नई दिल्ली : केरल में मारी गई हथिनी विनायकी पर राजनीति शुरू हो गई है. हमारे देश में रंगों को धर्म के आधार पर बांट दिया जाता है. भोजन और कपड़ों का भी धर्म के आधार पर बंटवारा कर दिया जाता है और अब एक जानवर के साथ भी ऐसा ही हो रहा है. विनायकी की हत्या केरल के हिंदू बाहुल्य पलक्कड़ जिले में हुई थी या फिर मुस्लिम बाहुल्य मल्लापुरम जिले में, इसको लेकर धर्म की राजनीति की जा रही है. ज़ी न्यूज़ की टीम ने ग्राउंड जीरो ( Ground Zero) से इस हत्याकांड का सच जानने की कोशिश की है. 


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ज़ी न्यूज़ की टीम ने दिल्ली से पलक्कड़ तक ढाई हजार किलोमीटर का सफर इसलिए तय किया जिससे कि हकीकत का पता चल सके. जब ज़ी न्यूज़ की टीम पलक्कड़ में ग्राउंड जीरो पर पहुंची तो विनायकी की हत्या की असली कहानी पता चली. जिन्होंने विनायकी को विस्फोटक खिलाए वो तो दोषी हैं ही, लेकिन जिन्होंने तड़पते हुए एक जानवर की कोई मदद नहीं की वो भी कम दोषी नहीं हैं.  आप चाहें तो #ZeeNewsInPalakkad पर ट्वीट करके अपनी राय दे सकते हैं. 


इस मामले में ताजा जानकारी यह है कि केरल के पलक्कड़ जिले से ही विनायकी की हत्या के आरोप में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा चुका है. इस आरोपी का नाम है विल्सन. कहा जा रहा है कि विल्सन कुछ वर्ष पहले ही यहां आया था और वह एक किसान के खेत की देखभाल करता था. अब पुलिस खेत के मालिक और उसके बेटे की तलाश कर रही है. इन लोगों ने विनायकी के साथ ऐसा क्यों किया यह तो पुलिस की जांच में सामने आ ही जाएगा, लेकिन ज़ी न्यूज़ की तहकीकात में यह पता चला है कि अगर समय रहते विनायकी की मदद की जाती तो उसकी जान बचाई जा सकती थी. यानी विनायकी के हत्यारे सिर्फ वह लोग नहीं हैं, जिन्होंने विनायकी को जलते हुए पटाखों से भरा फल खाने के लिए दिया बल्कि इसके लिए वह लोग भी जिम्मेदार हैं, जिन्होंने समय रहते विनायकी की मदद नहीं की. 


ज़ी न्यूज़ की टीम जब पलक्कड़ पहुंची तो हैरान कर देने वाली जानकारियां हासिल हुईं. इन जानकारियों के मुताबिक जिस वेलियार नदी में विनायकी की मौत हुई, वहां से करीब 4 किलोमीटर दूर एक गांव है जिसका नाम है चेलिकल. इस गांव में केले की खेती होती है और स्थानीय लोगों का दावा है कि इसी गांव में विनायकी को पटाखों से भरा हुआ नारियल खिलाया गया. अब तक यह कहा जा रहा था कि विनायकी की हत्या के लिए एक अनानास का इस्तेमाल हुआ था लेकिन हमारी जांच में सामने आया है कि ये एक नारियल था. कुछ लोगों का ये भी दावा है कि अपने खेतों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए किसान अक्सर पटाखों से भरे फल खेत के बाहर रख देते हैं और शायद ऐसा ही एक फल विनायकी ने खा लिया. विनायकी को जानबूझकर यह फल खिलाया गया या फिर उसने अंजाने में यह फल खाया इसका खुलासा तो जांच के बाद होगा, लेकिन एक बात तो साफ है कि इंसानों की और जानवरों की लड़ाई में एक जानवर बेमौत मारा गया. हमारी जांच में यह भी पता चला कि यह घटना करीब 20 दिन पहले की है. जब मुंह में पटाखे फटने से विनायकी बुरी तरह घायल हो गई तब उसने इधर-उधर भागना शुरू किया और फिर 25 मई को विनायकी वेलियार नदी में पहुंची. विनायकी दर्द से तड़प रही थी और जब आस-पास के गांव वालों को इसका पता चला तो उन्होंने इसकी सूचना वन विभाग को दी. लेकिन गांव वालों का कहना है कि वन विभाग की टीम ने विनायकी को बाहर निकालने की बजाय आग जलाकर और जोर-जोर से घंटियां बजाकर उसे वहां से भगाने की कोशिश शुरू कर दी. लेकिन विनायकी वहां से भागी नहीं और रात होने पर वह पास के एक गांव में चली गई.


इसके बाद 26 मई की सुबह 4 बजे विनायकी फिर से एक बार नदी में पहुंच गई. इसके बाद 26 मई की सुबह गांव वाले नदी के पास इकट्ठा हुए और उन्होंने वन विभाग पर जानवरों के डॉक्टर को बुलाने का दबाव बनाया. दोपहर को 60 किलोमीटर दूर से एक डॉक्टर वहां पहुंच तो गया लेकिन वह भी विनायकी का इलाज नहीं कर पाया. इस दौरान विनायकी को बेहोश करने के लिए ना तो ट्रैंकुलाइजर दिया गया और ना ही कोई और व्यवस्था की गई. 26 मई को पूरे दिन विनायकी इसी नदी में खड़े-खड़े दर्द से तड़पती रही, लेकिन वन विभाग या डॉक्टरों की टीम उसकी कोई मदद नहीं कर पाई.


दो दिन बीत जाने के बाद 27 मई की दोपहर को दो प्रशिक्षित हाथी वहां लाए गए और विनायकी को बाहर निकालने की कोशिश शुरू हुई, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और शाम 4 बजकर 5 मिनट पर विनायकी ने वेलियार नदी में खड़े-खड़े दम तोड़ दिया. यानी एक गर्भवती हथिनी तीन दिन तक तड़पती रही, लेकिन सरकार, प्रशासन और वन विभाग की तरफ से उसे कोई राहत नहीं पहुंचाई गई. ज़ाहिर है विनायकी की हत्या के लिए सिर्फ वह लोग जिम्मेदार नहीं हैं, जिन्होंने उसके मुंह में विस्फोटक डाल दिए बल्कि वह लोग भी उतने ही जिम्मेदार हैं जो तीन दिनों तक एक हथिनी को मरते हुए देखते रहे. लेकिन उसे बचाने के लिए कुछ नहीं किया. यह हाल तब है जब केरल सरकार का प्रतीक चिन्ह यानी Emblem हाथी है. इस प्रतीक चिन्ह के दोनो तरफ सूंड उठाए दो हाथी हैं. यानी जिन हाथियों को केरल की पहचान माना जाता है, उन हाथियों को केरल की सरकार और अधिकारी बचाने में असफल रहे हैं.


 



विवाद सिर्फ इस बात पर नहीं है कि विनायकी की हत्या किन लोगों ने की और उनका इरादा क्या था बल्कि विवाद इस बात को लेकर भी है कि विनायकी की हत्या हुई कहां ? दरअसल दो दिन पहले जब विनायकी की हत्या की खबर आई तो कहा गया कि जिस नदी में विनायकी की मौत हुई है वह नदी केरल के मल्लापुरम में है. इसके बाद केरल सरकार ने कहा कि यह इलाका पलक्कड़ में है और यहीं से इस विवाद की शुरुआत हुई. भारत में किसी शहर में जब कोई अपराध होता है तो कई बार पुलिस यह कहकर जांच से बचती है कि घटनास्थल उनके थाना क्षेत्र के अंतर्गत नहीं बल्कि किसी दूसरे थाना क्षेत्र के अंतर्गत आता है. यही विनायकी की हत्या के मामले में भी हो रहा है, लेकिन इस बार विवाद थाना क्षेत्र को लेकर नहीं है बल्कि विवाद के केंद्र में धर्म है.  केरल के वन विभाग की वेबसाइट के मुताबिक पलक्कड़ और मल्लापुरम जिलों के बीच एक राष्ट्रीय उद्यान है, जिसका नाम है साइलेंट वैली नेशनल पार्क (Silent Valley National Park). इस नेशनल पार्क में कई तरह के वन्यजीव पाए जाते हैं जिनमें से हाथी भी एक है. इस नेशनल पार्क का बफर जोन 148 वर्ग किलोमीटर का है. इसी वजह से इसकी सीमाएं पलक्कड़ और मल्लापुरम दोनों से लगी हुई हैं. कहा जा रहा है कि विनायकी इसी नेशनल पार्क से खाने की तलाश में गांव की तरफ आई थी. एक हाथी एक दिन में 195 किलोमीटर तक चल सकता है, लेकिन औसतन एक हाथी एक दिन में 25 किलोमीटर का सफर तय करता है. घायल होने के बाद विनायकी शायद इतना लंबा सफर तो तय नहीं कर पाई होगी, लेकिन संभव है कि 20 दिनों के दौरान उसने कुछ दूरी तो जरूर तय की होगी. जमीनी दूरी की बात करें तो पलक्कड़ और मल्लापुरम एक दूसरे से 80 किलोमीटर दूर हैं. लेकिन जंगल के रास्ते यह दूरी कुछ कम भी हो सकती है. इसलिए संभव है कि विनायकी ने इन दोनों जिलों के बीच सफर तय किया हो. 


लेकिन इस विवाद का फायदा उठाकर धर्म की राजनीति करने वालों ने अब जानवर को भी इसमें घसीट लिया है  और इसके लिए पलक्कड़ और मल्लापुरम की जनसंख्या और डेमोग्राफी (Demography) को आधार बनाया जा रहा है. शुरुआत में केरल सरकार की तरफ से भी कई बयानों में हथिनी की मौत की जगह को मल्लापुरम बताया गया था और अब यह कहा जा रहा है कि हत्या पलक्कड़ में हुई है. विनायकी की मौत मल्लापुरम में हुई है यह कहने वालों में खुद केरल के मुख्यमंत्री भी शामिल थे. हैरानी की बात यह है कि वन विभाग के करीब 200 अधिकारी भी पलक्कड़ और मल्लापुरम में इस मामले की जांच कर रहे हैं. अब सवाल यह है कि अगर विनायकी की हत्या पलक्कड़ में हुई तो फिर जांच मल्लापुरम में क्यों की जा रही है. 


पलक्कड़ में 68 प्रतिशत हिंदू, 28 प्रतिशत मुसलमान और करीब 3 प्रतिशत ईसाई रहते हैं और एक प्रतिशत लोग अन्य धर्मों के हैं. मल्लापुरम में करीब 70 प्रतिशत मुसलमान, 27 प्रतिशत हिंदू और 3 प्रतिशत दूसरे धर्मों के लोग रहते हैं. यानी दोनों जिलों की जनसंख्या के बीच इस अंतर को आधार बनाकर ही अब कुछ लोग इस पर धर्म की राजनीति कर रहे हैं. कुछ लोगों का दावा है कि केरल की सरकार अब जान-बूझकर पलक्कड़ का नाम ले रही है , जबकि इस तर्क का विरोध करने वाले कह रहे हैं कि जब हथिनी की मौत पलक्कड़ में हुई है तो फिर इसमें परेशानी की बात क्या है. सच यह है कि इस हथिनी की हत्या हिंदू बाहुल्य इलाके में हुई हो या मुस्लिम बाहुल्य इलाके में इसकी निंदा की जानी चाहिए, क्योंकि जिसने भी इसकी जान ली वह व्यक्ति ना तो धार्मिक हो सकता है और ना ही धर्म से उसका कोई रिश्ता हो सकता है. 


द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (The Economist Intelligence Unit) की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 से 2020 के बीच दुनिया के जिन शहरों की जनसंख्या सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ी उनमें पहले नंबर पर मल्लापुरम है. जिसकी जनसंख्या 44 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ी, जबकि दूसरे नंबर पर वियतनाम का शहर कान थो और तीसरे नंबर पर चीन का शहर सुकियान है. कान थो और सुकियान की जनसंख्या इन्हीं 5 वर्षों की अवधि के दौरान 36 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ी है.  जैसे-जैसे शहरों की आबादी बढ़ रही है और शहर बड़े होते जा रहे हैं वैसे-वैसे इंसानों और जानवरों के बीच द्वंद भी बढ़ता जा रहा है. ज़ी न्यूज़ की ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान यह भी पता चला है कि पिछले एक साल में केरल में करीब 70 हाथियों की हत्या हुई है. किसी को बिजली के झटके देकर मार दिया गया, किसी हाथी को बंदूक की गोली से मारा गया तो किसी को विनायकी की तरह जलते हुए पटाखे खिलाकर मार दिया गया.  केरल में जंगली जानवरों की हत्या़ बहुत आम है और अंगों की तस्करी के लिए हर साल सैकड़ों जानवरों को मार दिया जाता है. हाथियों की हत्या उनके दांत के लिए की जाती है और इसी तरह कई जानवरों को अलग-अलग वजहों से मार दिया जाता है. 


एक मादा हथिनी की हत्या ज़ी न्यूज़ के लिए सिर्फ एक खबर नहीं थी. इसकी तस्वीरें ज़ी न्यूज़ के लिए सिर्फ वायरल सामग्री नहीं थी. यह हमारे लिए एक मिशन बन गई. एक ऐसा मिशन जिसके तहत हमने विनायकी को न्याय दिलाने की ठान ली. विनायकी तीन दिनों तक तड़पती रही, दर्द से कराहती रही, लेकिन उसकी हत्या करने वालों की संख्या बढ़ती रही. पहले कुछ लोगों ने उसे पटाखे देकर मौत दी और फिर कुछ लोगों ने उसे बचाने के लिए कुछ ना करके मौत के मुंह में धकेल दिया. स्थानीय पत्रकार जय प्रकाश भी बताते हैं कि विनायकी की हत्या के लिए कैसे सिर्फ वो तीन लोग नहीं बल्कि पूरा प्रशासन जिम्मेदार है. पलक्कड़ की वेलियार में नदी में तीन दिन तक असाहय दर्द के साथ खड़ी कहने वाली विनायकी अकेली नहीं हैं बल्कि केरल में सैंकड़ों हाथी और दूसरे जानवर हर साल ऐसी ही निर्मम मौत मारे जाते हैं. हाथियों के संरक्षण के लिए काम करने वाले शरद का मानना है कि जंगलों पर सिर्फ जानवरों का हक है और इंसानों का लालच इस द्वंद का कारण बन रहा है और इस संघर्ष में कभी इंसान मारे जाते हैं तो कभी जानवर. इन सबके बीच कुछ लोगों ने इस पूरे हत्याकांड को धार्मिक रंग दे दिया और इस बात पर बहस छेड़ दी है कि विनायकी की हत्या मुस्लिम बाहुल्य मल्लापुरम में हुई या हिंदू बाहुल्य पलक्कड़ में. सांसद और पशुओं के अधिकारों की आवाज उठाने वाली मेनका गांधी भी कहती हैं कि यह केरल सरकार की लापरवाही है और अब इसे धार्मिक रंग देकर गुनहगारों को बचाने की साजिश हो रही है. केरल पुलिस इस हत्याकांड के एक आरोपी को गिरफ्तार कर चुकी है, लेकिन अभी भी विनायकी के असली गुनहगार गिरफ्त से बाहर हैं और जब तक विनायकी को इंसाफ नहीं मिल जाता ज़ी न्यूज़ इस मुहिम को ठंडा नहीं पड़ने देगा. 


हाथी को भारतीय संस्कृति में देवता स्वरूप माना जाता है. भगवान गणेश का एक नाम विनायक भी है. मान्यता यह भी है कि भगवान गणेश के देवी स्वरूप को विनायकी कहते हैं, इसलिए ज़ी न्यूज़ ने इस हथिनी का नाम विनायकी रखा है.  बीजेपी सांसद मेनका गांधी ने विनायकी की हत्या पर सवाल उठाया है और अब उनके खिलाफ केरल में एफआईआर दर्ज कर ली गई है. उन पर ऐसे भड़काऊ बयान देने का आरोप है जिनसे दंगे भड़क सकते हैं. कुछ दिनों पहले जम्मू में जमीन जेहाद की खबर दिखाने पर ज़ी न्यूज़ के खिलाफ भी गैरज़मानती धाराओं में एफआईआर दर्ज करा दी गई थी. यानी जो भी केरल सरकार पर सवाल उठाएगा उसे जेल जाना होगा. यही केरल की सरकार का सच छिपाने वाला वह मॉडल है, जिसका ज़ी न्यूज़ लगातार पर्दाफास करता रहा है. 


केरल में हथिनी विनायकी की हत्या सिर्फ एक जानवर की हत्या नहीं है बल्कि यह इंसानों और प्रकृति के बीच बिगड़ते संबंधों का भी सबूत है. यह विडंबना है और बहुत दुख की बात है कि हम विनायकी की हत्या का विश्लेषण उस दिन कर रहे हैं जिस दिन पूरी दुनिया विश्व पर्यावरण दिवस मना रही है, लेकिन विनायकी की हत्या से सवाल उठता है कि क्या इंसानों को पर्यावरण दिवस मनाने का हक होना चाहिए ? क्या पूरे साल में सिर्फ दिन प्रकृति और पर्यावरण की बात करके हम उन सब अपराधों से छुटकारा पा सकते हैं जो हम प्रकृति और पर्यावरण के खिलाफ करते हैं । उदाहरण के लिए पूरी दुनिया में जिन हाथियों को हर साल हजारों की संख्या में मार दिया जाता है वो हाथी अगर विलुप्त हो गए तो उनके साथ पेड़ों की लाखों प्रजातियां भी विलुप्त हो जाएंगी. हाथी जब पेड़-पौधे खाते हैं तो इस दौरान वो उनके बीजों को भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाते हैं. लेकिन हाथियों की घटती संख्या की वजह से यह प्रक्रिया बाधित हो रही है और हाथियों के विलुप्त होने के साथ साथ पेड़ों की विशेष प्रजातियों के भी विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है.


इस साल की शुरुआत ही ऑस्ट्रेलिया और अमेजन के जंगलों में लगी आग से हुई थी. यह इस बात का संकेत है कि हमने पर्यावरण का दोहन कर उसे नष्ट होने की कगार पर पहुंचा दिया है. कोरोना वायरस भी इसी दोहन का प्रमाण है, क्योंकि असीमित आजादी के नाम पर इंसान पर्यावरण को चोट पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है. अमेरिकन म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री (American Museum of Natural History) के मुताबिक 1970 में दुनिया की जनसंख्या आज के मुकाबले आधी थी. उस समय पृथ्वी पर 370 करोड़ लोग रहते थे और आज यह संख्या बढ़कर करीब 780 करोड़ हो चुकी है. 50 वर्षों की तुलना में इंसानों ने आज पृथ्वी पर ज्यादा जगह घेर ली है. 1970 तक इंसानों के पास रहने, जानवरों को चराने और खेती करने के लिए साढ़े 4 करोड़ वर्ग किलोमीटर जमीन हुआ करती थी जो अब बढ़कर करीब-करीब 5 करोड़ वर्ग किलोमीटर हो चुकी है. जिस क्षेत्रफल में इंसानों ने अपने रहने के लिए घर बनाए हैं वह 50 वर्ष पहले की तुलना में 2 लाख 20 हजार वर्ग किलोमीटर ज्यादा है.


जानवरों को चराने की जगह 1970 के मुकाबले 23 लाख वर्ग किलोमीटर ज्यादा है और कृषि की जगह भी पहले से 16 लाख वर्ग किलोमीटर ज्यादा हो चुकी है. अब आप सोचिए कि इंसानों के पास इतनी जगह कहां से आ रही है ? यह जगह जंगलों को काट कर बनाई जा रही है. जानवरों के हिस्से की जमीन हड़पने का नतीजा यह हुआ है कि अब जानवर और इंसान एक दूसरे के ज्यादा करीब रहने लगे हैं और कोरोना वायरस जैसी महामारियां भी इसी का परिणाम हैं. क्योंकि प्रकृति के नियमों के अनुसार इंसानों और जंगली जानवरों के बीच एक दूरी बहुत जरूरी है. 75 प्रतिशत नए वायरस का जन्म इन्हीं जानवरों में होता है, जिससे आगे चलकर इंसान भी इनसे संक्रमित हो जाते हैं. 1980 की तुलना में आज जानवरों की वजह से इंसानों में संक्रमण के मामले बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं.


1980 से 90 के बीच जानवरों से इंसानों में संक्रमण के 991 मामले सामने आए थे. 1990 से 2000 के बीच इनकी संख्या बढ़कर 1 हजार 924 हो गई. जबकि वर्ष 2000 से लेकर 2010 के बीच ऐसे मामलों की संख्या बढ़कर 3 हजार 420 हो गई.  प्रति व्यक्ति मीट प्रॉडक्ट की खपत भी 65 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है. मीट प्रॉडक्ट के उत्पादन के दौरान भारी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन होता है. प्रति व्यक्ति प्लास्टिक का उपयोग भी 447 प्रतिशत तक बढ़ चुका है और प्लास्टिक पर्यावरण के लिए सबसे खतरनाक चीजों में से एक मानी जाती है. आज हमारी हवा में 50 वर्ष पहले के मुकाबले 26 प्रतिशत ज्यादा कार्बन डाईआक्साइड है और इसकी वजह से हमारे समुद्र भी पहले से ज्यादा गर्म हो रहे हैं और उनमें तेजाब की मात्रा 4 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है. 1970 से लेकर अब तक पृथ्वी का तापमान भी करीब एक प्रतिशत बढ़ चुका है । इसे ही ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं. यानी इंसानों ने प्रकृति का दोहन करने के नाम पर ना सिर्फ जानवरों से उनकी आजादी और उनका हक छीन लिया बल्कि खुद अपना भी भारी नुकसान किया है. इसलिए पर्यापरण दिवस के मौके पर आज आपको प्रकृति और जानवर दोनों को बचाने का प्रण लेना चाहिए.