नई दिल्ली : विपक्ष के भारी विरोध और वाकआउट के बीच सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पेश किया। उधर, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भूमि अधिग्रहण विधेयक पर किसानों के सुझाव के लिए आठ सदस्यीय समिति का गठन किया है।


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केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बीरेन्द्र सिंह ने जैसे ही ‘भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्‍यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार संशोधन विधेयक 2015’ को पेश करने की अनुमति मांगी पूरा विपक्ष अपने स्थानों पर खड़े होकर इसका विरोध करने लगा। कांग्रेस, सपा, तृणमूल कांग्रेस, राजद, आम आदमी पार्टी सहित कई विपक्षी दलों के सदस्य अध्यक्ष के आसन के निकट आ गये और विधेयक को पेश किये जाने का विरोध करने लगे। संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने विपक्षी सदस्यों को राजी कराने का प्रयास करते हुए कहा कि भाजपा सरकार पूरी तरह से किसानों के हित में है और वह इस विधेयक के प्रावधानों पर चर्चा के लिए तैयार है। लेकिन विपक्षी सदस्यों पर इसका असर नहीं हुआ।


कांग्रेस के नेता मल्लिकाजर्जुन खड़गे ने राष्ट्रपति द्वारा पिछले दिनों जारी किये गये अध्यादेश का स्थान लेने के लिए लाये गये इस विधेयक को किसान विरोधी और गरीब विरोधी बताया। उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने सभी दलों से सलाह मशविरा करके विधेयक लाती तो वह बात और होती लेकिन यह ‘बुलडोज’ करके लाया गया है। तृणमूल कांग्रेस के स्वागत राय ने इसे किसान विरोधी करार देते हुए कहा कि इससे किसान खस्ताहाल हो जायेंगे। उन्होंने विधेयक को पेश किये जाने का पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि पूरे देश में इसका विरोध चल रहा है।


बीजू जनता दल के भ्रतृहरि महताब ने कहा कि कहा कि इससे देश का बड़ा तबका प्रभावित होगा। राजग सरकार को समर्थन दे रहे स्वाभिमानी शतकरी संगठन के राजू शेट्टी ने भी इसका विरोध किया। हंगामे के बीच लोकसभा अध्यक्ष ने ध्वनिमत से विधेयक पेश किये जाने की अनुमति दी और मंत्री ने विधेयक पेश किया। इसके विरोध में विपक्षी दलों ने सदन से वाकआउट किया।


संसदीय कार्य मंत्री ने विपक्षी दलों पर लोकतंत्र का अपमान करने का आरोप लगाया और कहा कि अल्पमत बहुमत को डिकटेट नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि 32 राज्य सरकारों एवं केन्द्र शासित क्षेत्रों ने केन्द्र को ज्ञापन देकर कानून में संशोधन की मांग की थी और कहा था कि इस कानून के चलते विकास कार्य असंभव हो रहा है। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार किसानों के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। उन्होंने कहा कि हम सभी बिन्दुओं पर चर्चा के लिए तैयार हैं। यह विधेयक इस संबंध में पिछले दिनों राष्ट्रपति द्वारा जारी किये गये अध्यादेश का स्थान लेने के लिए लाया गया है। मंत्री ने इस संबंध में अध्यादेश प्रख्यापित कर तत्काल विधान बनाये जाने के कारणों को दर्शाने वाला एक व्याख्यात्मक विवरण भी पेश किया।


उधर, भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को किसान विरोधी करार देते हुए आज एकजुट विपक्ष ने राज्यसभा में सरकार पर चौतरफा हमला किया हालांकि सरकार ने संकेत दिया कि इस मुद्दे का समाधान ढूंढने के लिए सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बातचीत की जा सकती है। उच्च सदन में आज कांग्रेस, वाम, जदयू, सपा, तृणमूल कांग्रेस सहित विभिन्न दलों के नेताओं ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को किसानों और कृषि क्षेत्र के हितों को तबाह करने वाला तथा कापरेरेट समूहों के हितों वाला करार देते हुए इसके विवादास्पद प्रावधानों को वापस लेने की मांग की। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा कि वह इस मुद्दे पर विभिन्न पार्टियों के साथ बातचीत के संबंध में दिये गये सुझाव से संबद्ध मंत्री को अवगत करायेंगे।


सदन के नेता के इस आश्वासन के बाद सदन में सामान्य ढंग से कामकाज होने लगा क्योंकि इससे पहले करीब एक घंटे इस मुद्दे पर दोनों पक्षों की ओर से तीखी बहस हुई। जेटली ने यह बात सपा नेता रामगोपाल यादव के इस सुझाव के जवाब में कही कि सरकार को भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के मुद्दे पर गतिरोध समाप्त करने के लिए सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से बातचीत करनी चाहिए ताकि किसानों के हितों का संरक्षण भी हो जाये और विकास गतिविधियों को भी जारी रखा जा सके। जदयू के केसी त्यागी ने यादव के सुझाव का समर्थन करते हुए कहा कि सभी दलों के नेताओं की बैठक बुलानी चाहिए।



इस मुद्दे को अन्य नेताओं द्वारा उठाये जाने की मांग किये जाने पर उपसभापति पी. जे. कुरियन ने कहा कि जब सदन के नेता जेटली यह कह चुके हैं कि सरकार इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बातचीत करेगी तो फिर इस पर सदन में अभी चर्चा की जरूरत नहीं है। इससे पहले आज बैठक शुरू होने पर कांग्रेस के उप नेता आनंद शर्मा ने यह मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने इस पर चर्चा के लिए नियम 267 के तहत कार्य स्थगन प्रस्ताव दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने मौजूदा कानून में किसी से बातचीत किये बिना संशोधन करने के लिए अध्यादेश लाने का मनमाने ढंग से काम किया है जिससे किसानों एवं गरीबों के हितों को भारी नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने सरकार पर संसद की अनदेखी करने का आरोप लगाया। शर्मा ने कहा कि पूर्ववर्ती संप्रग सरकार ने भूमि अधिग्रहण विधेयक बनाते समय तत्कालीन विपक्षी दल भाजपा सहित सभी दलों एवं किसान संगठनों से व्यापक बातचीत के आधार पर सहमति बनाई थी। उन्होंने कहा कि सरकार को विधेयक लाने से पहले इस मुद्दे पर सदन में व्यापक चर्चा करनी चाहिए और तब तक इन अध्यादेशों के अमल पर रोक लगा देनी चाहिए।


संसद की अनदेखी के शर्मा के आरोपों को खारिज करते हुए जेटली ने कहा कि किसी भी अध्यादेश को कानून का रूप देने के लिए संसद के दोनों सदनों से उसे पारित कराना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि संसद की अनदेखी कर कोई कानून नहीं पारित किया जा सकता। कांग्रेस सहित विभिन्न पूर्ववर्ती सरकारों पर हमला बोलते हुए जेटली ने कहा कि अब तक देश में 636 अध्यादेश जारी किए जा चुके हैं जिनमें से 80 प्रतिशत अध्यादेश कांग्रेस की सरकारों के दौरान जारी किए गए। उन्होंने कहा कि प्रथम प्रधानमंत्री के कार्यकाल में 70 अध्यादेश लाए गए थे जबकि वाम समर्थित संयुक्त मोर्चा के 18 महीनों के कार्यकाल में 77 अध्यादेश लाए गए थे। उन्होंने कहा कि यह विधेयक लोकसभा में पेश किए जाने के लिए सूचीबद्ध है और वहां से पारित होने के बाद यह उच्च सदन में आएगा। इसलिए अभी इस विधेयक पर चर्चा करने का कोई औचित्य नहीं है।


जेटली ने कहा कि अध्यादेश के जरिए सरकार ने किसानों को उन 13 क्षेत्रों में भी भूमि अधिग्रहण के लिए चार गुना मुआवजे का प्रावधान किया है जिन्हें पूर्ववर्ती सरकार ने अलग रखा था। अध्यादेश के प्रावधानों का बचाव करते हुए जेटली ने विपक्ष के नेताओं को नसीहत दी कि वे अध्यादेश का फिर से पढें क्योंकि इसके प्रावधानों के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में ढांचागत विकास होगा, ग्रामीणों को रोजगार मिलेगा तथा सिंचाई सुविधाओं का विकास होगा। उन्होंने कहा कि ग्रामीण आधारभूत ढांचा गरीबों के लिए आवास योजना तथा औद्योगिक कोरिडोर सहित पांच मकसदों के लिए भूमि अधिग्रहण करने के मामले में सामाजिक प्रभाव सर्वेक्षण के प्रावधान को हटाने से ग्रामीण क्षेत्र को लाभ मिलेगा। पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि जेटली ने सदन को यह कहकर ‘गुमराह’ किया है कि 13 अन्य कानूनों के तहत किसानों को मिलने वाला मुआवजा चार गुना कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने ऐसा कर किसी के साथ कोई एहसान नहीं किया है क्योंकि 2013 में पारित कानून में इसके लिए एक अलग से अनुसूची है जिसके तहत यह काम एक साल के अंदर किया जाना था।


तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने जेटली पर चुनिंदा सूचना देने का आरोप लगाया और कहा कि सरकार अपने नौ महीने के कार्यकाल में विधेयक से ज्यादा अध्यादेश लेकर आई है। उन्होंने याद किया कि 2013 में भी जब यह विधेयक पारित हुआ था, उस समय भी उनकी पार्टी ने इसका विरोध किया था। जदयू के शरद यादव ने कहा कि सरकार अध्यादेश के जरिए संसदीय समीक्षा को कुचलने का प्रयास कर रही है क्योंकि उनके पास पूर्ण बहुमत है। लेकिन सरकार के प्रयास को सफल नहीं होने दिया जाएगा बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि मौजूदा अध्यादेश किसानों के हित में नहीं है और यह केवल उद्योगपतियों के हित में है।


दूसरी ओर, विपक्ष और विभिन्न संगठनों की जबर्दस्त घेराबंदी के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को भाजपा सांसदों से कहा कि उन्हें भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को लेकर बचाव की मुद्रा में आने की जरूरत नहीं है बल्कि उन्हें इस मुद्दे पर विपक्ष द्वारा बनाये गए ‘मिथक’ की हवा निकालनी चाहिए।