DNA ANALYSIS: पत्रकारिता की `मॉब लिंचिंग`, बंगाल में ZEE मीडिया की टीम पर क्यों किया गया हमला?
West Bengal Assembly Election 2021: 1 अप्रैल को जब पश्चिम बंगाल में दूसरे चरण के लिए 30 सीटों पर वोटिंग हो रही थी तो उस समय केशपुर सीट पर चुनाव की कवरेज के दौरान ज़ी मीडिया की टीम पर लोहे की रॉड्स, कटारी, लाठियों और पत्थरों से हमला किया गया.
नई दिल्ली: आज के DNA की शुरुआत हम महान दार्शनिक प्लेटो के एक विचार के साथ करना चाहते हैं, जिसमें उन्होंने कहा था- No One Is More Hated Than He Who Speaks The Truth. इसका हिंदी में अर्थ है- दुनिया सबसे ज्यादा उन्हीं लोगों से नफरत करती है, जो सच बोलते हैं.
मीडिया को डराने की कोशिश
लोकतंत्र के चार स्तंभ होते हैं- न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया और इन चार स्तंभों में से मीडिया सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ होता है क्योंकि, जो तीन स्तंभ हैं, अगर ये कुछ गलत करते हैं तो मीडिया इसके बारे में लोगों को जागरूक करता है. लेकिन अगर मीडिया को ही डरा दिया जाए और कमजोर कर दिया जाए तो समझ लीजिए कि बाकी के तीन स्तंभ भी कमजोर हो जाएंगे.
यानी जब लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की नींव को झूठ के हथौड़े से कमजोर करने की कोशिश की जाती है, तो वही होता है जो 1 अप्रैल को पश्चिम बंगाल में हुआ. 1 अप्रैल को जब पश्चिम बंगाल में दूसरे चरण के लिए 30 सीटों पर वोटिंग हो रही थी तो उस समय केशपुर सीट पर चुनाव की कवरेज के दौरान ज़ी मीडिया की टीम पर लोहे की रॉड्स, कटारी, लाठियों और पत्थरों से हमला किया गया. उस समय हमारी टीम गाड़ी के अंदर थी और अंदर बैठ कर उन्हें ऐसा लग रहा था कि जैसे मौत बाहर खड़ी है और गाड़ी का दरवाजा खटखटा रही है.
ममता बनर्जी चुप क्यों?
हमारी टीम पर ये जानलेवा हमला नंदीग्राम से सिर्फ 100 किलोमीटर की दूरी पर हुआ, जहां खुद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मौजूद थीं. लेकिन 24 घंटे बीत जाने के बाद भी उन्होंने अब तक इस हमले की निंदा नहीं की. सोचिए, जो ममता बनर्जी खुद पर हुए कथित हमले को लोकतंत्र पर हमला बताती हैं, जो प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर बड़े-बड़े ट्वीट करती हैं. उन्होंने इस हमले को लेकर कुछ नहीं कहा और इसी से आप हमारे देश की राजनीति का असली चरित्र समझ सकते हैं.
सच्ची पत्रकारिता की आवाज को दबाने वाली मॉब लिंचिंग
आज हम आपसे कहना चाहते हैं कि सच दिखाना बिल्कुल भी आसान नहीं होता. सच्ची पत्रकारिता के लिए जान का भी जोखिम उठाना पड़ता है और हम ऐसा करते हुए कभी पीछे नहीं हटते. 1 अप्रैल को जब हमारी टीम पर हमला हुआ तब भी हम वहां डटे रहे और किसी भी कीमत पर सच को आपके सामने लेकर आए और आज जब आप इस पूरे हमले की तस्वीरें देखेंगे तो आप भी डर जाएंगे. इन तस्वीरों को देख कर आप यही कहेंगे कि ये सच्ची पत्रकारिता की आवाज को दबाने वाली मॉब लिंचिंग है.
1 अप्रैल को हुए इस हमले के दौरान और क्या क्या हुआ. आज हम आपको ये भी बताना चाहते हैं-
-असल में 1 अप्रैल को जब हमारे बांग्ला चैनल Zee 24 Ghanta की एक टीम केशपुर में थी, तब हमें खबर मिली कि वहां एक पोलिंग बूथ पर बूथ कैप्चरिंग की कोशिश हुई है. इस खबर के मिलने के बाद ज़ी मीडिया की रिपोर्टर मैत्रेयी भट्टाचार्य, दूसरे सहयोगियों के साथ सीधे उस पोलिंग बूथ के लिए रवाना हो गईं.
-जब हमारी टीम रास्ते में थी तो हमने केशपुर से बीजेपी उम्मीदवार प्रीतीश रंजन की गाड़ी देखी और उनसे बात करने की कोशिश की. लेकिन इसी दौरान हिंसक भीड़ पास के इलाकों से निकल आई और उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार प्रीतीश रंजन की गाड़ी पर हमला कर दिया.
-लोगों ने उनकी गाड़ी पर जबरदस्त पत्थरबाजी की. लाठी-डंडों से उनकी गाड़ी के सभी शीशे तोड़ दिए गए और प्रीतीश रंजन पर भी जानलेवा हमले की कोशिश की. हम जब इस पूरी घटना की कवरेज कर रहे थे तो कुछ लोगों ने हमारी गाड़ी का भी पीछा करना शुरू कर दिया क्योंकि, हमारी गाड़ी पर ज़ी मीडिया लिखा था. लेकिन ज़ी मीडिया के रिपोर्टर अलग मिट्टी के बने होते हैं और वो डरते नहीं हैं. ये निडर पत्रकारिता करते हैं.
ममता बनर्जी से सवाल
आज हम पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कुछ ट्वीट्स का जिक्र कर उनसे भी कुछ कड़वे सवाल पूछना चाहते हैं-
-उनका पहला ट्वीट 3 मई 2020 का है, जिसमें वो लिखती हैं कि 'प्रेस लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है और जरूरी है कि ये निडर होकर काम करें.' लेकिन सोचिए जब ज़ी न्यूज़ निडर होकर काम करता है, हम सच दिखाते हैं तो हम पर जानलेवा हमला किया जाता है, पत्थरबाजी की जाती है, लाठियों से मारा जाता है और गाड़ियों में तोड़फोड़ की जाती है.
-उनका दूसरा ट्वीट भी 3 मई 2020 का है, जिसमें ममता बनर्जी लिखती हैं कि पश्चिम बंगाल सरकार राज्य के फ्रंटलाइन वर्कर्स और पत्रकारों का 10 लाख रुपये तक का हेल्थ इंश्योरेंस कराएगी. लेकिन हम ममता बनर्जी से कहना चाहते हैं कि पश्चिम बंगाल में पत्रकारों को, खास कर ज़ी मीडिया के पत्रकारों को हेल्थ इंश्योरेंस की नहीं, बल्कि सुरक्षा की जरूरत है क्योंकि, जान ही नहीं बचेगी तो हेल्थ इंश्योरेंस किस काम आएगा.
देशहित में पत्रकारिता
बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध ने कहा था कि तीन चीजें ज्यादा देर तक नहीं छिप सकतीं- सूर्य, चंद्रमा और सत्य. लेकिन जब हम देशहित में पत्रकारिता करते हैं, सच लोगों के सामने रखते हैं तो कुछ लोगों की असहनशीलता इतनी बढ़ जाती है कि हमारी जान तक लेने की कोशिश करते हैं और ये सिर्फ मुट्ठीभर लोग हैं क्योंकि, कल 2 अप्रैल को जब हमारी टीम केशपुर पहुंची तो बहुत से लोगों ने हमारी हिम्मत की तारीफ की और बताया कि हमला करने वाले लोग आखिर किस बात से परेशान थे, जिन लोगों ने कल हमारी टीम पर हमला किया.
ज़ी न्यूज़ को शाहीन बाग और किसान आंदोलन में भी रोका गया
वो चाहते हैं कि हम सच न दिखाएं और ये कोई नई बात नहीं है. आपको याद होगा जब हम शाहीन बाग गए थे, तो हमें वहां जाने से रोक दिया गया था. इसी तरह जब हमने किसान आंदोलन में खालिस्तान की एंट्री का सच दिखाया तो हमारे कई रिपोर्टर्स की तस्वीरों पर क्रॉस के निशान लगाकर उनके पोस्टर सिंघु बॉर्डर पर लगा दिए गए और हमारे कई सहयोगियों के साथ धक्का मुक्की भी की गई थी.
जी़ मीडिया से इतनी नफरत क्यों?
इसी तरह जेएनयू में भी देश विरोधी नारे लगने के बाद जब हमारी टीम वहां गई तो उसके साथ भी बदसलूकी हुई थी. इससे पता चलता है कि चाहे पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वाले हों, खालिस्तान जिंदाबाद कहने वाले हों, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को बहाल करने की मांग करने वाले हों या फिर देश के टुकड़े टुकड़े चाहने वाले हों. ये सारे लोग ज़ी मीडिया से इतनी नफरत क्यों करते हैं.
सच सहने की क्षमता हर किसी में नहीं होती. ये वो लोग हैं, जिन्हें सच चुभा और इन्होंने हमें डराने, धमकाने और रोकने की सारी कोशिशें की. लेकिन ज़ी न्यूज़ सत्य के मार्ग पर चलता है और भले झूठ का हाईवे कुछ दिन के लिए लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच ले लेकिन वो कभी टिकाऊ नहीं होता.