जब राजनीति के `दादा` माने जाने वाले प्रणब मुखर्जी ने तोड़ा था कांग्रेस से नाता
बीमारी की वजह से देश के 13वें राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी का सोमवार को निधन हो गया. उन्हें फेफड़ों में संक्रमण की वजह से 10 अगस्त को दिल्ली के आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
नई दिल्ली: बीमारी की वजह से देश के 13वें राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी का सोमवार को निधन हो गया. उन्हें फेफड़ों में संक्रमण की वजह से 10 अगस्त को दिल्ली के आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां पर उनकी हालत लगातार बिगड़ती चली गई और वे कोमा में चले गए.
पश्चिम बंगाल के ब्राहमण परिवार में हुआ था प्रणब मुखर्जी का जन्म
प्रणब मुखर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में मिराती गाँव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनकी पिता का नाम कामदा किंकर मुखर्जी और माता का नाम राजलक्ष्मी मुखर्जी था. उनके पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे. जिन्होंने ब्रिटिश शासन की खिलाफत करने पर 10 वर्षो से अधिक जेल की सजा काटी थी. उनका विवाह शुभ्रा मुखर्जी के साथ हुआ था. उनके दो बेटे और एक बेटी हैं. उन्हें पढ़ने, बागवानी करने और संगीत सुनने का शौक था.
बीरभूम और कोलकाता से पाई शिक्षा
प्रणब मुखर्जी ने वीरभूम के सूरी विद्यासागर कॉलेज में शिक्षा पाई. इसके बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के साथ साथ कानून की डिग्री हासिल की. वे एक वकील और कॉलेज प्राध्यापक भी रहे. वे बांग्ला प्रकाशन संस्थान देशेर डाक (मातृभूमि की पुकार) में भी काम कर चुके थे. प्रणब मुखर्जी बंगीय साहित्य परिषद के ट्रस्टी एवं अखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे.
करीब 5 दशक लंबा रहा राजनीतिक करियर
उनका राजनीतिक करियर करीब पाँच दशक लंबा रहा. वे 1969 में कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य बने. इसके बाद 1975, 1981, 1993 और 1999 में फिर से चुने गये. वे 1973 में केंद्रीय मंत्रिमंडल में उप मन्त्री बने.
कांग्रेस में उपेक्षा से खिन्न होकर बना लिया था अपना दल
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें राजीव गांधी के समर्थकों ने मन्त्रिमंडल में शामिल नहीं होने दिया. कुछ समय के लिए उन्हें कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया. उस दौरान उन्होंने राजनीतिक दल राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया. लेकिन वर्ष 1989 में राजीव गांधी के साथ समझौता होने के बाद उन्होंने अपने दल का कांग्रेस पार्टी में विलय कर दिया.
नरसिंह राव ने पहचाना उनका हुनर
उनका राजनीतिक कैरियर उस समय पुनर्जीवित हुआ. जब पी.वी. नरसिंह राव ने पहले उन्हें योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में और बाद में कैबिनेट मन्त्री के तौर पर नियुक्त किया. उन्होंने राव मंत्रिमंडल में 1995 से 1996 तक पहली बार विदेश मन्त्री के रूप में कार्य किया. वर्ष 1997 में उन्हें उत्कृष्ट सांसद चुना गया.
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मनमोहन सिंह के बीमार होने पर संभाला देश का दायित्व
वे कांग्रेस संसदीय दल और कांग्रेस विधायक दल के नेता रह चुके हैं. लोकसभा चुनावों से पहले जब प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने अपनी बाई-पास सर्जरी कराई. तब प्रणब मुखर्जी ने विदेश मन्त्रालय, वित्त मन्त्रालय समेत मन्त्रिमण्डल के संचालन में अहम भूमिका निभाई. वे वर्ष 1991 से 1996 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे.
मोदी सरकार में 'भारत रत्न' बने प्रणब दा
प्रणब मुखर्जी की छवि पाक-साफ रही. वर्ष 2007 में उन्हें भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा गया. मोदी सरकार ने राजनीतिक विचारधारा को अलग रखकर प्रणव मुखर्जी को 26 जनवरी 2019 को भारत रत्न से सम्मानित किया.
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