How diamonds are prepared: हीरे को तैयार होने में लाखों साल लग जाते हैं. ये लंबे समय तक भारी दबाव में मौजूद कार्बन का बदला हुआ रूप होता है. धरती से नीचे करीब 150 किलोमीटर की गहराई में और 1000 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा के तापमान में कोयला हीरे के रूप में तब्दील होता है. लेकिन यही हीरा अब कुछ ही दिनों के अंदर और कम मेहनत में लैब में ही बनकर तैयार हो सकता है. आइए जानते हैं लैब में हीरे को तैयार करने के तरीके के बारे में...


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कहा जाता है कि करीब ढाई हजार साल पहले भारत में हीरे की खोज हुई थी और फिर पूरी दुनिया में लोग इसकी खोज में जुट गए. हीरे की खोज के रास्ते पर चलने वाली दुनिया ने वातावरण को काफी नुकसान पहुंचाया. इसके साथ ही इसकी चाहत ने अपराध को भी बढ़ावा दिया. भ्रष्टाचार भी बढ़ा और बड़ी संख्या में लोगों की जान भी गई. 


हालांकि, धीरे-धीरे धरती के नीचे हीरे की मात्रा भी कम होती चली गई. लेकिन विज्ञान की मदद से लोगों ने इसे धरती से ऊपर यानी लैब में तैयार करने का फार्मूला इजाद कर लिया. हीरा लंबे समय तक भारी दबाव में मौजूद कार्बन का बदला हुआ रूप है. लैब में भी इसे बनाने के लिए कुछ ऐसा ही किया जाता है. 


1950 से दुनिया के कोने-कोने में आर्टिफिशियल हीरे का चलन शुरू हो गया. लैब में तैयार होने वाले ये हीरे दिखने में एकदम असली जैसे होते हैं, लेकिन इनकी कीमत में जमीन-आसमान का अंतर होता है. इन हीरों की कीमत आधी होती है यानी ये काफी सस्ते होते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पहली बार लैब में साल 2004 में हीरे को तैयार किया गया था. 


लैब में हीरे को बनाते समय कार्बन के कई एटम्स को एक दूसरे से भारी प्रेशर और तापमान की मदद से जोड़ा जाता है और इस प्रक्रिया के बाद तैयार होता है लैब वाला हीरा. ये हीरा देखने में, मजबूती में और बनावट में बिलकुल असली हीरे जैसा होता है. आने वाले समय में लैब में तैयार होने वाले हीरे की उपल्बधता ज्यादा आसान होगी और ये सस्ता भी होगा. इससे खुदाई के दौरान होने वाला प्रदूषण भी कम होगा. 


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