UP Election 2022: किन बाहुबलियों की नैय्या हुई पार, इनको नहीं मिला जनता का प्यार
उत्तर प्रदेश विधान सभा का इस बार का चुनाव (Uttar Pradesh Assembly election) कई मामलों से अलग रहा. जहां बीजेपी (bjp) लगातार दूसरी बार बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है. वहीं, इस बार के चुनावों में जनता ने बाहुबली उम्मीदवारों (bahubali candidates) को नकार दिया है. हालांकि, कुछ बाहुबली इस बार भी अपना किला बचाने में कामयाब रहे.
लखनऊः उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के पूरब से आने वाली हवाओ ने इस बार अपना रुख बदला है. बदलाव की राजनीती की तरफ आगे बढ़ते हुए जनता के इस बार पूर्वांचल के ज्यादातर बाहुबली उमीदवारों को सिरे से नकार दिया है. हाल की कुछ बड़े नाम के साथ बाहुबली छवि वाले प्रत्याशी जीतने में कामयाब भी रहे, लेकिन जनता ने ज्यादातर बाहुबली उम्मीदवारों को नकार दिया.
इनको नहीं मिला जनादेश
उत्तर प्रदेश के चुनावी परिणामों के मुताबिक, बाहुबली उम्मीदवार धनंजय सिंह (मल्हनी), विजय मिश्रा (ज्ञानपुर), यश भद्र सिंह मोनू (इसौली) और उम्रकैद की सजा काट रहे अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि त्रिपाठी (नौतनवा) को जनादेश नहीं मिला. वहीं, रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने कुंडा से और अभय सिंह ने गोसाईगंज से जीत हासिल की है.
इन बाहुबलियों को मिली हार
जौनपुर की मल्हनी सीट से जनता दल (यूनाइटेड) (jdu) के बाहुबली उम्मीदवार धनंजय सिंह को सपा प्रत्याशी लकी यादव ने 17,527 से हराया. पूर्व में सांसद रह चुके धनंजय सिंह का हमेशा से विवादों से नाता रहा है. पूर्व में उन पर हत्या का मामला भी चला था. हालांकि, बाद में हुई जांच में उन्हें क्लीनचिट मिल गई थी.
विजय मिश्रा को जनता ने नकारा
ज्ञानपुर सीट से वर्ष 2002 से लगातार विधायक बनते आ रहे बाहुबली विजय मिश्रा को इस बार करारी हार मिली. वह वर्ष 2017 में निषाद पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर पार्टी के एकमात्र विधायक बने थे. इस बार निषाद पार्टी से टिकट न मिलने के कारण, उन्होंने प्रगतिशील मानव समाज पार्टी का रुख किया और तीसरे स्थान पर रहे. सियासत पर 4 बार से कब्जा जमाने वाले विधायक विजय मिश्रा साल 2002, 2007 और 2012 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर विधान सभा पहुंचे, पर 2017 में समाजवादी पार्टी से टिकट न मिलने पर निषाद पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते. लेकिन सियासत पर 4 बार से कब्जा जमाने वाले विधायक का किला आखिरकार 18वें विधान सभा चुनाव में ढह गया. विधान सभा सीट ज्ञानपुर से वह 5वीं बार सदन तक नहीं पहुंच सके. विजय मिश्रा 5वीं बार जेल से ही चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन जनता ने उन्हें नकार दिया.
यश भद्र सिंह को मिली हार
सुल्तानपुर की इसौली सीट से 2 बार चुनाव लड़ चुके बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बाहुबली उम्मीदवार यश भद्र सिंह मोनू को एक बार फिर पराजय का सामना करना पड़ा. वह इससे पहले भी बसपा के टिकट पर ही चुनाव लड़ चुके हैं. इसी तरह, हत्या के मामले में पूर्व में जेल जा चुके अमनमणि त्रिपाठी को विधान सभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. साल 2017 के नौतनवा सीट से अमनमणि त्रिपाठी ने जीत दर्ज की थी. इस बार उन्होंने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन वह जीत नहीं पाए. अमनमणि, मधुमिता शुक्ला हत्याकांड मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्वांचल के माफिया राजनेताओं में शुमार अमरमणि त्रिपाठी के बेटे हैं.
इन्होंने फिर लहराया जीत का परचम
एक बार फिर बाहुबली नेता और विवादों से घिरे रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने लगातार 8वीं बार कुंडा सीट से जीत का बिगुल बजाया. आमतौर पर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ते वाले राजा भैया ने इस बार चुनाव से पहले जनसत्ता पार्टी लोकतांत्रिक का गठन किया और उसी के टिकट पर चुनाव लड़कर जीते. गौरतलब है की राजा भैया वर्ष 1993 से लगातार प्रतापगढ़ की कुंडा सीट पर विधायक के तौर पर काबिज हैं. इसी लिस्ट में दूसरा नाम आता है, समाजवादी पार्टी के बाहुबली प्रत्याशी अभय सिंह, जो गोसाईगंज सीट से किस्मत आजमा रहे थे और जीत भी दर्ज की. एक बार पहले साल 2012 में भी सपा के ही टिकट पर अभय सिंह ने जीत हासिल की थी. हालांकि, 2017 के विधान सभा चुनाव में उन्हें पराजय का स्वाद चखना पड़ा था.
रिश्तेदारों को भी मिली जीत
अगर बाहुबली राजनेताओं के रिश्तेदारों की बात करें, तो पूर्वांचल के माफिया राजनेता बृजेश सिंह के भतीजे सुशील सैयदराजा सीट से चुनाव जीतने में कामयाब रहे. सुशील जीत हासिल कर चौथी बार विधान सभा पहुंचे. इससे पहले 2007 में बसपा के टिकट पर धानापुर सीट से चुनाव जीते थे, जबकि साल 2012 में वह सकलडीहा सीट से विधायक बने थे.
अब्बास अंसारी ने तय किया विधान सभा का रास्ता
उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेताओ की बात करें, तो सबसे ऊपर मुख्तार अंसारी का नाम आता है, पर इस पर मऊ सदर सीट से कई बार विधायक रहे माफिया राजनेता मुख्तार अंसारी इस बार चुनाव नहीं लड़े, लेकिन इस सीट से उनके बेटे अब्बास अंसारी ने चुनाव जीतकर पहली बार विधान सभा तक का रास्ता तय किया. अब्बास समाजवादी पार्टी के सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के टिकट पर मऊ सदर सीट से विधायक चुने गए. उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी भाजपा के अशोक कुमार सिंह को 38 हजार वोटों से हराया.
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