Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के जमीन अधिग्रहण करने की शर्त तय कर दी है. गुरुवार को अदालत ने कहा कि सभी अधिग्रहण अनुच्छेद 300A के पैमाने पर खरे उतरने चाहिए. अनुच्छेद 300A के तहत, लोगों को संपत्ति का संवैधानिक अधिकार दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भूमि का अधिग्रहण केवल सार्वजनिक उद्देश्य से किया जा सकता है. इसके लिए कानून में बताई गई प्रक्रिया का पालन होना चाहिए. अदालत ने कहा क‍ि वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था में, संपत्ति का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है और इसकी व्याख्या मानवीय अधिकार के रूप में भी की  गई है. जस्टिस पमिदिघनतम श्री नरसिम्हा और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने कहा कि वैध अधिग्रहण के लिए भूमि मालिकों के सात मूल प्रक्रियागत अधिकारों का पालन होना ही चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना कानूनी प्रक्रिया पूरी किए किसी से संपत्ति का अधिकार नहीं छीना जा सकता.


भूमि अधिग्रहण: सुप्रीम कोर्ट ने गिनाए मालिकों के सात अधिकार


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जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि अनुच्छेद 300ए भूमि मालिकों को सात अधिकार देता है. उसमें राज्यों के कर्तव्य भी बताए गए हैं. ये इस प्रकार हैं:


1. नोटिस का अधिकार: राज्य को भूमि मालिक को यह सूचित करना होगा कि वह उसकी संपत्ति को अधिग्रहीत करने का इरादा रखता है.


2. सुनवाई का अधिकार: अधिग्रहण के खिलाफ आई आपत्तियों को सुनना राज्य का कर्तव्य है.


3. तर्कसंगत निर्णय का अधिकार: भूमि अधिग्रहण पर अपने फैसले की जानकारी देना राज्य का कर्तव्य है.


4. अधिग्रहण केवल सार्वजनिक उद्देश्य के लिए: राज्य को यह दिखाना होगा कि भूमि का अधिग्रहण सार्वजनिक उद्देश्य के लिए है.


5. उचित मुआवजे का अधिकार: जिसकी भूमि ली जा रही है, उसका पुनर्वास करना राज्य का कर्तव्य है.


6. कुशल आचरण का अधिकार: अधिग्रहण की प्रक्रिया को कुशलतापूर्वक और निर्धारित समयसीमा के भीतर पूरा करना राज्य का कर्तव्य है.


7. निष्कर्ष का अधिकार: अधिग्रहण की कार्यवाही का अंतिम निष्‍कर्ष निकलना चाहिए.


अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?


सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, 'अनुच्छेद 300ए की व्याख्या करने वाले कई फैसलों में, इस अदालत ने कहा है कि किसी व्यक्ति को संपत्ति के अधिकार से केवल तभी वंचित किया जा सकता है जब कानूनी प्रक्रिया का पालन हुआ हो. राज्य को उन तमाम प्रक्रियाओं का अनिवार्य रूप से पालन करना होगा, तभी अनुच्छेद 300ए के तहत अधिग्रहण वैध होगा. इसलिए, संपत्ति के वैध अधिग्रहण का सवाल उस अधिग्रहण की कानूनी प्रक्रिया और राज्य द्वारा उस प्रक्रिया के पालन पर निर्भर करता है. प्रक्रियागत न्याय अनुच्छेद 300 का एक खास निर्देश है.' 


देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि तार्किक और सही प्रक्रिया से प्रभावित व्यक्ति को अपना निजी हित किनारे रखकर सार्वजनिक उद्देश्य को स्वीकारने में मदद मिलती है. कोर्ट ने कहा, 'ये सात कदम भले ही प्रक्रियाएं हों, लेकिन वे अनुच्छेद 300ए के तहत संपत्ति के अधिकार का असली कंटेंट हैं. इन प्रक्रियाओं का पालन न करना उस अधिकार का उल्लंघन होगा. बिना प्रक्रिया पूरी किए संपत्ति का अधिग्रहण कानून के दायरे से बाहर होगा.'


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ये टिप्पणियां करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता नगर निगम के एक निजी भूमि का अधिग्रहण करने के फैसले को रद्द कर दिया. नगर निगम वहां पर एक पब्लिक पार्क बनाना चाहता था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून नगर निगम को जमीन अधिग्रहण की अनुमति नहीं देता और यह अधिग्रहण गैरकानूनी था.