नई दिल्ली: आपको याद होगा कि पहले कागजों या फाइलों को आपस में नत्थी (बांधने) करने के लिए सूआ से उनमें छेद किया जाता था फिर किसी मोटे धागे से उन्हें नत्थी किया जाता था. भारत में फाइलिंग का यह बड़ा ही कठिन और असुरक्षित काम था. देखते ही देखते होल पंच (Hole punch) हमारी स्टेशनरी में शामिल हुआ और फाइलिंग के काम को बहुत आसान बना दिया. आपको पता है दिखने में यह बेहद आसान लेकिन अद्भुत होल पंच को हमारे जीवन में शामिल हुए 130 साल से भी ज्यादा हो चुके हैं. फ्रेडरिक सुनेनिकन ने 131 साल पहले आज ही के दिन यानी 14 नवंबर, 1886 को इसका पेटेंट कराया था.


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131 साल का सफर करते हुए यह छिद्र मशीन हर जगह, हर ऑफिस यहां तक कि लगभग हर घर में अपनी पैठ बना चुकी है. खास बात यह है कि जब इसका पेटेंट कराया गया था उस दिन भी मंगलवार था और आज भी. इस अनोखे अविष्कार पर गूगल ने एक शानदार डूडल बनाकर लोगों को इसकी जानकारी सभी तक पहुंचाने की कोशिश की है. भारत में 14 नवंबर को जहां पूरा देश बाल दिवस मना रहा है, वहां गूगल द्वारा पंच मशीन की जानकारी देकर इस दिन को और रोचक बनाने की कोशिश की है.


जब आप अपने कंप्यूटर पर इंटरनेट खोलेंगे तो गूगल का डूडल पंच किए गाए कागज की बिंदियों से सजा मिलेगा और ऊपर एक होल पंच दिखेगा. इस पर क्लिक करने पर होल पंच गूगल के 'जी' (G) के रूप में बने कागज पर क्लिक करके छेद कर देगा और अपने नए आकार पर कागज खुशी से उछलता नजर आएगा. इस पर क्लिक करने पर आप को होल पंच से जुड़ी तमाम जानकारियों के लिंक मिलेंगे. 



जर्मन के रहने वाले फ्रेडरिक सुनेनिकन ऑफिस स्टेशनरी की सप्लाई करने का काम करते थे और खुद की अपनी एक कंपनी चलाते थे. होल पंच के अविष्कार से वे जल्दी ही प्रसिद्ध हो गए. उनके कागज़-कलम के दिवानों में से एक जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे भी थे. फ्रेडरिक का मानना ​​था, 'हमें क्या नहीं मारता, हमें और मजबूत बनाता है.' उनका यह दर्शन किसी भी पराजय से विचलित हुए मनुष्य के लिए था, कि हार किसी को मारती नहीं बल्कि औऱ मजबूत बनाती है. दिलचस्प बात यह है कि इस छिद्र मशीन में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं किए गए है, यानी आज से सैकड़ों साल पहले जैसी यह मशीन दिखती थी आज भी वैसी ही है.