Supreme Court on Contempt jurisdiction : अदालत की अवमानना एक गंभीर और संवेदनशील विषय है. इसे लेकर समय समय पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और दिशानिर्देश आते रहते हैं. फिलहाल ये मामला इसलिए चर्चा में है क्योंकि उद्धव ठाकरे की एक टिप्पणी को कोर्ट की अवमानना बताते हुए बात अटॉर्नी जनरल तक पहुंची है. वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल का एक साल पूरा होने पर सीजेआई ने अवमानना के मामलों पर बड़ी बात कहते हुए, इस महत्वपूर्ण विषय पर स्पष्ट लकीर खींच दी है.


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राजनीतिक बयान और कोर्ट की अवमानना


सियासत में राजनेता अक्सर कोर्ट के फैसलों पर टिप्पणी करते रहते हैं. जिसे कोर्ट की अवमानना (Contempt of Court) बताया जाता है. इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट में लगातार चर्चा हो रही है. ताजा मामला दशहरे के त्योहार पर हुई रैली का है जिसमें महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने सीजेआई चंद्रचूड की फैमिली का उदाहरण दिया था.


अपने भाषण में ठाकरे ने इस बारे में बात की थी कि किसी व्यक्ति की पहचान इस बात से परिभाषित होती है कि वो किस फैमिली से है. उद्धव ने कहा था- 'हमारे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ साहब अपनी क्षमता के कारण उस पद पर हैं. लेकिन उनके पिता भी सीजेआई थे और वह मजबूत और दृढ़ और अडिग थे. हर एक को ये तय करना होगा कि क्या वो ऐसे व्यक्ति के रूप में जाना जाएगा जो कभी किसी के सामने नहीं झुका या ऐसे व्यक्ति के रूप में पहचाना जाएगा...'


इस टिप्पणी को लेकर एक पत्रकार ने ठाकरे के खिलाफ कोर्ट की अवमानना ​​​​की कार्यवाही शुरू करने की अनुमति मांगने के लिए अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणी से संपर्क किया है. एजी को संबोधित लेटर में लिखा है कि ठाकरे ने निंदनीय, अवांछित और अपमानजनक टिप्पणियां की हैं, जिसका उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट की गरिमा/महिमा को कम करना और CJI के ऑफिस को बदनाम करना है.


अदालत की अवमानना को लेकर सीजेआई का बड़ा बयान


इस मामले से इतर सीजेआई चंद्रचूड़ ने हर बार की तरह एक बड़ी लकीर खींची है. एक जज के तौर पर 23 साल और चीफ जस्टिस के पद पर एक साल पूरा होने पर CJI ने कहा कि अदालतों का काम यह सुनिश्चित करना है कि राजनीति अपनी सीमाओं में ही रहे. उन्होंने अवमानना के नियम की बात समझाते हुए कहा, 'अदालत की अवमानना का नियम किसी जज को आलोचना से बचाने के लिए नहीं है बल्कि उसका मकसद कोर्ट की न्याय प्रक्रिया में किसी व्यक्ति के दखल को रोकना है. अदालतों का काम यह सुनिश्चित करना है कि राजनीति अपनी सीमाओं में रहे.'


उन्होंने अदालत की अवमानना के कानून की व्याख्या करते हुए कहा कि यदि कोई व्यक्ति कोर्ट के फैसले का अपमान करता है या उसके बारे में गलत बात करता है तो यह अवमानना का मसला होगा. एक इंटरव्यू में उन्होंने साफ किया कि अगर किसी जज के खिलाफ कोई अपनी राय रखता है तो उस मामले में अदालत की अवमानना का केस नहीं बनता.


उन्होंने कहा, 'मैं पूरी स्पष्टता के साथ यह मानता हूं कि अवमानना के नियम का इस्तेमाल किसी जज को आलोचना से बचाने के लिए नहीं किया जा सकता. अदालतों और जजों को अपनी प्रतिष्ठा काम और फैसलों से बनानी चाहिए. यह अवमानना के नियम से स्थापित नहीं हो सकती.'


भारत में बीते कुछ सालों में अदालती फैसलों खासकर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को लेकर सोशल मीडिया में अशोभनीय टिप्पणियां करने का चलन बढ़ा हैं. उन सभी मामलों की गूंज भी सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची है. इसके बावजूद सीजेआई चंद्रचूड इस संवेदनशील विषय को लेकर हमेशा सजग रहते हुए टिप्पणी करते हैं. 


सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई में की थी महत्वपूर्ण टिप्पणी


इसी साल जुलाई में एक मेडिकल लाइसेंस को निलंबित करने से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की थी. कोर्ट ने कहा था - 'इस शक्ति का प्रयोग करते समय न्यायालयों को अत्यधिक संवेदनशील नहीं होना चाहिए या भावनाओं में नहीं बहना चाहिए, बल्कि विवेकपूर्ण तरीके से कार्य करना चाहिए. अवमानना कार्यवाही में दंड के तौर पर डॉक्टर का लाइसेंस निलंबित नहीं किया जा सकता. क्योंकि एक मेडिकल प्रैक्टिशनर पेशेवर कदाचार के लिए भी अदालत की अवमानना का दोषी हो सकता है, लेकिन ये संबंधित व्यक्ति के अवमाननापूर्ण आचरण की गंभीरता या प्रकृति पर निर्भर करेगा.'


शीर्ष अदालत तब कलकत्ता हाईकोर्ट की एक बेंच के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने सिंगल बेंच के विभिन्न आदेशों को बरकरार रखा था. उस बेंच ने अनधिकृत निर्माण को हटाने में विफलता के लिए अपीलकर्ता के खिलाफ शुरू की गई अवमानना कार्यवाही में दंड के रूप में अपीलकर्ता का मेडिकल लाइसेंस निलंबित कर दिया था.


दिल्ली हाईकोर्ट में अवमानना की कार्यवाही का मामला


इससे इतर 7 नवंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने जिला अदालत के एक जज के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही का अनुरोध करने वाले वादी को अवमानना कानून की प्रक्रिया का ‘दुरुपयोग करने और उसे गलत तरीके से पेश’ करने को लेकर चेतावनी देते हुए याचिका खारिज कर दी थी. हाईकोर्ट ने इसे अदालतों की ‘प्रभावशीलता और ईमानदारी पर हमला’ करार देते हुए कहा, 'जिला अदालत के जज के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का ये आचरण पूरी तरह गुमराह करने वाला है और इसे रोका जाना चाहिए.'


सुनवाई के जौरान जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा, 'भारत का संविधान 1950 और देश का कानूनी ढांचा किसी अदालत द्वारा लिए फैसले को चुनौती देने में उचित सुरक्षा मानक प्रदान करता है. इसका सहारा लेकर व्यक्तिगत क्षमता में किसी न्यायाधीश के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही करना अदालतों की प्रभावशीलता और ईमानदारी पर हमला है. किसी जज को अवमानना का दोषी तब ठहराया जा सकता है जब ऐसी सामग्री हो जो यह दिखाती हो कि न्यायिक प्रक्रिया का घोर और जानबूझकर दुरुपयोग किया गया हो.’