DNA on Family Political Parties: महाराष्ट्र में पनपे राजनीतिक संकट (Maharashtra Political Crisis) का अंजाम क्या होगा, ये अभी क्लियर नहीं है लेकिन इससे देश में पारिवारिक राजनीतिक पार्टियों का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है. आपको ये समझना चाहिए कि पहले हमारा देश अंग्रेजों का गुलाम था. आजादी के बाद धीरे धीरे हमारा देश कुछ परिवारों का गुलाम बन गया. आज उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक देश में ऐसी अनेकों पार्टियां हैं, जिन्हें एक परिवार द्वारा चलाया जा रहा है.


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परिवारवाद में जकड़ी राजनीतिक पार्टियां


आज हमारा देश कैसे कुछ परिवारों की राजनीति में जकड़ा हुआ है. जम्मू कश्मीर की दो बड़ी पार्टियां, नैशनल कॉन्फ्रेंस और PDP परिवारवाद के सिद्धांत पर ही टिकी हुई हैं.


नैशनल कॉन्फ्रेंस को एक ही परिवार (Family Political Parties) तीन पीढ़ियों से चला रहा है. पहले शेख अब्दुल्लाह, फिर फारुख अब्दुल्लाह और अब उनके बेटे उमर अब्दुल्ला इस पार्टी को चला रहे हैं. इसी तरह मुफ्ती मोहम्मद सईद ने वर्ष 1999 में PDP पार्टी की स्थापना की थी और अब उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती इस पार्टी की अध्यक्ष हैं.



पंजाब-हरियाणा और यूपी भी अछूते नहीं


पंजाब में शिरोमणि अकाली दल दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है और इस पार्टी को भी एक ही परिवार चला रहा है और वो है, बादल परिवार. इसी तरह हरियाणा की सबसे बड़ी क्षेत्रीय पार्टी है, इंडियन नैशनल लोकदल. जिसकी स्थापना भारत के उप प्रधानमंत्री चौधरी देवी लाल ने की थी. अब उनके पुत्र ओम प्रकाश चौटाला और उनके पुत्र अजय चौटाला इस पार्टी को चला रहे हैं.


उत्तर प्रदेश की तीन बड़ी पार्टियां, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल में भी परिवारवाद (Family Political Parties) है. समाजवादी पार्टी को मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश यादव चला रहे हैं, बहुजन समाज पार्टी को मायावती चला रही हैं और राष्ट्रीय लोक दल को चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी चला रहे हैं


इन राज्यों में पारिवारिक पार्टियों का राज


इसी तरह महाराष्ट्र में शिवसेना पर ठाकरे परिवार का और NCP पर शरद पवार के परिवार का नियंत्रण है. ओडिशा में बीजू जनता दल की सरकार है, जिसके प्रमुख नवीन पटनायक हैं. नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक भी ओडिशा के दो बार मुख्यमंत्री रहे थे. झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार है, जिसे शिबू सोरेन का परिवार चला रहा है. उनके पुत्र हेमंत सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री हैं.


बिहार में RJD सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है, जिसे लालू यादव का परिवार (Family Political Parties) चला रहा है. आन्ध्र प्रदेश में दोनों मुख्य पार्टियों में परिवारवाद है. TDP की स्थापना एन.टी. रामाराव ने की थी. अब उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू इस पार्टी के प्रमुख हैं. जबकि आन्ध्र प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री Y.S. जगमोहन रेड्डी.. Y. S. Rajasekhara Reddy के पुत्र हैं. जो आन्ध्र के बहुत बड़े नेता थे.


दक्षिण के राज्यों में फैमिली पॉलिटिक्स


तेलंगाना में TRS की सरकार है, जिसके प्रमुख के. चंद्रशेखर राव हैं. उनके बेटे के.टी. रामाराव भी उनकी सरकार में शहरी विकास मंत्री हैं. तमिलनाडु में DMK की सरकार है, जिसे पहले एम. करुणानिधि चला रहे थे. अब उनके बेटे एम.के. स्टालिन इस पार्टी के प्रमुख हैं और राज्य के मुख्यमंत्री भी हैं.


परिवारवाद (Family Political Parties) की सबसे बड़ी मिसाल है, कांग्रेस. जिसे आजादी के बाद से नेहरु गांधी परिवार चला रहा है. कांग्रेस पार्टी में जो नाराज नेताओं का एक ग्रुप है, जिसे G-23 या ग्रुप 23 कहते हैं, वो भी पार्टी में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराने की मांग कर रहा है. इस परिवारवाद के खिलाफ है. यानी आप जम्मू कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक देखेंगे तो हमारा देश आपको कुछ परिवारों में जकड़ा हुआ दिखाई देगा.


शिंदे को मिला 50 विधायकों का साथ


इस खबर का एक Latest Update ये है कि शिवसेना के तीन और नेता गुवाहाटी पहुंच गए हैं. इनमें रवींद्र फाटक MLC हैं और बाकी दो नेता शिवसेना में विधायक हैं. यानी इस हिसाब से गुवाहाटी में अब एकनाथ शिंद के साथ कुल 50 विधायक हैं. जिनमें 43 विधायक शिवसेना के हैं. मतलब अब उद्धव ठाकरे के पास 55 में से सिर्फ 12 विधायक ही बचे हैं. 43 विधायक एकनाथ शिंदे के साथ हैं. इसलिए अब आप शिवसेना को शिंदे सेना भी कह सकते हैं.