नई दिल्ली : हाथरस की घटना को मीडिया का एक वर्ग और राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने हिसाब से रंग देने में जुटी हैं.  लेकिन ज़ी न्यूज़ ने मामले की तह में जाकर सच सामने लाने की कोशिश की है और हमारी पड़ताल पूरी तरह से तथ्यों और सबूतों पर आधारित है. 


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हाथरस हत्या कांड में सबसे बड़ा अपडेट ये है कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने इस घटना के आधार पर कई एफआईआर दर्ज की है. इनमें प्रदेश का माहौल बिगाड़ने और जातीय हिंसा फैलाने की साजिश की बात कही गई है.


- एफआईआर में मीडिया पर भी आरोप लगाए गए हैं. जिनके मुताबिक एक पत्रकार ने पीड़ित के भाई पर ये बयान देने का दबाव डाला कि वो पुलिस की कार्रवाई से संतुष्ट नहीं है.


- इसके अलावा एक अज्ञात नेता पर भी इस मामले में सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने का आरोप लगा है. ये आरोप भी है कि कुछ नेताओं ने इस लड़की के परिवार को 50 लाख रुपये देने का लालच भी दिया.


- एफआईआर में ये भी कहा गया है कि फॉरेंसिंक जांच और मेडिकल रिपोर्ट में रेप की पुष्टि नहीं हुई है. फिर भी कुछ लोग मीडिया और सोशल मीडिया पर बार-बार बलात्कार की बात कह रहे हैं.


-एफआईआर में देशद्रोह और समाज में नफरत फैलाने और षड्यंत्र के आरोप लगाए गए हैं. ये सभी आरोप अभी अज्ञात लोगों पर लगाए गए हैं और पुलिस इस आधार पर जांच शुरू करने जा रही है.


-उत्तर प्रदेश की सरकार इस मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश कर चुकी है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि पीड़िता का परिवार इस मामले में सीबीआई जांच नहीं चाहता, बल्कि उनकी मांग है कि इसकी जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराई जाए.


पीड़िता और मुख्य आरोपी संदीप के बीच पुरानी जान-पहचान
हमारी पड़ताल के अनुसार, पीड़िता और मुख्य आरोपी संदीप के बीच पुरानी जान-पहचान थी. और दोनों के बीच शायद बातचीत भी होती थी.


ज़ी न्यूज़ के पास एक कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) है जिसके अनुसार आरोपी संदीप और पीड़िता के परिवार के एक नंबर के बीच बातचीत होती थी. ये नंबर पीड़िता के बड़े भाई के नाम पर रजिस्टर है, दोनों नंबरों के बीच अक्टूबर 2019 से मार्च 2020 के बीच लगभग 5 घंटे बातचीत हुई. हमने पीड़िता के बड़े भाई से पूछा कि क्या आपकी संदीप से फोन पर बातचीत होती थी? तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया.


इसके बाद हमने हाथरस के बूलगढ़ी गांव के कुछ लोगों से बात की. इन लोगों ने कहा कि आरोपी और पीड़िता के बीच प्रेम संबंध था. प्रेम संबंध होने का यह मतलब नहीं है कि आरोपी पीड़िता की हत्या नहीं कर सकता. यह जांच का विषय है और इसका जवाब जांच एजेंसियां ही तलाश करेंगी. 


आरोपियों के परिजनों का पक्ष 
इसी केस में आरोपी बनाए गए लवकुश की मां का कहना है कि जब लड़की घायल अवस्था में थी तब उन्होंने ही अपने बेटे को उसे पानी पिलाने के लिए भेजा था. लेकिन उसे भी गैंगरेप का आरोपी बना दिया गया. अन्य आरोपी रवि को लेकर जब हमने गांव वालों से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि रवि भी उस दिन गांव में नहीं था. वहीं एक और आरोपी रामू की मां ने बताया कि उनका बेटा 14 सितंबर को सुबह साढ़े सात बजे ही घर से निकल चुका था. वो पास के डेयरी प्लांट में नौकरी करता है जो वारदात के वक्त वहीं था


आरोपी रामू की मां के इस दावे की सच्चाई जानने के लिए हमारी टीम गांव से लगभग 3 किलोमीटर दूर डेयरी प्लांट पर पहुंची और डेयरी प्लांट के मालिक से बात की. जिन्होंने पुष्टि की है कि रामू सुबह 8 बजे से 12 बजे तक डेयरी प्लांट में ही मौजूद था. 


14 सितंबर की कहानी
बूलगढ़ी गांव में रहने वाले ओंकार सिंह ने घटना का प्रत्यक्षदर्शी होने का दावा करते हुए 14 सितंबर को गांव में सामने आए पूरे घटनाक्रम के बारे में जानकारी दी. जिससे कई लोग इत्तेफाक रखते हैं. 14 सितंबर सुबह साढ़े नौ बजे पीड़िता को लेकर उसका परिवार थाने पहुंचा. पीड़िता के भाई ने पड़ोसी के बेटे संदीप के खिलाफ FIR लिखवाई. आरोप लगाया गया कि संदीप ने बाजरे के खेत में गला दबाकर उनकी बहन को मारने की कोशिश की. 


14 सितंबर को किसी ने रेप का आरोप नहीं लगाया. न तो पीड़िता, न उसकी मां और न ही भाई ने रेप की बात कही. इसके कुछ वीडियो सामने आए हैं. जिनमें पुरानी रंजिश की बात कही गई है. इसमें सिर्फ एक आरोपी संदीप का नाम लिया गया है. वहीं 14 सितंबर का एक और वीडियो सामने आया है जो स्थानीय अस्पताल का है इसमें मौजूद ऑडियो और वीडियो के मुताबिक साफ होता है कि पीड़िता का परिवार उसे लेकर पहले अस्पताल नहीं आया, बल्कि थाने लेकर गया. 


8 दिन बाद पीड़िता ने नया बयान दर्ज कराया
14 सितंबर को पीड़िता की मां ने थाने में जो बयान दिया उसमें भी बलात्कार का कोई जिक्र नहीं हुआ. मां के मुताबिक पड़ोसी के लड़के ने बेटी का गला दबाया है. FIR के आधार पर 19 सितंबर को आरोपी संदीप को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. लेकिन घटना के 8 दिन बाद पीड़िता ने नया बयान दर्ज कराया. 


नए बयान में पीड़िता ने गैंगरेप का आरोप लगाया, यानि तब संदीप के अलावा 3 अन्य लोगों को भी आरोपी बनाया गया. जिनके नाम लवकुश, रवि और रामू हैं. ये तीनों भी उसी गांव के रहने वाले हैं. 26 सितंबर तक पुलिस ने इन तीनों को भी गिरफ्तार कर लिया. इस बीच, पीड़िता की हालत बिगड़ने लगी. जिसके बाद 28 सितंबर को उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया. जहां अगले दिन 29 सितंबर को पीड़िता की मौत हो गई.


उठे ये अहम सवाल
हाथरस के बूलगढ़ी गांव के लोगों के बयान और दस्तावेज कुछ और महत्वपूर्ण सवाल खड़े कर रहे हैं.


1. सबसे बड़ा सवाल ये कि 14 सितंबर को परिवार ने रेप की बात क्यों नहीं कही?
2. पहले ही दिन बाकी 3 आरोपियों के नाम क्यों नहीं लिए?
3. आठ दिन बाद परिवार ने गैंगरेप की बात क्यों कही?
4. जीभ काटने की बात क्यों फैलाई, जबकि पीड़िता बात करती दिख रही थी?
5. परिवार सीबीआई जांच और नार्को टेस्ट से सहमत क्यों नहीं है?


पीड़ित परिजनों से दोबारा बातचीत
ऊपर सामने आए अहम सवालों के जवाब के लिए हमने पीड़िता के परिवारवालों के साथ फिर से बात की. यह सच है कि पीड़िता की मौत हो गई जिसके पीठ और गर्दन पर चोट के निशान थे. यानी किसी ने तो उसके साथ मारपीट की होगी तो आखिर वो आरोपी कौन है, इसका पता लगाना जांच एजेंसियों की जिम्मेदारी है. ज़ी न्यूज़ मामले में किसी का पक्ष नहीं ले रहा है. यहां पर पूरी पड़ताल तथ्यों के साथ कैमरे पर ऑन रिकार्ड है.


सबसे गंभीर आरोप की सच्चाई
हाथरस के इस मामले में बड़ा प्रश्न यह है कि क्या पीड़िता के साथ बलात्कार हुआ? अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज और दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की फॉरेंसिक रिपोर्ट (Forensic Report) में बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई है. रिपोर्ट में पीड़िता के साथ मारपीट की बात कही गई है.


कठुआ कांड से समानता?
जम्मू के कठुआ में आठ साल की मासूम की हत्या का केस भी आज आपको याद करना चाहिए. ये घटना जनवरी 2018 की है - जब एक मासूम लड़की के साथ गैंगरेप और हत्या की खबर आई थी. इस केस में 7 आरोपी थे, इन आरोपियों में विशाल जंगोत्रा नाम का एक लड़का भी था. ज़ी न्यूज़ की टीम को अपनी इंवेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग के दौरान पता चला था कि जिस वक्त की ये घटना है, उस वक्त वो लड़का कठुआ में मौजूद ही नहीं था.


वो उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में पढ़ाई कर रहा था. कठुआ गैंग रेप केस में विशाल जंगोत्रा ज़ी न्यूज़ की ग्राउंड रिपोर्टिंग के बाद जुटाए गए सबूतों के आधार पर बरी हो गए. मामले की सुनवाई कर रही पठानकोट की स्पेशल कोर्ट ने अपने फैसले में ज़ी न्यूज़ की इंवेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग की तारीफ की थी.


उस वक्त भी हम पर बहुत आरोप लगे थे. लेकिन न्यूज़ का केवल एक ही आधार होता है और वो आधार है सत्य, और रिपोर्टिंग ऐसे ही की जाती है. सड़कों पर कूद फांद मचाकर, अधिकारियों के मुंह में माइक घुसाकर तेज आवाज में चिल्लाकर सवाल करने को रिपोर्टिंग नहीं, तमाशा कहा जाना चाहिए.

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