Gram Nyayalayas Pending court cases in India: भारत की अदालतें करोड़ों पेंडिंग मामलों के बोझ तले दबी हैं. लोगों को जल्द से जल्द इंसाफ दिलाने और न्यायपालिका को पेंडिंग के बोझ से बाहर निकालने के नाम पर सदियों पुराने अंग्रेजों के बनाए कानून बदल चुके हैं. इससे कितना बदलाव आएगा इसका जवाब जानने के लिए सिस्टम को कुछ वक्त देना पड़ेगा. इसके इतर बात सुधारवादी कवायद के लिए किए गए उस फैसले की जो अमल में आ जाता तो शायद आज ज्युडिशियरी सिस्टम की सूरत कुछ अलग होती.


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कहा जाता है कि 'न्याय देर से होता है तो वो न्याय/इंसाफ नहीं होता (justice delayed is justice denied). इस बात को अवाइड करने के लिए करीब डेढ़ दशक पहले एक फैसला हुआ था. जिसके तहत माना जा रहा था कि ट्रायल कोर्ट का बोझ कुछ कम किया जा सकेगा. लोगों को उनके घर के पास ही न्याय उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार ने 2008 में ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 पारित किया था. उसके नतीजों की जानकारी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को दी गई है.



सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला - कोशिश अच्छी लेकिन नतीजा...


ग्रामीण लोगों का अपने दरवाजे पर सस्ता न्याय पाने का सपना, एक दिवास्वप्न ही बना हुआ है. निचली अदालतों में लंबित 4.5 करोड़ से अधिक मामले भी अदालती फाइलों की धूल फांक रहे हैं. क्योंकि राज्य सरकारों ने भी इस विषय को ज्यादा तवज्जो नहीं दी. संसद ने ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लिए कानून बनाया था. लेकिन 16 साल बाद भी हालत नहीं बदले. यानी नतीजा सिफर और वही ढाक के तीन पात रह गया. 


कैसे मिलेगा न्याय? 6000 ग्रामीण अदालतों की जरूरत, कागजों पर 481 लेकिन एक्टिव केवल 309


सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई एक याचिका में सभी केंद्र और राज्य सरकारों को ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लिए कदम उठाने के निर्देश देने की मांग की गई थी. इसमें कहा गया था कि ग्राम न्यायालय के लिए उच्च न्यायालय की सलाह पर राज्य सरकार न्यायाधिकारी नियुक्त करेगी. टीओआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक NGO 'नेशनल फेडरेशन ऑफ सोसाइटीज फॉर फास्ट जस्टिस' की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में इस स्थिति की जानकारी देते हुए जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच को सूचित किया कि कानून पारित होने के बाद से अब तक 6000 ग्राम न्यायालय स्थापित हो जाने चाहिए थे. लेकिन 481 स्थापित किए गए हैं उसमें भी केवल 309 ही एक्टिव हैं.


ट्रायल कोर्ट का बोझ कम कर सकते हैं ग्राम न्यायालय


बेंच ने ये भी महसूस किया कि ट्रायल कोर्ट, जिसमें लगभग 23000 न्यायिक अधिकारी पिछले पांच वर्षों से 4 करोड़ से अधिक लंबित मामलों की अनसुलझी समस्या से जूझ रहे हैं, को ट्रायल कोर्ट से बोझ कम करने और आसान और किफायती पहुंच प्रदान करने के लिए ग्राम न्यायालयों को सक्रिय किया जा सकता है. 


एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने SC को सूचित किया कि केंद्र सरकार इस विषय में राज्यों को मौजूदा योजना के अनुसार वित्तीय सहायता देने को लिए तैयार है, ताकि ग्रामीणों को उनके दरवाजे पर ही त्वरित न्याय मिल सके.


SC ने कहा- 'सभी राज्य सरकार के मुख्य सचिव और हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को ग्राम न्यायालय की स्थापना, कामकाज के बारे में छह हफ्ते में शपथ पत्र दाखिल करने के निर्देश दिए जाता है. शपथ पत्र में न्यायालयों की स्थापना के लिए मौजूद बुनियादी ढांचे का भी जिक्र किया जाना चाहिए. हलफमाना दाखिल करने से पहले राज्य सरकार के मुख्य सचिव और हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल बैठक करके ग्राम न्यायालय की स्थापना को लेकर बनाई गई योजना पर चर्चा कर लें. सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 11 सितंबर को होगी.'


राज्यों को भी सहयोग करना चाहिए. ग्राम न्यायालय की स्थापना मध्यवर्ती पंचायत के मुख्यालय में होनी चाहिए. ग्राम न्यायालय की अवधारणा की बात करें तो ग्रामीण अदालतों के न्यायाधिकारी समय-समय पर गांवों का दौरा करते हैं. न्याय अधिकारी अपने मुख्यालय के अलावा किसी अन्य स्थान पर भी पक्षों को सुन कर उनके कानूनी विवादों का निपटारा कर सकते हैं.