आज मैंने अपने लाइफ की सबसे अच्छी जलेबी खाई है... राहुल गांधी ने कल हरियाणा की एक रैली में मंच से जब यह बात कही तो देश के कोने-कोने में चर्चा होने लगी. वो जलेबी कहां मिलती है, जिसकी राहुल गांधी चर्चा कर रहे हैं. उस जलेबी में ऐसा क्या खास है जो हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर में इतनी पसंद की जाती है? यह जानने से पहले पढ़िए राहुल गांधी ने कल यानी 1 अक्टूबर की रैली में कहा क्या था. दरअसल, राहुल ने जलेबी का डिब्बा दिखाते हुए मंच से कहा कि जैसे ही मैंने आज गाड़ी में यह जलेबी चखी, मैंने अपनी बहन को सीधा मैसेज भेजा.


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प्रियंका को जलेबी पसंद है


उन्होंने बताया कि प्रियंका को जलेबी बहुत अच्छी लगती है, मुझे दूसरी मिठाई अच्छी लगती है मगर जैसे ही मैंने जलेबी चखी तो मैंने मैसेज किया, 'प्रियंका, आज मैंने अपनी लाइफ में सबसे अच्छी जलेबी खाई है. मैं तुम्हारे लिए एक डिब्बा ला रहा हूं. इसमें हरियाणा के एक व्यक्ति का खून-पसीना है. पूरा कॉन्सेप्ट उन्होंने बनाया. सालों से वह काम कर रहे हैं. यह आपकी जलेबी पूरे हिंदुस्तान में जानी चाहिए. उसके बाद बाकी देशों में, अमेरिका-जापान में भी जाना चाहिए. अगर इनकी दुकान पर आज 100 लोग काम करते हैं और जलेबी बाकी दुनिया में जाएगी तो एक दिन 10 हजार, 20 हजार लोग काम कर सकते हैं.'



मातुराम जलेबी में क्या खास है


अब सवाल उठता है कि इस जलेबी में ऐसा क्या खास होता है. सबसे पहले यह जान लीजिए राहुल गांधी ने जो जलेबी खाई, वह मातुराम हलवाई की थी. हरियाणा में सोनीपत के गोहाना विधानसभा क्षेत्र में मातुराम हलवाई की दुकान है. हमने फोन पर दुकान के मालिक रमेश गुप्ता से बात करने की कोशिश की. उनके बेटे राहुल फोन पर मिले. उन्होंने बताया कि वह देशी घी की जलेबी मात्र 320 रुपये किलो में बेचते हैं. वैसे, एनसीआर में 'शुद्ध देशी घी' की जलेबी के नाम पर दुकान वाले 500-600 रुपये भी लेते हैं. यह पूछने पर मातुराम हलवाई के मालिक ने कहा कि वह बहुत कम मार्जिन पर काम करते हैं.


आगे राहुल ने बताया कि उनके दादा मातुराम ने 1997 में पुरानी अनाज मंडी में दुकान शुरू की थी. खासबात यह है कि एक पीस जलेबी का वजन 250 ग्राम होता है. मतलब एक किलो में सिर्फ चार पीस जलेबी आती है. उन्होंने दावा किया कि यह जलेबी आप एक हफ्ते तक रख सकते हैं, खराब नहीं होगी.



हालांकि नाम को लेकर काफी कन्फ्यूजन है. जैसे हर शहर के चौराहे पर अग्रवाल मिष्ठान भंडार मिल जाता है वैसे ही गोहाना में मातुराम हलवाई के नाम में थोड़ा हेरफेर करके कई दुकानें खुल गई हैं. इस पर उन्होंने कहा कि हां, लोग 'न्यू' और 'श्री' लगाकर नाम रख लेते हैं. वह बताते हैं कि इतनी बड़ी जलेबी का आइडिया उनके पिता के दिमाग की उपज थी, जो अब पूरे देश और विदेश में पहचान बना रही है.