सवर्णों को आरक्षण, सुप्रीम कोर्ट में बढ़ेगी उलझन
मोदी सरकार के फैसले के अनुसार सवर्णों को आर्थिक आधार पर दस फीसदी आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन किया जायेगा. देश में अनुसूचित जाति (एससी) अनुसूचित जनजाति (एसटी), ओबीसी (पिछड़ा वर्ग) और दिव्यांग वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था है.
सरकार के खाली पदों पर भर्ती नहीं हो रही और निजी क्षेत्र में नौकरी के संकट को दूर करने के बजाए आरक्षण की राजनीति से न्यू इंडिया कैसे बनेगा? कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अखिल भारतीय न्यायिक सेवा में आरक्षण की बात से चुनावी एजेंडा शुरू कर दिया था. अब मोदी सरकार के फैसले के अनुसार सवर्णों को आर्थिक आधार पर दस फीसदी आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन किया जायेगा. देश में अनुसूचित जाति (एससी) अनुसूचित जनजाति (एसटी), ओबीसी (पिछड़ा वर्ग) और दिव्यांग वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था है. गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के लिए संविधान के अनुच्छेद-15,16 समेत अनुसूची-9 में संशोधन करना पड़ सकता है.
इन्दिरा साहनी मामले में 1992 में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों के फैसले के बाद आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी कर दिया गया था, जिस पर अब बदलाव होना मुश्किल है. राज्यों के कानून को हाईकोर्ट ने पहले भी नकारा- गुजरात समेत अनेक राज्यों ने गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के लिए कानून बनाया था, जिसे हाईकोर्टों ने रद्द कर दिया और इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट के सम्मुख अपील भी हुई. सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एमएच कानिया की अध्यक्षता में नौ जजों की बेंच ने 1992 में आरक्षण के सभी पहलुओं पर विस्तार से फैसला दिया था.
सामाजिक और राजनीतिक न्याय के मद्देनजर कमजोर वर्गां को आरक्षण देने को सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दी. सरकारी नौकरियों में मेरिट नजरअंदाज नहीं हो, इसलिए 50 फीसदी की सीमा भी तय कर दी गई थी. राजस्थान, हरियाणा और महाराष्ट्र में जाट और मराठों को आरक्षण का मामला न्यायिक हस्तक्षेप की वजह से अमल में नहीं आ सका. गरीब सवर्णों को आरक्षण के लिए मोदी सरकार का फैसला भी आगे चलकर सुप्रीम कोर्ट में अटक सकता है.
राम मन्दिर और आरक्षण पर सरकार का सुप्रीम कोर्ट से विरोधाभास
नए साल में प्रधानमंत्री मोदी ने एएनआई को दिये इंटरव्यू में कहा कि सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद ही राम मन्दिर पर अध्यादेश के लिए सरकार द्वारा निर्णय लिया जायेगा. दूसरी तरफ गरीब सवर्णों को आरक्षण के बारे में सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों के फैसले की अवहेलना की जा रही है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तीन तलाक जैसे सिविल मामले को आपराधिक बनाये जाने के लिए अध्यादेश जारी किया गया, वहीं सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मंत्रियों द्वारा ही सवाल उठाये जा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के सख्त चीफ जस्टिस रंजन गोगोई आरक्षण जैसे मामलों पर सख्त तेवर अख्तियार कर सकते हैं, जिससे सरकार को नफे की बजाए राजनीतिक नुकसान भी हो सकता है.
गैर-हिन्दुओं को आरक्षण से संघ परिवार की मुसीबत बढ़ेगी
कैबिनेट के निर्णय के अनुसार सवर्ण वर्ग में आरक्षण लेने के लिए आठ लाख रुपये सालाना से कम की आमदनी होनी चाहिए. गांवों में 5 एकड़ जमीन, शहरों में एक हजार फीट का प्लॉट और गैर-अधिसूचित इलाके में 200 गज का प्लॉट रखने वाले लोग गरीब नहीं माने जायेंगे. जाति व्यवस्था हिन्दू धर्म का हिस्सा है और इसीलिए अनुसूचित जाति और ओबीसी के तहत मुस्लिम और ईसाईयों को आरक्षण देने का विरोध होता है. आर्थिक आधार पर आरक्षण से गैर-हिन्दुओं को शामिल नहीं करने से संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लघंन होगा, जबकि गैर-हिन्दुओं को आरक्षण का लाभ के लिए संघ परिवार सहमत नहीं होगा.
चुनावों के पहले फैसला लागू होने पर अदालत की चुनौती
संविधान में संशोधन के लिए सरकार द्वारा संसद के शीतकालीन सत्र की अवधि को बढ़ाया जा सकता है. तीन तलाक के बिल को संसदीय समिति को भेजने की मांग करने वाले विरोधी दल आरक्षण के मामले पर जल्द सहमति अब कैसे देंगे? भाजपा के राममन्दिर और कमण्डल की राजनीति को तोड़ने के लिए वीपी सिंह ने मण्डल और आरक्षण का ब्रहास्त्र चलाया था. 25 साल बाद भाजपा द्वारा राममन्दिर के मुद्दे को दरकिनार कर आरक्षण के मुद्दे को बढ़ाने से जातिवाद के जहर में बढोत्तरी, क्या संघ परिवार को स्वीकार्य होगी?