नई दिल्ली: तारीखें आती हैं, चली जाती हैं. लेकिन कुछ तारीखें ऐसी भी होती हैं, जो हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाती हैं. 11 सितम्बर, दुनिया के लिए एक ऐसी ही तारीख है. 127 साल पहले वर्ष 1893 में स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म संसद में भाषण दिया था. ये वो भाषण है जिसने पूरी दुनिया के सामने भारत की एक मजबूत छवि को पेश किया.


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विश्व धर्म संसद में अपने भाषण की शुरुआत में जैसे ही स्वामी विवेकानंद ने कहा था - "Sisters And Brothers Of America" यानी "मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों" ...उनके इन शब्दों को सुनकर वहां मौजूद 7 हजार लोगों ने करीब 2 मिनट तक लगातार खड़े होकर तालियां बजाई थीं और उनका अभिवादन किया था. सिर्फ 30 साल की उम्र में एक संन्यासी ने, दुनिया को हिंदुत्व के नजरिये से भाईचारे का पाठ पढ़ाया था. आज आपको जानना चाहिए कि आखिर भारत के संन्यासी ने ऐसा क्या बोला था, जिससे दुनिया मंत्रमुग्ध हो गई थी.


स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म संसद में सबसे आखिर में अपना भाषण दिया था. वो जब भाषण देने के लिए उठे, तो कुछ देर के लिए शांत खड़े रहे और फिर उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत 'मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों' से की थी.



उन्होंने अपने धर्म का जिक्र करते हुए कहा कि वो एक ऐसे धर्म से हैं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सबको स्वीकार करने का पाठ पढ़ाया है. उन्होंने विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करने की बात कही थी.



भारत का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा था कि उन्हें गर्व है कि वो एक ऐसे देश से हैं, जिसने इस पृथ्वी के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है.



127 साल पहले स्वामी विवेकानंद ने सांप्रदायिकता और कट्टरता के प्रति भी दुनिया को आगाह किया था और कहा था कि कितनी बार ये धरती खून से लाल हुई है. कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं. अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता.


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