नई दिल्ली: आज हम आपको जिंदगी के टेनिस कोर्ट के बारे में बताना चाहते हैं, जिसमें नेट के एक तरफ आप होते हैं और दूसरी तरफ वो चुनौतियां होती हैं, जिन्हें आप किसी भी कीमत पर हराना चाहते हैं. हालांकि गैलरी में बैठे लोगों में से कुछ आपको जीतते हुए देखना चाहते हैं, तो कुछ इस इंतजार में होते हैं कि आप कब हार जाएंगे और यही जिंदगी है. चार बार की ग्रैंड स्लैम चैम्पियन नाओमी ओसाका ने टेनिस कोर्ट में रहते हुए इन बातों का अनुभव किया है और आज हम उन्हीं की कहानी आपसे शेयर करना चाहते हैं.


फ्रेंच ओपन में खेलने से किया मना


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जापान की मशहूर टेनिस प्लेयर नाओमी ओसाका ने अपने मानसिक स्वास्थ्य की वजह से फ्रेंच ओपन में खेलने से मना कर दिया है. उन्होंने ये निर्णय तब लिया है, जब वो इसके लिए पेरिस पहुंच चुकी थीं और एक प्रैक्टिस मैच भी उन्हें खेला था और इस मैच में वो जीती थीं. लेकिन फिर अचानक सब कुछ बदल गया और नाओमी ओसाका फ्रेंस ओपन से हट गईं.


सोचिए एक ऐसी टेनिस प्लेयर, जो अद्भुत प्रतिभा की धनी है,अपने जीवन में सफल है, टेनिस में चार बार ग्रैंड स्लैम चैम्पियन रह चुकी है, जिसके पास धन दौलत की भी कोई कमी नहीं है और जो लोगों के लिए प्रेरणस्रोत है, वो खिलाड़ी आज सबकुछ होते हुए भी डिप्रेशन और अपने खराब मानसिक स्वास्थ्य से संघर्ष कर रही है. सोचिए कई बार इंसान कैसे सबकुछ होते हुए भी बेबस हो जाता है.


मन से क्यों टूट गईं नाओमी ओसाका?


सबसे बड़ी बात ये है कि नाओमी ओसाका शरीर से फिट हैं. वो एक खिलाड़ी हैं, लेकिन शरीर से फिट होते हुए भी उनका मन टूटा हुआ है और आज हम आपको इसी टूटे हुए मन के बारे में बताना चाहते हैं क्योंकि, आप शरीर पर आई चोटों का तो इलाज करा सकते हैं, लेकिन मन पर आई चोटों का आप इलाज नहीं करा सकते हैं. दुनिया में न तो इसका उपचार कोई डॉक्टर कर सकता है और न ही इसकी कोई दवाई है. इस मन को केवल आप ही सम्भाल सकते हैं और उसका ध्यान रख सकते हैं.


लेकिन नाओमी ओसाका ऐसा नहीं कर पाईं. नाओमी ओसाका फ्रेंच ओपन में हिस्सा लेने के लिए पेरिस पहुंच चुकी थीं. उन्होंने एक प्रैक्टिस मैच भी खेला था और इस प्रैक्टिस मैच के बाद उन्हें एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होना था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और वो ये फैसले पहले ही ले चुकी थीं और इसके पीछे अपने मानसिक स्वास्थ्य को बड़ी वजह बताया था. हालांकि आयोजकों को उनका ये व्यवहार पसंद नहीं आया और उन पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में नहीं आने के लिए 20 हजार डॉलर यानी लगभग 15 लाख रुपये का जुर्माना लगाया.


डिप्रेशन से संघर्ष 


नाओमी पहले ही अपने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चिंतित थीं और डिप्रेशन में थीं. इस खबर ने उन्हें और तोड़ दिया. आयोजकों ने उन्हें चेतावनी दी कि अगर उन्होंने फिर से प्रेस कॉन्फ्रेंस का बहिष्कार किया तो उन्हें टूर्नामेंट से बाहर कर दिया जाएगा, लेकिन आयोजकों की चेतावनी के बाद ही नाओमी ने फ्रेंच ओपन को छोड़ने का मन बना लिया और उन्होंने इस पर एक बयान भी जारी किया.


उन्होंने कहा कि बाकी खिलाड़ियों और मेरी भलाई इसी में है कि मैं टूर्नामेंट से हट जाऊं. ताकि सभी अपने गेम पर ध्यान दे सकें. उन्होंने कहा कि सच्चाई ये है कि वो वर्ष 2018 से यूएस ओपन के बाद से ही अवसाद का सामना कर रही हैं और इससे उबरने में उन्हें काफी परेशानियां आई हैं. उन्होंने कहा कि वो पेरिस आने से पहले ही चिंतित और असुरक्षित महसूस कर रही थीं. यही नहीं, उन्होंने बताया कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में नहीं शामिल होने का फैसले उन्होंने इसलिए लिया क्योंकि, उन्होंने कहा कि वो जब भी सबके सामने बोलती हैं, तो उससे उन्हें घबराहट होने लगती है.


आज यहां एक प्रश्न ये भी उठता है कि एक खिलाड़ी के लिए खेलना और अपना सर्वेश्रेष्ठ देना आवश्यक है या प्रेस कॉन्फ्रेंस जरूरी है?


नाओमी ओसाका पिछले 3 वर्षों से डिप्रेशन से संघर्ष कर रही हैं और इससे पता चलता है कि व्यक्ति अपने जीवन में सफलता के किसी भी पायदान पर पहुंच जाए लेकिन सफलता कभी भी मन पर मरहम लगाने का काम नहीं कर पाती. टूटा हुआ मन केवल आत्मविश्वास के गोंद से ही जोड़ जा सकता है और नाओमी ओसाका इसकी कोशिश कर रही हैं.


ये खिलाड़ी भी हुए डिप्रेशन का शिकार


नाओमी ओसाका अकेली ऐसी खिलाड़ी नहीं है, जिन्हें सफलता के बाद इस तरह का संघर्ष देखना पड़ा.


वर्ष 2017 में कॉमन मेंटल डिसऑर्डर्स द्वारा यूरोप के 384 फुटबॉलर्स पर एक अध्ययन किया गया था, जिनमें से 37 प्रतिशत फुटबॉलर्स में एंजाइटी और डिप्रेशन के लक्षण मिले थे. यानी सफलता अपने साथ अवसाद और तनाव भी लेकर आती है. इसे आप एक और उदाहरण से समझ सकते हैं.


अमेरिका के मशहूर एथलीट और स्वीमर माइकल फेलप्स दुनिया के इकलौते ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने ओलम्पिक्स में अब तक सबसे ज्यादा 28 मेडल जीते हैं, जिनमें 23 गोल्ड मेडल हैं, तीन सिल्वर मेडल हैं और दो ब्रॉन्ज मेडल हैं, लेकिन ये मेडल भी उनके मन को स्वस्थ नहीं रख पाए. माइकल फेलप्स भी डिप्रेशन और अवसाद के दौर से गुजर चुके हैं.



उन्होंने एक बार कहा था कि वो हर बार ओलम्पिक्स के बाद डिप्रेशन में चले जाते हैं और वो इस डिप्रेशन में सुसाइड करने की कोशिश कर चुके हैं.


इंग्लैंड के मशहूर फुटबॉलर डैनी रोज ने भी माना था कि उनके लिए डिप्रेशन से लड़ना बहुत मुश्किल था.


ऑस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेट ग्लेन मैक्सवेल भी डिप्रेशन और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारियों से संघर्ष कर चुके हैं. अक्टूबर 2019 में जब ऑस्ट्रेलिया की टीम श्रीलंका दौरे पर गई थी, तब ग्लेन मैक्सवेल डिप्रेशन की वजह से दौरे को बीच में ही छोड़कर वापस ऑस्ट्रेलिया चले गए थे.


ऑस्ट्रेलिया के ही पूर्व तेज गेंदबाज Shaun Tait भी एंजाइटी और डिप्रेशन का सामना कर चुके हैं और ये सूची बहुत लम्बी है.


शरीर के साथ मन को भी रखें फिट


 


हम आपसे यहां यही कहना चाहते हैं कि आप जिम में जाकर अपने शरीर को तो फिट रख सकते हैं, लेकिन मन को फिट और स्वस्थ रखने के लिए कोई जिम आज तक नहीं बन पाई है. इसे आप कुछ आंकड़ों से भी समझ सकते हैं.


-विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत में 6 करोड़ लोगों को डिप्रेशन और 4 करोड़ लोगों को एंजाइटी डिसऑर्डर है.


-भारत में 37 प्रतिशत आत्महत्याएं रिश्तों की वजह से होती हैं. यानी लोग जिन रिश्तों के लिए जीवन जीते हैं, वही रिश्ते अब लोगों की जान ले रहे हैं. हमें लगता है कि ये एक नष्ट होते समाज की निशानी है क्योंकि, हमारे देश में एक साल में औसतन 1 लाख 35 हज़ार से ज्यादा लोग आत्महत्या कर लेते हैं.


-अगर पूरी दुनिया की बात करें तो मानसिक बीमारियों की वजह से हर साल दुनियाभर में 8 लाख लोग मर जाते हैं और इसे Silent Pandemic भी कहा जाता है. लोगों को ज़्यादातर मानसिक बीमारियां 14 साल की उम्र से ही शुरू हो जाती हैं, जो काफी कम उम्र है.


यानी डिप्रेशन एक ऐसी बीमारी है, जो पहले मन को संक्रमित करती है फिर दिमाग तक पहुंच जाती है और व्यक्ति को इससे कई तरह की परेशानियां होनी लगती हैं. इसीलिए आज आपसे यही कहेंगे कि जितना जरूरी शरीर को स्वस्थ रखना है, उतनी ही जरूरी मन को भी स्वस्थ रखना है और जापान की टेनिस प्लेयर नाओमी ओसाका इसी की कोशिश कर रही हैं और हम उम्मीद करते हैं कि वो जल्द स्वस्थ होंगी और फिर से टेनिस कोर्ट पर लौटेंगी.