DNA on Assam Indigenous Muslims: आपको याद होगा वर्ष 2019 और 2020 में हमारे देश में नागरिकता संशोधन कानून और NRC के मुद्दे पर काफी गतिरोध हुआ था. उस समय CAA कानून के खिलाफ़ दिल्ली के शाहीन बाग़ में 100 से ज़्यादा दिनों तक आन्दोलन चला था. एक बार फिर से देश में इस मुद्दे पर बहस शुरू हो गई है और इस बहस के केन्द्र में है, असम सरकार द्वारा लिया गया वो फैसला, जिसमें ऐसे मुसलमानों को चिन्हित किया गया है, जो मूल रूप से असम के हैं.


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बांग्लादेशी मुस्लिमों को छांटने की शुरुआत तो नहीं?


असम सरकार ने पांच मुस्लिम जनजातियों को चिन्हित कर उन्हें मूल रूप से असम का (Assam Indigenous Muslims) माना है. यानी उन्हें स्वदेशी मुसलमानों का दर्जा दिया है. इन 5 मुस्लिम जन-जातियों में गोरिया, मोरिया, देसी, जोलाह और सैयद हैं. अब सरकार ये सुनिश्चित करेगी कि इन मुसलमानों को सरकारी सुविधाएं मिलती रहें. हालांकि असम सरकार के इस फैसले को एक दूसरे पहलू से भी देखा जा रहा है. कहा जा रहा है कि ये फैसला उन लोगों को चिन्हित करने की एक प्रक्रिया का हिस्सा है, जो अवैध रूप से बांग्लादेश से असम राज्य में दाखिल हुए हैं. इस वजह से बाकी के मुसलमानों में काफी डर है.



असम सरकार में मंत्री जयंत मल्ल बरुआ ने बताया है कि राज्य के Indigenous Muslims यानी स्वदेशी मुसलमानों को अलग से चिन्हित करने की सिफारिश 7 सदस्यों की एक एक्सपर्ट कमिटी ने की थी. यानी ये फैसला सरकार ने तथ्यों और गहन अध्ययन के आधार पर किया है.


असम में मुसलमानों की 34 प्रतिशत आबादी


वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक लक्षद्वीप और जम्मू कश्मीर के बाद भारत में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी असम में है. असम की कुल आबादी तीन करोड़ 12 लाख है. जिसमें से मुस्लिम आबादी 34 प्रतिशत है. अगर संख्या में कहें तो असम की कुल आबादी में एक करोड़ सात लाख मुसलमान हैं.


हालांकि, इनमें से ज्यादातर मुसलमान वो हैं, जो बांग्लादेश से घुसपैठ करके असम में आए. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स ये कहती हैं कि इनमें से सिर्फ 37 प्रतिशत मुसलमान ही ऐसे हैं, जो उन पांच मुस्लिम जनजातियों से आते हैं, जिन्हें सरकार ने असम का मूल नागरिक माना है. 37 प्रतिशत का मतलब है लगभग 40 लाख मुसलमान.


असम में मुसलमानों की आबादी ज्यादा होने की वजह से वहां की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक का बहुत अहम रोल है. लेकिन बड़ी बात ये है कि अब तक असम में केवल उन्हीं मुसलमानों को ज्यादा महत्व दिया गया, जो बांग्लादेश से घुसपैठ करके असम में आए क्योंकि इनकी आबादी वहां ज्यादा है. जबकि जो मुसलमान मूल रूप से असम के हैं, उन्हें ज्यादा महत्व नहीं दिया गया.


असमिया मुस्लिमों का हक मार रहे घुसपैठिए


इस राजनीतिक असंतुलन का नतीजा ये हुआ कि जो मुसलमान मूल रूप से असम (Assam Indigenous Muslims) के हैं, उन्हें सरकारी योजनाओं का उतना लाभ नहीं मिला, जितना लाभ उन मुसलमानों को हुआ, जो बांग्लादेश से असम में घुसपैठ करके आए. इसी वजह से मुसलमानों का ये वर्ग पिछले दो दशकों से ये मांग कर रहा था कि सरकार उन्हें मूल रूप से असम का नागरिक माने और उन्हें एक अलग पहचान दे. ताकि उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके.


असम में मुस्लिम समुदाय दो वर्गों में बंटा हुआ है. एक समुदाय को खिलोंजिया मुस्लिम कहते है और दूसरे समुदाय को मिया मुस्लिम कहते हैं. खिलोंजिया मुस्लिम वो हैं, जिन्हें मूल रूप से असम का ही माना जाता है. जबकि मिया मुस्लिम वो हैं, जो बांग्लादेश से घुसपैठ करके भारत में आए.


राज्य में मुसलमानों के 2 वर्ग


असम के खिलोंजिया (Assam Indigenous Muslims) और मिया मुसलमानों में फर्क सिर्फ़ भाषा का नहीं है. बल्कि इन दोनों समुदायों में सांस्कृतिक रूप से भी कई असमानताएं हैं. खिलोंजिया समुदाय में जो मुस्लिम जनजातियां आती हैं, उनमें से कुछ ऐसी हैं, जो मूल रूप से असम की हैं. इनमें मुख्य रूप से देसी जनजाति के मुस्लिम आते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस समुदाय के लोग सदियों पहले असम के एक जातीय समूह का हिस्सा थे, जिसे कोच राज-बोंग्शी कहते हैं. लेकिन बाद में 13वीं शताब्दी के बाद इन लोगों ने इस्लाम धर्म को अपना लिया.


इसके अलावा जो गोरिया और मोरिया जनजाति के लोग हैं, उनके लिए ये कहा जाता है कि वो अहोम राजवंश का हिस्सा थे. हालांकि इसे लेकर कई और तर्क भी दिए जाते हैं.  सरकार ने इन दोनों जनजातियों को भी स्वदेशी मुसलमानों का दर्जा दिया है. इसके अलावा इस सूची में जोलाह समुदाय भी है, जिसके लिए ये कहा जाता है कि इस जनजाति के लोगों को अंग्रेज अपने शासन काल में असम लेकर आए थे. ताकि इन लोगों से असम के चाय बागानों में मजदूरी कराई जा सके.


घुसपैठियों के लिए बनाए गए हैं कई कैंप


असम सरकार के इस फैसले के बाद उन मुसलमानों में डर है, जिन पर ये आरोप लगता है कि वो बांग्लादेश से घुसपैठ करके राज्य में दाखिल हुए. असम में ऐसे कई कैंप बनाए गए गए हैं. जहां ऐसे मुसलमानों को रखा गया है, जो सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्जा करके रह रहे थे. असम में इस तरह के कैंपों को लेकर कई तरह की बातें कही जाती हैं. 


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