नई दिल्ली : 'जितना कम सामान रहेगा, उतना सफ़र आसान रहेगा, जितनी भारी गठरी होगी, उतना तू हैरान रहेगा' जी हां, गोपालदास नीरज ने ये शब्द बस अपनी रचनाओं में पिरोए ही नहीं बल्कि उन्हें जीवन में उतारा भी. और इस दुनिया से जाते-जाते दिखा दिया कि उनके शरीर पर समाज का भी अधिकार है बराबर. नीरज ने अपने अंगदान करके अपनी कही हुई बातों को साबित भी कर दिया और जीवन के अंतिम सफर को आसान कर दिया.


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अपने गीतों से सभी को मंत्रमुग्ध करने वाले मशहूर गीतकार गोपालदास नीरज ने गुरुवार की शाम दिल्ली में एम्स अस्पताल में अंतिम सांस लेकर दुनिया को अलविदा कह दिया. दुनिया को रुखस्त करते हुए नीरज ऐसा काम कर गए जिन्हें गीतों के अलावा भी हमेशा याद किया जाएगा. नीरज ने अपनी मृत्यु से पहले अपने अंगदान करने की घोषणा कर दी थी. उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार एम्स के डॉक्टर शुक्रवार की सुबह अंगदान की क्रिया पूरी करेंगे. इसके बाद उनका पार्थिव शरीर अलीगढ़ ले जाया जाएगा, जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. 


नीरज के पुत्र शशांक प्रभाकर ने बताया कि आगरा में प्रारंभिक उपचार के बाद उन्हें कल एम्स में भर्ती कराया गया था लेकिन डॉक्टरों के अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें नहीं बचाया जा सका. उन्होंने बताया कि उनकी पार्थिव देह को पहले आगरा में लोगों के अंतिम दर्शनार्थ रखा जाएगा और उसके बाद अलीगढ़ ले जाया जाएगा जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.


प्रसिद्ध गीतकार-कवि गोपालदास नीरज का निधन, दिल्ली के AIIMS में ली अंतिम सांस


नीरज के चले जाने की खबर पर हिंदी साहित्य जगत स्तब्ध है. महफिलों और मंचों की शान रहे गोपालदास नीरज ने कई फिल्मों के लिए अनमोल गीत दिए. गीतों की दुनिया में नीरज को अपना गुरु मानने वाले प्रसिद्ध गीतकार कुमार विश्वास ने कहा कि आज वह जिस मुकाम पर हैं उसमें नीरज जी का बड़ा योगदान है. उन्होंने बताया कि नीरज को कभी शोहरत की हसरत नहीं रही थी. उनकी यहीं ख्वाहिश की थी वे कोई नगमा गुनगुनाते हुए इस दुनिया से जाएं.


'स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे,
कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे.'


नीरज ने एक बार किसी साक्षात्कार में कहा था, ‘अगर दुनिया से रुखसती के वक्त आपके गीत और कविताएं लोगों की जबान और दिल में हों तो यही आपकी सबसे बड़ी पहचान होगी. इसकी ख्वाहिश हर फनकार को होती है.’ 


गोपाल दास नीरज के लिखे गीत बेहद लोकप्रिय रहे. हिन्दी फिल्मों में भी उनके गीतों ने खूब धूम मचायी. 1970 के दशक में लगातार तीन वर्षों तक उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार प्रदान किया गया. उनके पुरस्कृत गीत हैं- काल का पहिया घूमे रे भइया! (वर्ष 1970, फिल्म चंदा और बिजली), बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं (वर्ष 1971, फ़िल्म पहचान), ए भाई! ज़रा देख के चलो (वर्ष 1972, फिल्म मेरा नाम जोकर). 


उनकी प्रमुख कृतियों में 'दर्द दिया है' (1956), 'आसावरी' (1963), 'मुक्तकी' (1958), 'कारवां गुजर गया' 1964, 'लिख-लिख भेजत पाती' (पत्र संकलन), पन्त-कला, काव्य और दर्शन (आलोचना) शामिल हैं.