यानी तब भी BCCI के लिए क्रिकेट से बढ़कर कुछ नहीं था.
जब भारत के बड़े-बड़े नेता बंटवारे की रूप रेखा तय कर रहे थे. तब उसके लिए होने वाली बैठकों में नेता कई बार इस कदर बोर हो जाते थे कि वो पन्नों पर आड़ी तिरछी Drawing बनाना शुरू कर देते थे.इस तरह की Drawings को Doodle कहा जाता है. ये ठीक वैसा ही है जब स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे अपने टीचर्स की बातों से बोर हो जाते हैं तो अपनी कॉपी पर कागज़ या पैंसिल से आकृतियां बनाने लगते हैं.
आज के दिन को पाकिस्तान अपनी आज़ादी के दिन के रूप में मनाता है लेकिन हैरानी की बात ये है कि पाकिस्तान तो कभी गुलाम था ही नहीं. गुलाम तो अविभाजित भारत था.फिर पाकिस्तान को किससे आज़ादी मिली? सही मायने में तो पाकिस्तान भारत से अलग होकर एक नया देश बना. लेकिन आज हम इस बहस में नहीं पड़ना चाहते और आपको पाकिस्तान के जन्म से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताना चाहते हैं।
पाकिस्तान अपने स्वतंत्रता दिवस को लेकर भ्रमित
आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि पाकिस्तान, दुनिया का एक ऐसा देश है जो आज भी अपने जन्म की तारीख़ को लेकर Confused है. यानी पाकिस्तान अपने स्वतंत्रता दिवस को लेकर भ्रमित है. पाकिस्तान के विद्वान इस पर किताबें लिखते हैं. वहां के समाचार पत्रों में ये सवाल उठाते हुए कई आर्टिकल लिखे जाते हैं कि पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस, 14 अगस्त को होना चाहिए या 15 अगस्त को होना चाहिए? ज़रा सोचिए.. कि वो देश कैसा होगा ? और उस देश की स्थापना करने वाले लोग कितने अज्ञानी होंगे. जिन्हें ये भी नहीं पता कि उनका स्वतंत्रता दिवस कब होता है?
'Radio पाकिस्तान' पर हर वर्ष मोहम्मद अली जिन्ना की आवाज़ में पहला बधाई संदेश सुनाया जाता है.... जिसमें कहा जाता है कि '15 अगस्त की आज़ाद सुबह पूरे राष्ट्र को मुबारक़ हो'... लेकिन मुहम्मद अली जिन्ना की ये बधाई हर वर्ष 15 के बजाए 14 अगस्त को सुनवाई जाती है. यहां ये भी समझना होगा कि पाकिस्तान आख़िर कौन सी स्वतंत्रता और आज़ादी का उत्सव मना रहा है? सच तो ये है कि आज़ादी की लड़ाई में पाकिस्तान की मांग करने वाली पार्टी मुस्लिम लीग का कोई योगदान नहीं था.
मुस्लिम लीग, सर सैयद अहमद खां की Two Nation Theory का समर्थन करती थी. सर सैयद ने कहा था कि मुसलमानों को अंग्रेज़ों का साथ देना चाहिए क्योंकि अगर अंग्रेज़ चले गए तो लोकतंत्र में बहुसंख्यक हिंदू, मुसलमानों को दबा देंगे. वर्ष 1906 में ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई थी. और उसके बाद से लगातार मुस्लिम लीग, अंग्रेज़ों के कदमों में सिर झुकाती ((सज़दा)) रही. मोहम्मद अली जिन्ना के सिर पर अंग्रेज़ों का हाथ था. अंग्रेज़ों की मदद से मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान का निर्माण किया. ये कितना क्रूर मज़ाक है कि आज पाकिस्तान अंग्रेज़ों से ही आज़ादी हासिल करने का जश्न मनाता है. सच ये है कि हर साल 14 अगस्त को पाकिस्तान के लोगों को भ्रमित किया जाता है.
पाकिस्तान के विद्वान K.K. Aziz ने पाकिस्तान के इतिहास की समस्याओं पर एक किताब भी लिखी है जिसका नाम है... Murder of History । इस किताब के पेज नंबर 180 पर उन्होंने लिखा है -"14 अगस्त को पाकिस्तान आज़ाद हो गया, ये बात सही नहीं है. The Indian Independence Bill..4 जुलाई 1947 को ब्रिटेन की संसद में पेश किया गया था और 15 जुलाई को कानून बन गया था. इसी के तहत 14 और 15 अगस्त की मध्यरात्रि को भारत और पाकिस्तान को आज़ाद किया जाना था । दोनों देशों को Viceroy के द्वारा ही निजी तौर पर Power Transfer किया जाना था। Lord Mountbatten एक ही समय पर कराची और नई दिल्ली में मौजूद नहीं रह सकते थे. ये भी संभव नहीं था कि 15 अगस्त की सुबह वो भारत में रहें और फिर कराची पहुंच जाएं क्योंकि भारत को आज़ादी मिलने के बाद वो भारत के पहले गवर्नर जनरल बन जाते. इसलिए पाकिस्तान को 14 अगस्त 1947 को ही सत्ता सौंपना ठीक था, जब वो भारत के Viceroy थे. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि पाकिस्तान को अपनी आज़ादी 14 अगस्त को मिली क्योंकि The Indian Independence Act इसकी मंज़ूरी नहीं देता"
पाकिस्तान के धर्मसंकट का विश्लेषण
ये कितना बड़ा विरोधाभास है कि पाकिस्तान का निर्माण Viceroy Lord Mountbatten की मौजूदगी में 14 अगस्त 1947 को हुआ. लेकिन The Indian Independence Act के मुताबिक उसका निर्माण 15 अगस्त 1947 को हुआ था. K.K. Aziz पाकिस्तान के बड़े इतिहासकार हैं जिन्होंने आज़ादी पर पाकिस्तान के धर्मसंकट का विश्लेषण अपनी किताब में किया. पाकिस्तान के बड़े-बड़े विद्वान ही नहीं, समाचार पत्र और लेखक भी इसे लेकर भ्रमित हैं कि पाकिस्तान को आज़ादी कब मिली? इस संबंध में हमने पाकिस्तान के अख़बार Dawn का एक Article भी पढ़ा, इसमें लिखा है कि "14 अगस्त 1947 को एक स्वतंत्र मुस्लिम राज्य के रूप में पाकिस्तान का निर्माण हुआ. लाहौर, कराची और पेशावर रेडियो स्टेशन्स में कुरान पढ़ी गई.. और फिर रात 12 बजे के बाद आज़ादी की घोषणा हुई. पाकिस्तान की जनता के नाम मोहम्मद अली जिन्ना का बधाई संदेश On Air किया गया. ये पाकिस्तान बनने के बाद स्वतंत्रता पर जिन्ना की पहली Radio Speech थी. Radio पाकिस्तान के पूर्व उप निदेशक अंसार नासरी ने इस भाषण का उर्दू में अनुवाद किया था. भाषण को ये कहकर प्रसारित किया गया कि 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान का निर्माण होने के तुरंत बाद कायदे-आज़म ने देश से बात की.''
इसी Article में आगे लिखा है कि Radio पाकिस्तान के पूर्व उप निदेशक अंसार नासरी ने इस नियम को ध्यान में नहीं रखा कि रात 12 बजे के बाद अगली तारीख़ आ जाती है. इसलिए ग़लती से उन्होंने अपने अनुवाद में 15 अगस्त के बजाय 14 अगस्त कहा पाकिस्तान का निर्माण मुस्लिम लीग और मोहम्मद अली जिन्ना के अहंकार का नतीज़ा है । शायद इसीलिए पाकिस्तान के कुछ लोगों ने ये सोचा कि भारत से एक दिन पहले ही, अपना स्वतंत्रता दिवस मनाकर, वो भारत से आगे निकल जाएंगे. लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ, क्योंकि अहंकार की कलम से इतिहास नहीं लिखा जा सकता है. 14 अगस्त, पाकिस्तान के अहंकार का दिवस है. पाकिस्तान अगर चाहे तो इस तारीख़ को आज भी बदलकर 15 अगस्त कर सकता है। लेकिन हमें मालूम है.. वो ऐसा कभी नहीं करेगा.