Supreme Court On Advocates: अगर वकील उम्मीद के मुताबिक सेवा न दे तो आप उसके खिलाफ कंज्यूमर कोर्ट नहीं जा सकते. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वकीलों को कंज्यूमर प्रोटेक्शन (CP) एक्ट के दायरे में नहीं रखा जा सकता. अदालत ने कहा कि वकालत का पेशा बाकी सब से अलग है क्योंकि यह जस्टिस डिलीवरी सिस्टम का हिस्सा है. जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के 1995 वाले फैसले से असहमति जताई. 1995 में SC ने मेडिकल पेशे को कंज्यूमर प्रोटेक्शन कानून के दायरे में ला दिया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उस फैसले को बड़ी बेंच के नजर डालने की जरूरत है. कोर्ट ने कहा कि कंज्यूमर लॉ के दायरे में पेशों को लाने की मंशा नहीं थी. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वकील न्यायिक व्यवस्था का बड़ा अहम हिस्सा हैं. SC के मुताबिक, उनका यह कर्तव्य न केवल मुवक्किल के प्रति बल्कि अदालत के साथ-साथ विपक्षी पक्ष के प्रति भी है. वकीलों से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 5 बड़ी बातें पढ़िए.
- सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मंगलवार को कहा, 'हमारी राय है कि 2019 में फिर अधिनियमित कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट अधिनियम, 1986 का उद्देश्य केवल उपभोक्ताओं को अनुचित व्यापार प्रथाओं और अनैतिक व्यापार प्रथाओं से सुरक्षा प्रदान करना था. रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है जिससे लगता हो कि विधायिका का इरादा कभी भी व्यवसायों या पेशेवरों को अधिनियम के दायरे में शामिल करने का था.'
- सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया कि पेशेवरों को कथित कदाचार या आपराधिक कृत्यों के लिए उत्तरदायी जरूर बनाया जाना चाहिए. लेकिन ऐसा नागरिक और आपराधिक कानून के तहत हो, उपभोक्ता कानून के तहत नहीं.
- SC ने कहा कि 'मजबूत और निष्पक्ष न्यायपालिका लोकतंत्र के तीन स्तंभों में से एक है, उसे बनाने में उनकी(वकीलों) सेवाओं की तुलना अन्य पेशेवरों की सेवाओं से नहीं की जा सकती है. इसलिए, पेशेवरों के रूप में अधिवक्ताओं की भूमिका, स्थिति और कर्तव्यों के आधार पर, हमारी राय है कि कानूनी पेशा अद्वितीय है यानी इसकी प्रकृति अद्वितीय है और इसकी तुलना किसी अन्य पेशे से नहीं की जा सकती है.'
- अदालत ने कहा कि एक वकील जिस तरह से अपनी सेवाएं प्रदान करता है, उस पर ग्राहक का काफी हद तक प्रत्यक्ष नियंत्रण रहता है. कोर्ट ने कहा कि हमारी राय है कि एक वकील द्वारा ली गई सेवाएं 'निजी सेवा' के एक अनुबंध के समान होंगी. इसलिए इसे सीपी अधिनियम, 2019 की धारा 2(42) में निहित सेवा की परिभाषा से बाहर रखा जाएगा.
- कोर्ट ने कहा कि सीपी अधिनियम के तहत, कानूनी पेशे की प्रैक्टिस करने वाले एडवोकेट्स के खिलाफ सेवा में कमी का आरोप लगाने वाली शिकायत सुनवाई योग्य नहीं होगी.