नई दिल्ली: अब कोविड के Come Back से सावधान हो जाइए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कोरोना वायरस के बढ़ रहे मामलों पर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ चर्चा की. आपको याद होगा एक साल पहले मार्च के महीने में ही कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने के लिए देशभर में लॉकडाउन लगाया गया था.


अचानक क्यों बढ़ने लगे कोरोना के मामले


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इसके ठीक एक साल बाद प्रधानमंत्री को फिर से इस पर चर्चा करने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि कोरोना संक्रमण के मामले कंट्रोल में आते-आते एक बार फिर से अचानक बढ़ने लगे हैं. कोरोना को कंट्रोल करने के लिए क्या कदम उठाए जाएं, इस पर प्रधानमंत्री ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से सुझाव मांगे हैं और साथ ही उन्होंने वैक्सीन को बर्बाद होने से बचाने की सलाह भी दी. भारत में अब तक कुल वैक्सीन की 6 प्रतिशत डोज Waste हो चुकी हैं.


बीते 25 दिनों में कोरोना वायरस के मामलों ने तेजी से रफ्तार पकड़ी है. 1 मार्च को पंजाब में कोरोना के औसतन 531 मामले रिपोर्ट हो रहे थे, जो 15 दिन बाद 1338 हो गए. इसी तरह चंडीगढ़ में 49 मामलों से बढ़कर 111 केस प्रतिदिन, छत्तीसगढ़ में 230 से 430, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों में कोरोना के मामलों ने दोगुनी रफ्तार पकड़ ली है.


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इन चार राज्यों में तेजी से बढ़ा कोरोना संक्रमण


अगर पिछले एक दिन की बात करें तो देश में कोरोना संक्रमण के 28 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं और इन मामलों में से 70 प्रतिशत भारत के चार राज्यों महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक और गुजरात से सामने आए हैं.


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इससे पहले भारत में सितंबर 2020 को एक दिन में कोरोना संक्रमण के 97 हजार से ज्यादा मामले सामने आए थे और एक दिन में ये अब तक के सबसे ज्यादा मामलों का रिकॉर्ड है.


इसके बाद इस साल 9 फरवरी को कोरोना संक्रमण के 9 हजार मामले सामने आए थे. ये इस साल एक दिन में आए सबसे कम मामले हैं. लेकिन इसके बाद फिर से मामले तेजी से बढ़े. 16 फरवरी को 11 हजार से ज्यादा नए केस आए और आज कोरोना के 28 हजार मामले सामने आए हैं.


कोरोना के कम बैक से परेशान हैं ये देश


दुनियाभर में कोरोना संक्रमितों की संख्या 12 करोड़ से ज्यादा पहुंच चुकी है और 26 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें अमेरिका पहले नंबर पर है. दूसरे नंबर पर ब्राजील और भारत तीसरे नंबर पर है. भारत के अलावा कई और बड़े देश कोविड के Come Back से चिंता में हैं. अमेरिका में पिछले 24 घंटे में 53 हजार से ज्यादा मामले सामने आए हैं. ब्राजील में 84 हजार और फ्रांस में तकरीबन 30 हजार मामले दर्ज हुए हैं.


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इस एक साल में हम सबने बहुत कुछ सीखा, लेकिन लगता है कि बहुत जल्दी हम सारे सबक भूल गए हैं. आज लोग मास्क लगाने की आदत छोड़ चुके हैं. एक साल पहले हम सबने सैनेटाइजर का इस्तेमाल सीख लिया था लेकिन आज आप में से बहुत लोगों को घर से निकलते वक्त अपने साथ सैनेटाइजर रखना याद नहीं रहता. दो गज की दूरी बनाकर रखने के नियम का भी लोग पालन नहीं कर रहे हैं.


इसी का नतीजा है कि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों के कई शहरों में एक बार फिर लॉकडाउन लग गया है. भारत में इस साल 16 जनवरी से कोरोना वैक्सीन लगाने की शुरुआत हुई और इसके बाद से लोगों को ये लगने लगा कि अब तो वैक्सीन आ गई है, अब मास्क की जरूरत नहीं है. जबकि अभी तक देश में केवल 61 लाख लोगों को ही वैक्सीन की दोनो डोज लगी है. लेकिन पूरे देश से मास्क और सोशल डिस्टेसिंग ऐसे गायब हैं, जैसे कोरोना भारत छोड़ चुका हो.


ताइवान मॉडल से सीखने की जरूरत


हम चाहें तो ताइवान जैसे छोटे से देश से बहुत कुछ सीख सकते हैं. ताइवान में जनवरी 2020 में कोरोना संक्रमण का पहला मामला सामने आया था. वहां कुल मरीजों की संख्या 990 है और सक्रिय मरीजों की संख्या इस वक्त केवल 26 है. अब तक कुल 10 लोगों की मौत हुई है. इस देश की आबादी 2 करोड़ 40 लाख है. देश की राजधानी दिल्ली की आबादी भी 3 करोड़ है. लेकिन यहां कोरोना के एक्टिव मरीजों की संख्या इस वक्त ढाई हजार है और लगभग 11 हजार लोगों की मौत हो चुकी है.


ताइवान में अगले दो-तीन महीनों के लिए सभी रेस्टोरेंट बुक हो चुके हैं. ताइवान में काम करने वाले गोल्ड कार्ड (Gold Card) की मदद से यहां आ-जा सकते हैं. गोल्ड कार्ड एक तरह का पासपोर्ट (Passport) है, जो काम करने वालों को मिलता है. सरकार ने 2020 में 800 Gold Cards जारी किए थे जबकि 2021 में मार्च तक 1,600 Gold Cards जारी किए गए. यहां की Economy 5 फीसदी की दर से बढ़ रही है. बिजनेस के अलावा ताइवान अंतरराष्ट्रीय यात्राओं, एयरलाइंस, होटल और टूर कंपनियों से भी खूब पैसा कमा रहा है.


ताइवान को ये कामयाबी वहां के लोगों के अनुशासन से मिली है. देश में हर जगह अभी भी तापमान चेक किया जाता है और लोग बिना Hand Sanitizer और Mask के बाहर नहीं निकलते हैं. जबकि हमारे देश में लोग कोरोना संक्रमण के बुरे दिनों को भूल चुके हैं.


भारत प्रतिदिन कोरोना वैक्सीन डोज लगाने के मामले में इस वक्त अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर है. हमें ऐसी लापरवाहियां नहीं बरतनी चाहिए जिससे वैक्सीनेशन से मिलने वाले फायदे बेकार साबित हो जाएं. भारत में इस वक्त कोरोना की दो वैक्सीन इस्तेमाल की जा रही हैं. कोवैक्सीन और कोविशील्ड.


हाल ही में कुछ देशों ने Oxford Astrazeneca की वैक्सीन के इस्तेमाल पर रोक लगाई. ये वैक्सीन भारत में भी लगाई जा रही है और 90 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को भारत में यही वैक्सीन लगी है. भारत में इस वैक्सीन का नाम कोविशील्ड है. आपके मन में भी कोविशील्ड वैक्सीन को लेकर कुछ सवाल होंगे कि क्या ये आपको लगवानी चाहिए या नहीं और इस वैक्सीन को लेकर विवाद क्या है?


Oxford Astrazeneca की वैक्सीन के गंभीर Side Effects सामने आने के बाद अब तक 18 यूरोपीय देशों समेत कुल 21 देशों ने इस वैक्सीन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. इन देशों में जर्मनी, फ्रांस, इटली, डेनमार्क और स्पेन जैसे देश शामिल हैं. इन देशों की शिकायत है कि इस वैक्सीन को लगाने के बाद कुछ लोगों के शरीर मे Blood Clots बन रहे हैं. 11 मार्च को डेनमार्क पहला देश था जिसने Oxford Astrazeneca की वैक्सीन पर रोक लगाई थी.


हालांकि European Medicines Agency ने इस वैक्सीन को सुरक्षित पाया है. ये संस्था दवाओं को लेकर यूरोपीय देशों की Regulatory Authority है. इस संस्था के मुताबिक, वैक्सीन से Blood Clots के सबूत नहीं मिले हैं. इस बारे में आखिरी फैसला वो गुरुवार को लेंगे.


इस विवाद पर Astrazeneca कंपनी का कहना है कि यूरोपीय देशों और ब्रिटेन में कुल 1 करोड़ 70 लाख लोगों को अब तक वैक्सीन लगाई जा चुकी हैं. 8 मार्च तक उसके पास आए डेटा के अनुसार, इन दोनों देशों से साइड इफेक्टस के कुल 37 मामले दर्ज हुए हैं जो कि बेहद कम हैं. भारत में भी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड की ही वैक्सीन बना रहा है. भारत में इस वैक्सीन का नाम कोविशील्ड है.


भारत में अब तक साढ़े तीन करोड़ वैक्सीन की डोज लग चुकी हैं. जिसमें से 3 करोड़ से ज्यादा डोज कोविशील्ड की लगी हैं और तकरीबन 28 लाख डोज कोवैक्सीन की. यानी 92 प्रतिशत डोज कोविशील्ड की लगाई गई हैं और लगभग 8 प्रतिशत डोज कोवैक्सीन की.


अच्छी बात ये है कि भारत में वैक्सीनेशन से होने वाले कुल साइड इफेक्ट्स केवल 234 हैं यानी 0.02 प्रतिशत. भारत में वैक्सीनेशन की वजह से एक भी मौत रिपोर्ट नहीं हुई है. हालांकि वैक्सीन लगवाने के बाद 71 लोगों की मौत हुई लेकिन सरकार के मुताबिक ये मौत वैक्सीनेशन की वजह से नहीं हुई है.


भारत में वैक्सीनेशन की बड़ी जिम्मेदारी मोटे तौर पर सरकारी अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र संभाल रहे हैं. ये वो व्यवस्था है जिस पर भारतीय आमतौर पर बहुत कम भरोसा करते हैं. भारत में इस समय कुल 32 हजार से ज्यादा सेंटर पर वैक्सीनेशन हो रहा है. जिसमें 27 हजार के करीब सरकारी हैं और 5 हजार से ज्यादा प्राइवेट केंद्र हैं.


80 प्रतिशत से ज्यादा वैक्सीनेशन सरकारी केंद्रों पर हो रहा है और 16 प्रतिशत वैक्सीनेशन प्राइवेट केंद्रों पर हो रहा है. ये वही सरकारी अस्पताल हैं जहां लोग इलाज ना मिलने और घंटों इंतजार करने की शिकायत करते हैं. भारत में लोग हेल्थ केयर के लिए प्राइवेट सिस्टम पर ही निर्भर रहते हैं.


भारत में स्वास्थ्य पर होने वाले कुल खर्च का 71 प्रतिशत प्राइवेट हेल्थ केयर में खर्च हो जाता है. लेकिन इस वक्त तस्वीर उलट है. प्राइवेट अस्पतालों में लंबी लाइनें लगी हुई हैं, जबकि कई सरकारी केंद्रो में वैक्सीन लगाने का काम चंद मिनटों में हो रहा है. स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 25 हजार से ज्यादा अस्पताल हैं. जबकि देश में कुल प्राइवेट अस्पतालों की संख्या 43 हजार से ज्यादा हैं.


दिल्ली में 107 साल के बुजुर्ग वैक्सीन लगवाने पहुंचे तो जम्मू के छोटे से गांव में 100 साल के मोहम्मद हुसैन ने वैक्सीन लगवाई. वैसे तो कोरोना से बचाने वाली वैक्सीन की प्रेरणा देने वाले पोस्टर, कॉलरट्यून और मैसेज बहुत हैं लेकिन लिए जो बुजुर्ग वैक्सीन लगवाकर जा रहे हैं, वो असली संदेशवाहक बने हैं और अपने अनुभव से दूसरों को प्रेरित कर रहे हैं.


गुजरात और राजस्थान के आदिवासी इलाकों में भी कोरोना से बचाने वाला टीका लगाया जा रहा है. कहीं रफ्तार सुस्त है तो कहीं लाइनें लगी हैं. लेकिन पूरा देश दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान में लगा हुआ है. फ्रंटलाइन में आपको डॉक्टर और नर्स नजर आते हैं लेकिन वैक्सीनेशन की जिम्मेदारी उठाने वालों में पुलिसकर्मी, सरकारी अधिकारी और आम लोग भी शामिल हैं.


जानिए नोएडा के सरकारी अस्पताल की प्रमुख डॉक्टर रेनू अग्रवाल कैसे अपना काम करती हैं. इनका दिन अब सुबह कोविन पोर्टल की तकनीकी बारीकियां सुलझाने से शुरु होता है. डॉक्टर रेनू अग्रवाल बताया कि सुबह 7 बजे फोन करती हूं कि पोर्टल खोलो. अस्पताल में काम करने वाली एक नर्स दिनभर में अकेली 200 डोज लगा लेती है. हाथों में दर्द हो जाता है लेकिन ये अब खुद को योद्धा ही मानती हैं. हमें लगता है हम सीमा पर युद्ध लड़ने जा रहे हैं.


लोगों को वैक्सीन सेंटर तक लाने के लिए गांव-गांव जाकर काउंसलिंग की जा रही है. आशा वर्कर और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता लोगों को समझा रहे हैं कि आएं, टीका लगवाएं. ये काम आसान नहीं है. लोग तरह-तरह के सवाल करते हैं लेकिन इंजेक्शन लगने के बाद आशीर्वाद भी देकर जाते हैं. आशा वर्कर के लिए ये अनोखा अनुभव है.


यूपी पुलिस की ड्यूटी में लगी महिला पुलिसकर्मी भी वैक्सीनेशन की ड्यूटी में जुटी हैं. इससे पहले झगड़े फसाद सुलझाने का काम होता था. यहां बुजुर्गों को समझाने का काम है. ड्यूटी के घंटे थोड़े बढ़ गए हैं लेकिन घर जाकर बच्चे वैक्सीनेशन के अनुभव की कहानियां पूछते हैं तो इन्हें भी अच्छा लगता है.


वैक्सीन लगवाने से पहले सवालों का और वैक्सीन लगवाने के बाद सेल्फी का दौर चलता है. दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीनेशन अभियान ने कई लोगों के मन में सरकारी अस्पतालों की छवि बदल दी है.


हालांकि ऐसा नहीं है कि दिक्कतें खत्म हो गई हैं. मेरठ के हस्तिनापुर गांव में अल्पसंख्यकों के मोहल्ले में वैक्सीनेशन करवाने लोग नहीं आ रहे थे तो डॉक्टरों को लोगों को घर जाकर समझाना पड़ा कि वैक्सीनेशन से डरने की जरूरत नहीं है. गौतम बुद्ध नगर के बिसरख के सेंटर में बिजली चली गई है लेकिन टीकाकरण चालू रहा.


भारत में इसी साल 16 जनवरी को हेल्थ केयर वर्कर को वैक्सीन लगाने से कोरोना के खिलाफ निर्णायक जंग शुरू हुई थी. 1 मार्च से 45 साल से ज्यादा के बीमार और 60 साल से ज्यादा के सभी लोगों को वैक्सीन लगनी शुरू हुई. पिछले 15 दिन में 60 साल से ऊपर के 1 करोड़ से ज्यादा लोग वैक्सीन लगवा चुके हैं.


भारत में इस वक्त दो वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सीन लगाई जा रही हैं. दोनों ही सुरक्षित हैं. जल्द ही भारत में सभी लोगों के लिए वैक्सीनेशन की शुरुआत हो सकती है. हालांकि सरकार का लक्ष्य जुलाई तक ऐसे 30 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाने का है जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है. 15 मार्च को 30 लाख से ज्यादा वैक्सीन एक दिन में लगा लेने के बाद अब ये लक्ष्य ज्यादा दूर नहीं लगता है.