नई दिल्लीः संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र में तीन तलाक को रोकने के मकसद से लाया गया ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2018’ लोकसभा में पारित हो गया और अब इसे राज्यसभा में चर्चा एवं मंजूरी के लिए पेश किए जाने की तैयारी है. इस विधेयक की पृष्ठभूमि में तीन तलाक की पीड़िता और उच्चतम न्यायालय में चले मामले में याचिकाकर्ता रहीं सायरा बानो से, पेश हैं पांच सवाल और उनके जवाब - 


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प्रश्न: विधेयक लोकसभा में पारित हो गया और राज्यसभा में पारित होना है. क्या आप सहमत हैं? 
उत्तर: मुझे सिर्फ यही कहना है कि कोई भी पार्टी इसका विरोध न करे क्योंकि यह इंसानी मामला है, महिलाओं के अधिकार का मामला है. उन्हें इस सामाजिक कुप्रथा को दूर करने में मदद करनी चाहिए. शाह बानो वाली गलती अब नहीं दोहराई जाए. 


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प्रश्न: कुछ विपक्षी दल इसमें सजा के प्रावधान को लेकर विरोध कर रहे हैं . क्या यह प्रावधान रहना चाहिए ? 
उत्तर: सजा का प्रावधान रहना चाहिए. इससे डर पैदा होगा. लोगों को लगेगा कि अगर तीन तलाक दिया तो सजा हो सकती है. इससे तीन तलाक के मामलों में कमी आएगी. कुछ लोग सुलह की गुंजाइश की बात कर रहे हैं. लेकिन मेरा यह कहना है जब लोग डरेंगे और ऐसा कदम नहीं उठाएंगे, तो फिर सुलह और किसी चीज की नौबत ही नहीं आएगी.


प्रश्न: क्या आपको लगता है कि तीन तलाक विरोधी विधेयक पर राजनीति हो रही है ? 
उत्तर: कुछ लोग राजनीति कर रहे हैं. खासकर धार्मिक नेता अपना फायदा देख रहे हैं जबकि इसको सिर्फ इंसानी नजरिए से देखने की जरूरत है. हमें यह समझना होगा कि इस विधेयक के कानून बनने से आने वाली पीढ़ी को फायदा हो. यह कानून बन गया तो मुस्लिम लड़कियां खौफ में नहीं जिएंगी.


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प्रश्न: उच्चतम न्यायालय के 2017 के फैसले के बाद आपकी जिंदगी में कितना बदलाव आया है? 
उत्तर: मैं तो इस बुराई को भुगत चुकी हूं, इसलिए मेरी जिंदगी में बहुत बड़ा बदलाव नहीं आ सकता. इतना जरूर हुआ कि मेरे ससुराल पक्ष वालों ने मेरे बच्चों (दो बच्चे) से मुझे मिलाना शुरू कर दिया. इस फैसले के बाद, मैं मानती हूं कि बहुत सारी महिलाओं को कुछ राहत मिली है और कानून बनने के बाद वो ज्यादा महफूज रहेंगी. 


प्रश्न: क्या आप मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई आगे जारी रखेंगी? 
उत्तर: 'निकाह हलाला' और बहुविवाह वाली कुप्रथा पर भी रोक लगनी चाहिए. मैं चाहूंगी कि इन पर कानूनी रूप से रोक लगे. अपने स्तर पर जो भी हो सकेगा, मैं करूंगी. मैं चाहती हूं कि सामाजिक संगठन और राजनीतिक दल भी इन दो कुप्रथाओं के खिलाफ आगे आएं.