पंजाब-हरियाणा को छोड़ बाकी राज्यों के किसान चाहते थे लागू हों कृषि कानून, विपक्षी दल बता रहे किसानों की जीत
विपक्षी दलों के चेहरे इस फैसले के बाद उतरे हुए हैं. हर कोई इस फैसले को अपने अपने हिसाब से देख कर अपनी जीत बता रहा है. इसे उत्तर प्रदेश और पंजाब के विधान सभा चुनाव से भी जोड़ कर देखा जा रहा है.
नई दिल्ली: आज हमें देश के उन किसानों के लिए बहुत दुख है, जो भारत के कृषि क्षेत्र (Agriculture Sector) में सुधार चाहते थे. पंजाब (Punjab) और हरियाणा (Harayana) को छोड़ कर देश के बाकी 26 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेशों के किसान चाहते थे कि ये कृषि कानून (Farm Laws) लागू हों. लेकिन दो राज्यों के मुट्ठीभर किसानों की वजह से इन कृषि सुधारों (Agriculture Reform's) को देश अपना नहीं पाया.
'किसानों का एक तबका निराश'
हमारे देश के ये किसान आज काफी निराश होंगे. लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि हमारे देश के विपक्षी दल इसे अपनी जीत बता कर खुश हो रहे हैं. इस पर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने भी एक ट्वीट किया और लिखा कि ये देश के अन्नदाताओं की जीत है. सोचिए जो आन्दोलन दो राज्यों के किसानों तक सीमित था, वो देश के दूसरे राज्यों के किसानों की आवाज़ कैसे हो सकता है. इस फैसले के बाद बहुत से नेताओं ने अपनी अपनी प्रतिक्रिया दी है.
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विपक्ष से छिना मुद्दा
आपने ध्यान दिया होगा कि विपक्षी दलों के चेहरे इस फैसले के बाद उतरे हुए हैं. इसके बावजूद हर कोई इस फैसले को अपने अपने हिसाब से देख रहा है और अपनी जीत बता रहा है. इस फैसले को आज उत्तर प्रदेश और पंजाब के विधान सभा चुनाव से भी जोड़ कर देखा जा रहा है. और ये कहा जा रहा है कि केन्द्र सरकार ने ये फैसला किसान हित में नहीं बल्कि चुनाव हित में लिया है. जबकि ये बात सही नहीं है.
ये क़ानून पिछले साल 27 सितम्बर 2020 को लागू हुए थे. उसके बाद बीजेपी ने असम का चुनाव जीता. बंगाल में 77 विधान सभा सीटें जीती, जहां पहले उसके पास सिर्फ़ 3 सीटें थीं. गुजरात और यूपी में पंचायत के चुनाव जीते. कई राज्यों में उप चुनाव में जीत दर्ज की. अगर आज का फैसला उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनावों को ध्यान में रख कर ही लिया गया होता तो सवाल है कि कृषि कानून लागू होने के बाद बीजेपी देश में ये चुनाव कैसे जीती थी?
'कानूनों को निरस्त करने की संवैधानिक प्रक्रिया'
अब आप संक्षेप में ये समझिए कि कृषि कानूनों को निरस्त करने की संवैधानिक प्रक्रिया क्या होगी?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 245 देश की संसद को क़ानून बनाने का अधिकार देता है. लेकिन इसी अनुच्छेद में ये प्रावधान भी है कि अगर देश की संसद चाहे तो वो बहुमत से किसी क़ानून को रद्द भी कर सकती है. जिस तरह केंद्र सरकार कोई कानून बनाने के लिए उससे संबंधित बिल संसद में पेश करती है, वैसे ही किसी कानून को रद्द करने के लिए भी उसे एक बिल संसद में लाना होता है.
ये बिल दो तरह से लाए जा सकते हैं. या तो सरकार सीधे संसद में बिल लेकर आ जाए या इसके संबंध में एक अध्यादेश जारी कर दे. अध्यादेश वाले तरीक़े में एक समस्या ये होती है कि सरकार को इसके अगले 6 महीने में फिर से बिल संसद में लाना ही होता है. यानी घूम फिर कर बात बिल पर ही आ जाती है. और जैसा कि आज प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि सरकार इसी शीत सत्र में इन कानून को ख़त्म कर देगी. यानी केन्द्र सरकार अध्यादेश वाला तरीक़ा नहीं अपनाएगी.
संसद का शीत सत्र इसी महीने की 29 तारीख़ से शुरू हो रहा है. और पूरी उम्मीद है कि सरकार इस सत्र के पहले दिन ही कृषि कानून रद्द करने के लिए एक बिल पेश करेगी, जिस पर पहले लोक सभा में वोटिंग होगी और फिर राज्यसभा में वोटिंग होगी. जब ये बिल दोनों सदनों में पास हो जाएगा तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करते ही ये बिल अपनी शक्ति खो देगा. यानी इतिहास बन जाएगा.
मोदी सरकार पहली बार कोई कानून रद्द नहीं करेगी. 2014 से 2021 तक सरकार कुल 1 हज़ार 428 क़ानून ख़त्म कर चुकी है. हालांकि इनमें से 98 फीसदी ऐसे थे, जो कई दशकों पहले बने थे. लेकिन ये पहली बार है, जब मोदी सरकार ने ही कोई कानून बनाया, और उसे अपने कार्यकाल में ही उसे खत्म करना पड़ा.