गुजरात हाई कोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 63 लोगों को फंसाने और 2002 के दंगों से जुड़े झूठे सबूत गढ़ने के कथित प्रयास के मामले में तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका को खारिज कर दी है और उन्हें तुरंत सरेंडर करने के लिए कहा है. 


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सीतलवाड़ के वकील ने न्यायाधीश से अपने आदेश पर 30 दिनों के लिए रोक लगाने का अनुरोध किया ताकि वह सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकें और क्योंकि वह लगभग एक साल से अंतरिम जमानत पर हैं, लेकिन न्यायमूर्ति देसाई ने इस अनुरोध को खारिज कर दिया.


सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति निर्जर देसाई ने उन्हें 'तुरंत आत्मसमर्पण' करने को कहा. तीस्ता सीतलवाड़ को 2 सितंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतरिम जमानत दी गई थी. ऐसा तब हुआ था जब हाई कोर्ट ने उसकी जमानत याचिका स्वीकार कर ली थी और 45 दिनों के बाद उस पर सुनवाई तय की थी.


सीतलवाड़, पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार और एक अन्य पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को जून 2022 में गिरफ्तार किया गया था. ये वो समय था जब सुप्रीम कोर्ट ने पीएम मोदी को क्लीन चिट देने वाली एसआईटी द्वारा दायर क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ जकिया जाफरी की अपील को खारिज कर दिया था. 


जमानत की मांग करते हुए सीतलवाड़के वकील ने तर्क दिया कि सीतलवाड़ के खिलाफ लगाए गए आरोप बिल्कुल भी लागू नहीं होते हैं. दलील दी गई कि उनके खिलाफ जालसाजी के आरोप हैं, लेकिन उन्होंने कभी किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं किए. हलफनामा या बयान का मसौदा तैयार करना जालसाजी नहीं है. 


इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि हलफनामे की तैयारी और उन्हें सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत करना एक स्थानांतरण याचिका का समर्थन करने के लिए हुआ था, और यह जकिया जाफरी द्वारा अपनी शिकायत दर्ज करने से चार साल पहले हुआ था.


दूसरी ओर, राज्य सरकार ने जमानत याचिका का पुरजोर विरोध किया और सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज गवाहों के बयानों का हवाला दिया और दावा किया कि सीतलवाड़ ने बाद में कांग्रेस पार्टी के नेता अहमद पटेल के लिए एक टूल के रूप में काम किया. साथ ही श्रीकुमार और भट्ट के साथ मिलकर साजिश रची ताकि ये स्थापित हो सके कि 2002 के दंगों के पीछे एक बड़ी साजिश थी.