नई दिल्ली : गुजरात में भाजपा की जीत के मिशन को तोड़ पाना बेहद मुश्किल रहा है. गुजरात ने भाजपा को हमेशा से सिर आंखों पर बैठाया है. खासकर पीएम नरेंद्र मोदी को लेकर गुजरात का रवैया बहुत सकारात्मक रहा है. कहीं न कहीं गुजरात के मन में मोदी इस कदर समाए हुए हैं कि मोदी के खिलाफ गुजरात के मन में कुछ भी ला पाना लगभग नामुमकिन रहा है. लेकिन नरेंद्र मोदी के साथ-साथ कुछ वजह और भी हैं जो भाजपा को गुजरात में हमेशा आगे रखती हैं...


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विकल्पहीनता
भले ही कांग्रेस ने दलित, पिछड़ा और हिंदू कार्ड खेला हो, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आज भी गुजरात में कांग्रेस किसी मजबूत विकल्प के तौर पर नहीं उभर पाई है. साथ ही कांग्रेस की पुरानी गलतियों का फायदा भी भाजपा ने उठाया है.


संघ का है जीत में अहम रोल
चाहे बात उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव की हो, लोकसभा चुनाव की हो या फिर गुजरात के हाल में हुए चुनाव की हो. संघ के कार्यकर्ताओं का जमीनी स्तर पर लोगों के साथ जुड़ाव और घर घर में किया जाने वाला संपर्क भाजपा की जीत की बड़ी वजहों में से एक है.


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प्रधानमंत्री का मैदान में उतरना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले एक महीने में धुआंधार प्रचार किया, अपने आक्रामक तेवर के साथ  उन्होंने गुजरात में ताबड़तोड़ 30 सभाएं कीं. यही नहीं भाषण के दौरान अजान की आवाज आने पर उनका भाषण को रोक देना, फिर यह कहना कि में किसी भी धर्म की प्रार्थना के आड़े नहीं आना चाहता हूं. इसने भावनात्मक तौर पर उन्हें गुजरातियों के साथ-साथ मुस्लिमों को भी अपने साथ जोड़ लिया.


अमित शाह बने सूत्र संचालक
अमित शाह के चुनाव संचालन का कोई सानी नहीं है. वह जिस तरह से बूथ प्रबंधन करते हैं उसको टक्कर देने वाला कोई नहीं था.


भाजपा ने झोंकी कार्यकर्ताओं की ताकत
भाजपा को संघ का जो साथ मिला है उसने जमीनी स्तर पर भाजपा को बहुत मजबूत किया है. भाजपा ने अपने संगठन की पूरी ताकत को झोंक दिया है. ऐसा माना जा रहा था कि पार्टी ने हर 30 वोटरों के पीछे एक कार्यकर्ता की ड्यूटी लगाई थी. इस तरह से संगठनात्मक प्रक्रिया ने भाजपा को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई.